सांकेतिक चित्र (साभार : Texas Nepal)
अंतरिक्षयात्रियों ने जब पिछली सदी में अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखा तो इसकी खूबसूरती को देख इसे ‘ब्लू प्लानेट’ यानी नीला ग्रह नाम दिया। पृथ्वी की सतह 70 प्रतिशत समुद्रों से घिरी है। 30 प्रतिशत ही ठोस जमीन है। ज़्यादातर सतह जलीय होने की वजह से अंतरिक्ष से इसका रंग नीला दिखाई देता है। हमारे सौरमंडल के दूसरे किसी ग्रह पर इतनी मात्रा में पानी नहीं है।
सवाल यह उठता है कि पृथ्वी पर पानी कब, कहाँ से और कैसे आया? पृथ्वी पर पानी कब और कैसे आया सहित अनेक गुत्थियां हैं जिन्हें वैज्ञानिक एक लंबे अर्से से सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों को एक शोध के जरिए पृथ्वी पर पानी की उत्पत्ति संबंधी अहम सवालों से जुड़े कुछ अहम सुराग मिले हैं। दरअसल, पानी की उत्पत्ति पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति से भी जुड़ी है।
चूंकि पानी पृथ्वी पर जीवन का आधार है इसलिए वैज्ञानिकों की इस बात में गहरी दिलचस्पी है कि यहां पानी आया कहां से। इस सवाल का जवाब ढूंढने में सबसे बड़ी समस्या यह है कि पृथ्वी के निर्माण के सारे चिन्ह उसके पूर्ण ग्रह बनने के बाद मिट चुके हैं।
किसी भी ग्रह पर जीवन के विकास के लिए उसकी सतह पर पानी की मौजूदगी बेहद जरूरी है। पृथ्वी पर जीवन कैसे आया। यहां जीवन के अनुकूल परिस्थितियां कैसे बनी। ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब स्पष्ट तौर पर वैज्ञानिकों को नहीं मिला है। इन सवालों के जवाब जानने के लिए वैज्ञानिक पृथ्वी ही नहीं सौरमंडल के दूसरे ग्रहों का भी अध्ययन कर रहे हैं।
पानी के पृथ्वी पर उत्पत्ति को लेकर विज्ञान जगत में अनेक विचार तथा परिकल्पनाएं प्रचलन में हैं जिन्हें मौटे तौर पर दो सिद्धांतों में बांटा जा सकता है। पहले सिद्धांत के मुताबिक पानी की उत्पत्ति पृथ्वी के जन्म के साथ हुई है। जबकि दूसरे सिद्धांत के मुताबिक पानी, पृथ्वी के बाहर से आया है पर इस बात से लगभग सभी वैज्ञानिक सहमत हैं कि पृथ्वी पर पानी का जन्म कैसे और क्यों हुआ, अस्पष्ट है। इसे अभी तक पूरी तरह समझा नहीं जा सका है।
अध्ययन और अनुसंधान के इसी क्रम में ताजा शोध से वैज्ञानिकों को यह पता चला है कि पृथ्वी पर पानी शुरू से यानी उसके निर्माण के समय से ही था। हाल ही में नेचर जियो साइंस जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक वैज्ञानिकों को इस सवाल का जवाब शुक्र ग्रह का अध्ययन करने के दौरान मिला।
पृथ्वी के भीतर पानी ही पानी (साभार : ThingLink)
वैज्ञानिक में इस बात पर एकमत हैं कि दूसरे ग्रहों की सतह पर पानी नहीं हैं। और यह कि जब ग्रह बन रहे थे तब मंगल के पृथ्वी से टकराने पर चंद्रमा का उदय हुआ था। अगर उस समय पृथ्वी पर पानी था तो इस घटना के बाद पृथ्वी की सतह से पानी वाष्प बनकर उड़ गया होगा, यह निश्चित है।
इस घटना के बाद पृथ्वी पर पानी कैसे आया इस बारे में दो मत हो सकते हैं। या तो हमारे ग्रह पर पानी बाहर से आया। मसलन पृथ्वी से कोई ऐसा क्षुद्रग्रह टकराया हो जिसमें बर्फ या पानी की प्रचुरता हो और वह पृथ्वी पर आ गया हो। या फिर मंगल और पृथ्वी का टकराव ही इतना बड़ा न हुआ हो जिससे पूरा पानी वाष्प बनकर उड़ जाए।
चूंकि पानी पृथ्वी पर जीवन का आधार है इसलिए वैज्ञानिकों की इस बात में गहरी दिलचस्पी है कि यहां पानी आया कहां से। इस सवाल का जवाब ढूंढने में सबसे बड़ी समस्या यह है कि पृथ्वी के निर्माण के सारे चिन्ह उसके पूर्ण ग्रह बनने के बाद मिट चुके हैं।
अध्ययन और अनुसंधान के इसी क्रम में ताजा शोध से वैज्ञानिकों को यह पता चला है कि पृथ्वी पर पानी शुरू से यानी उसके निर्माण के समय से ही था। हाल ही में नेचर जियो साइंस जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक वैज्ञानिकों को इस सवाल का जवाब शुक्र ग्रह का अध्ययन करने के दौरान मिला।
इसी चुनौती के बीच बेल्जियम में फ्री यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रुसेल्स के सेड्रिक गिलमैन के नेतृत्व में भू-वैज्ञानिकों और न्यूमेरिकल मॉडलर्स की एक टीम ने शुक्र ग्रह का अध्ययन करना शुरू किया। यह माना जाता है कि शुरुवात में पृथ्वी और शुक्र ग्रह की भूगर्भीय बनावट और जलवायु हालात एक जैसे रहे होंगे। अध्ययन में माना गया कि चूंकि पृथ्वी और शुक्र ग्रह बहुत पास हैं तो दोनों को अपने निर्माण के समय एक ही तरह की द्रव्यराशि मिली होंगी।
शोधकर्ताओं ने शुक्र ग्रह पर कुछ पानी वाले क्षुद्रग्रहों का उस पर टकराने के प्रभाव का अध्ययन किया। उसके बाद उन्होंने न्यूमेरिकल सिम्यूलेशन गणना से यह पता लगाया कि इसी तरह का असर अतीत में पृथ्वी से टकराने पर कैसा रहा होगा।
वैज्ञानिकों ने पाया कि पानी से भरपूर क्षुद्रग्रहों के शुक्र ग्रह से टकराने से और उससे पानी के वाष्प बनकर उड़ने से आज के शुक्र ग्रह के वायुमंडल की व्याख्या नहीं हो पा रही है। इससे एक बात निश्चित हो गई कि जो क्षुद्रग्रह शुक्र और पृथ्वी पर टकराए होंगे, खास तौर पर मंगल और पृथ्वी के टकराने के बाद, उसका प्रभाव शुष्क ही रहा होगा। इससे पृथ्वी पर क्षुद्रग्रह या धूमकेतु से पानी आने की संभावना खारिज हो जाती है। इन नतीजों से शुक्र ग्रह बारे में इस धारणा को भी बल मिलता है कि कभी शुक्र पर भी समुद्र रहा होगा। हो सकता है वहां अब भी सतह के नीचे पानी की मौजूदगी हो।
इससे यही अनुमान लगाया जा सकता है कि आज जो हम पानी पृथ्वी पर देख रहे हैं वह काफी वक्त से पृथ्वी के बहुत ही अंदर रहा होगा। जिससे उस बड़े टकराव के बाद भी पूरी तरह से वाष्पित होकर उड़ा नहीं होगा। अगर टकराव की वजह से पानी अंदर से वाष्प बनकर ऊपर निकला होगा, तब तक पृथ्वी का वायुमंडल तैयार हो चुका था। इस वायुमंडल में बादल बने होंगे और बादलों से पानी बरसा होगा और वो पृथ्वी पर आ गया होगा। बहरहाल, इस हालिया शोध से पृथ्वी, शुक्र और यहां तक कि मंगल पर भी जीवन संबंधी हालातों की जांच-पड़ताल पर असर पड़ेगा।
प्रदीप कुमार, विज्ञान विषयों के उभरते हुए लेखक हैं. दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स, इलेक्ट्रॉनिकी आदि देश के अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में इनके विज्ञान विषयक आलेख प्रकाशित होते रहते हैं. संपर्क - pk110043@gmail.com

1 टिप्पणी

  1. पृथ्वी के शैशव काल में पृथ्वी से टकराने वाला ग्रह मंगल नहीं था। वह एक आदिग्रह था जिसका आकार शायद मंगल के बराबर रहा होगा। यह शायद पृथ्वी से ४५ डिग्री के कोण पर टकराया होगा। इस भीषण टक्कर के कारण पृथ्वी के कुछ टुकड़े और धूल पृथ्वी के चारो ओर धूल के एक छल्ले की तरह एकत्रित हो गए होंगे। जो बाद में संघनित होकर चंद्रमा बन गया होगा। पृथ्वी और चंद्रमा पर पाए जाने वाले आक्सीजन और टाइटेनियम के समस्थानिकों का अनुपात इसकी गवाही देता है। इसे चंद्रमा के जन्म की जाइँट इम्पेक्ट थ्योरी कहते हैं। पृथ्वी से टकराने वाले इस ग्रह को ग्रीक मायथोलोजी में चंद्रमा की देवी सेलिना की मां के नाम पर थिया कहा जाता है। इस टक्कर के कारण पृथ्वी का पानी समाप्त नहीं हुआ था वरन थिया से पृथ्वी पर आया था। इस टक्कर के कारण पृथ्वी शायद अपनी धुरी पर २३.५ डिग्री झुक गई होगी जिसके कारण पृथ्वी पर कई ऋतुएं होतीं हैं।

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