भारतीय उपमहाद्वीप के लोग मज़हब के मामले में बहुत भावुक होते हैं। सरकारें भी उनकी भावनाओं से डरते हुए कोई सख़्त निर्णय नहीं ले पाती हैं। जब देश को नागरिकों की जान पर बन रही हो तो मज़हब, धर्म सब को हाशिये पर रखते हुए केवल सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने चाहियें।
आज तक, एन.डी.टी.वी., ज़ी टीवी, एबीपी न्यूज़, न्यूज़ 18 यहां तक कि दूरदर्शन भी यही समाचार दे रहा है कि भारत में कोरोना वायरस के नये ओमीक्रॉन वेरिएंट का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। भारत में पिछले 24 घंटों में कोविद-19 के 16,764 मामले दर्ज हुए। पिछले 24 घंटे में कोरोना से 220 मौतें भी हुई हैं।
भारत में ओमिक्रॉन वेरिएंट के मामले बढ़कर 1270 पहुंच गए हैं। दिल्ली और मुंबई ओमिक्रॉन से सर्वाधिक प्रभावित शहर हैं। पिछले 24 घंटे में लोगों को वैक्सीन की 66,65,290 खुराकें दी गईं हैं। कुल वैक्सीनेशन का आंकड़ा 1,44,54,16,714 है। शायद वैक्सीनेशन का यह आँकड़ा भी अपने आप में एक रिकॉर्ड हो सकता है।
याद रहे अप्रैल मई 2021 में भारत में कोरोना की दूसरी लहर बहुत भयानक थी। उस समय एक-एक दिन में चार-चार लाख लोग संक्रमित हो रहे थे। अधिकारियों को डर है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट के चलते भारत में तीसरी लहर आने की पूरी संभावना है।
ऐसे में शिमला, मनाली, कुल्लु, मसूरी, नैनीताल आदि में सैलानियों की भीड़ और नये साल के जश्न बहुत से सवाल पैदा करते हैं। केन्द्र और राज्यों की इस मामले में कोई स्पष्ट नीति दिखाई नहीं देती।
हैरानी तो तब हुई जब नववर्ष की शुरूआत माता वैष्णो देवी के मंदिर में घटी दुर्घटना से हुई। माँ के दर्शनों के लिये जाने वाले और दर्शन करके आने वालों की भीड़ के कारण भगदड़ मच गयी और सरकारी सूत्रों के अनुसार 12 लोग की जान गयी। सवाल यह उठता है कि आख़िर कोरोना हालात के चलते इतनी बड़ी भीड़ को इस तरह इकट्ठे होने की इजाज़त क्यों दी गयी। कुछ का कहना है कि भीड़ हज़ारों में थी तो कुछ लाख से अधिक की बता रहे हैं।
एक श्रद्धालु का कहना था, “हम दर्शन करने के लिए जा रहे थे। थोड़ा सा ही अंदर घुसे ही थे तो देखा कि भीड़ इधर से भी जा रही है और उधर से भी आ रही है। उसी भीड़ में अंदर जो महिलाएं और लोग थे, वे धक्का सहन नहीं कर पाए। महिलाएं नीचे गिर रही थीं । नीचे गिरने के बाद चीखें और आवाजें आ रही थीं। कुछ श्रद्धालुओं ने ही जितना संभव हो सका, गिरे हुए लोगों को हाथों में पकड़कर ऊपर से निकाला। प्रशासन ने तब जिम्मा संभाला जब हालत पूरी तरह से बिगड़ गई।”
अब प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्य मंत्री सभी संवेदना प्रकट कर रहे हैं। मूल सवाल अब भी वहीं खड़ा है कि भाई इतनी भीड़ को इकट्ठा होने क्यों दिया गया? भारतीय उपमहाद्वीप के लोग मज़हब के मामले में बहुत भावुक होते हैं। सरकारें भी उनकी भावनाओं से डरते हुए कोई सख़्त निर्णय नहीं ले पाती हैं। जब देश को नागरिकों की जान पर बन रही हो तो मज़हब, धर्म सब को हाशिये पर रखते हुए केवल सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने चाहियें।
भारत में प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, मुख्य मंत्री सभी जनता को ज्ञान देते रहते हैं कि दो ग़ज़ की दूरी बनाये रखिये… चेहरे पर मास्क लगाइये… भीड़ जमा न करिये… दिल्ली में येलो-एलर्ट जारी कर दिया गया है तो मुंबई में रात का कर्फ़्यू लागू कर दिया गया है। दिल्ली में एक बार फिर से जिम पूरी तरह से बंद होंगे। इस दौरान किसी को जिम जाने की इजाजत नहीं होगी। स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, स्विमिंग पूल भी बंद… दिल्ली के सिनेमा हॉल पूरी तरह से बंद। कम या अधिक क्षमता नहीं बल्कि पूरी तरह से ही सिनेमा हॉल को बंद कर दिया गया है। स्कूल,थिएटर, बैंक्वेट हाल, एंटरटेनमेंट पार्क भी बंद रहेंगे। बसों और मेट्रो में आधी क्षमता भर ही मुसाफ़िर यात्रा कर पाएंगे। शादी और अंतिम संस्कार में केवल 20 लोग ही शामिल हो पाएंगे। अभी रेस्टॉरेण्ट और बाल काटने के सैलून आदि बंद नहीं किये गये हैं। मॉल ऑड-ईवन तारीख़ों के हिसाब से खुलेंगे।
मगर उसी प्रदेश के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल पंजाब में जाकर लाखों लोगों की रैली में भाषण देते हैं। उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, अखिलेश यादव, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, पंजाब में सिद्धु और चन्नी जनता को कोरोना से डरने की सलाह देते हैं मगर रैली और रोड शो लाखों में करते हैं। भला यह कैसा कोरोना है जो बाकी सब जगह तो शैतान है मगर राजनीतिक रैलियों में डरा हुआ मेमना बन जाता है। वैसे कोरोना खड़ा कन्फ़्यूजिया जाता है कि भारत की स्थितियों से वह कैसे निपटे।
अब चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना होगा और मामला राजनीतिज्ञों के हाथ में नहीं छोड़ना होगा। चुनावी रैलियों पर पूरी तरह से बैन लगा दिया जाए। चुनावी अभियान केवल टीवी और वर्चुअल मीडिया के माध्यम से किये जाएं। इससे लोगों की जान भी बचेगी और चुनाव कम ख़र्चीले भी हो पाएंगे।
बात केवल भारत की नहीं है। ओमिक्रॉन के चलते ब्रिटेन, अमरीका, रूस और युरोप के बहुत से देश भी घुटने टेकते दिखाई दे रहे हैं। ब्रिटेन में कल एक दिन में कोरोना के 1,83,037 मामले दर्ज किये गये। क्रिसमिस और नववर्ष के उत्सवों ने इन मामलों की बढ़ोतरी में ख़ासा योगदान दिया। प्रधानमंत्री बॉरिस जॉन्सन और स्वास्थ्य मंत्री साजिद जावेद में इतनी हिम्मत नहीं थी कि इस दौरान लॉकडाउन जैसी प्रक्रिया के बारे में सोच भी पाते।
एक ध्यान देने लायक बात यह भी है कि विश्व के हर देश में सत्तारूड़ दल एवं नेता पूरी तरह से अक्षम साबित हुए हैं। मगर उन देशों के विपक्षी दलों और नेताओं ने कुछ इस तरह के बयान दिये जैसे वे कोरोना से निपटने में पूरी तरह से सक्षम हैं। जो बाइदन अपने से पहले राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की कड़ी आलोचना करते रहे कि वे कोरोना को समझने में नितांत असफल रहे हैं। मगर स्वयं राष्ट्रपति बनने के बाद वे स्वयं भी लड़खड़ाते दिखाई दे रहे हैं।
भारत का विपक्ष भी सत्तारूड़ दल की हर कदम पर आलोचना कर रहा है मगर जिस-जिस राज्य में वे स्वयं सत्तारूड़ हैं, वहां कोई उपलब्धि दिखाई नहीं दे रही है। राजनीतिक नेताओं के लिये सबसे महत्वपूर्ण संदेश यही है कि कोरोना के मामले में राजनीति न करते हुए, उन्हें अपने व्यवहार से जनता का नेतृत्व करना होगा और समझाना होगा कि कोरोना जैसे भयंकर वायरस से कैसे निपटना है। उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं दिखाई देना चाहिये।
सामयिक विषय कोरोना संक्रमण पर सटीक कटाक्ष से दो बातें हुईं, एक तो हिन्दी साहित्य को एक नया शब्द मिला “कन्फ्यूज़िया”
और दूसरा की कोरोना वायरस कितना आज्ञाकारी व समझदार है ! सरकार के आदेशनुसार वो केवल रात में संक्रमित होता है और चुनावी सभाओं में अनुशासित रूप से अनुपस्थित रहता है ! अब तो वायरस की प्रवीणता देखिए कि स्वतः संज्ञान से वो नए वर्ष के उपलक्ष्य में धर्मिक स्थलों से भी दूर रहा और संक्रमण नहीं फेलाया ! भले ही जनमानस की अनुशासन हीनता से भगदड़ मच गई कुछ लोगों की जान भी चली गई पर मजाल है कि कोरोना ने किसी को छुआ हो !
अब तो निष्चित कार्यक्रनुसार तीसरी लहर पहुँच चुकी है, अब माह के मध्य में लहर अपने चरम पर होगी । अस्पतालों को स्पष्ट निर्देश दे दिए गए हैं कि कोई भी व्यक्ति यदि बुख़ार सर्दी खाँसी के लक्षण से मिले तो उसे प्रथम दृष्टा में कोरोना मरीज़ पंजीकृत किया जाय। ताकि तीसरी लहर की घोषित भविष्यवाणी को सिद्ध किया जा सके ! अगले माह बजट पेश होने के साथ चौथी लहर की रूपरेखा तैयार की जा सके और बजट में और अधिक राशि का प्रावधान कर सकें !
और लोगों के मन मस्तष्क से कन्फ्यूजिंया का भ्रम दूर हो कोरोना के अगले मॉडल (वैरिएंट) का पूरे विशवास के साथ सामना करें !!
You have issued a warning to the public through this valuable Editorial of yours by pointing out how irresponsible every one is (and has been)by citing the example of the recent casualties of the devotees( caused by the stampede that took place at Vaishno Devi).
Also how by not following covid appropriate behavior the political parties continue to hold large rallies and how even the common public exposes itself to risk.
Please accept my regards n best wishes
Deepak Sharma
आपका हर सम्पादकीय जैसे दिमाग़ में घूमते और उसे परेशान करते मुद्दों को पूरी बारीकी से छू लेता है; आप लगभग हर बार ज्वलंत मुद्दों पर अपनी पैनी क़लम चलाते हैं और साथ ही सुझाव भी पेश करते हैं। आज के तेज़ी से संक्रमित होते माहौल में राजनेता चुनावी रैलियों और धार्मिक मजमों की इजाज़त कैसे दे देते हैं, राजनीतिक स्वार्थ के लिए सब विवेक और भावना शून्य हुए लगते हैं। बहुत ही समसामयिक और सशक्त सम्पादकीय।
वाकई कोरोना के कन्फ्यूजन से ज़्यादा देश के लोग इससे हर बार बेफिक्र दिखते हैं तो सभी दल सिर्फ कहने के लिए कुछ बोलते हैं बाकी करने में फेल हैं, वाकई सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना चाहिए
आदरणीय संपादक महोदय नमस्कार ।नवागत वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। आपके द्वारा प्रस्तुत सामयिक एसंपादकीय में मूल सा है भारत में कोरोना के वास्तविक स्वरूप का निरूपण किया गया है। आपके द्वारा व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कोरोना के दोहरे स्वरूप को दर्शाया जाना सच को उजागर करना है।
साल बदल है क्या लोग बदलेंगे।ये पार्टियां ये धर्म के ठेकेदार ये बदलेंगे।
आपके लेख पर बड़ी वाली सहमति है सर। कोरोना का रोना निकल जाता है भारत मे अपनी स्थिति देखकर। पार्टी सत्तारूढ़ हो या विपक्ष सभी के लिए आम आदमी की जान हाशिये पर है और कमाल है आम आदमी के लिए उसकी जान भी हाशिये पर है। खुद के चेते ही जान सुरक्षित होगी। सब स्वार्थ लिप्त है, उन्हें कुर्सी चाहिए और वो अपना ध्यान रखना ख़ूब जानते है, एक नेता बता दीजिये जो कोरोना से निबटा हो। पर हम और आप जैसे आम लोग जाते क्यों है इन रैलियों में। माघ स्नान मौनी अमावस्या आ रहा है देखिएगा जाएंगे सब स्नान करने वार्ना नदियां बुरामण जाएगी, उल्टी बहने लगेगी। ये तो हाल है। क्यों अभी भी नही जग रहे लोग। भूख समझ आती है , बच्चों का बिलबिलाना, मजबूरियां समझ आती है पर रैलियां, तीर्थाटन, छुट्टियों में घूमने जाने की मजबूरियां, हद है ।
आपके लेख ने झकझोर दिया सर।
और हर बार आप मंथन करवा ही लेते है।
बहुत ही सार्थक और सामयिक संपादकीय। ऐसे समय में जब भारत में कोरोना की तीसरी लहर दस्तक दे चुकी है, चुनाव कराना कहीं से भी विवेकपूर्ण नहीं लगता है। रैलियों में जुड़ती भीड़ कोढ़ में खाज का काम करेगी। मुझे तो लगता है कि कोरोना बीजेपी के लिए यूपी को भी बंगाल में न बदल दे।
बहुत सटीक लेख .. जमीनी हकीकत यही है कि तमाम राजनीतिज्ञों द्वारा जनता को डराने और स्वयं रोड शो के नाम पर भीड़ इकट्ठा कर लेने से जनता में गलत मेसेज जाता है | जब एक जगह भीड़ इकट्ठी हो रही है तो फिर हर जगह होगी ही | रात का और सप्ताहांत का कर्फ्यू भी महज खानापूरी है | आम जनता वैसे भी जान हथेली पर ले कर चलती है .. उस को रोकने के लिए नेताओं को पहले अपने पर अंकुश लगाना होगा |
संपादकीय विचारों में उथल – पुथल तो मचाता है, स्थिति यही है, और यही पहले भी थी, दोनों लहरें देख लीं, अगर बचे तो तीसरी भी देखेंगे.” लाभ, हानि, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ” भारतीयों की इसमें हृदय से आस्था है, तो सब चलता है। नेता रैली करें या रोड शो, जाने वालों को अपनी चिन्ता करनी चाहिए, जान तो उन्हीं की है। चुनाव के अलावा, पर्यटन, धर्म स्नान, माघ मेला आदि में जाना भी स्वेच्छा है। जब लोगों को ख़ुद मरने की चिन्ता नहीं तो कोरोना चिन्ता क्यों करे? यूँ भी “कोरोना 18 साल का नहीं हुआ तो चुनावों में नहीं जाता”.।सरकार सुप्रीम कोर्ट कोई कुछ नहीं कर सकता। जो होना है हो कर रहेगा….. लोग मरेंगे फिर धीरे धीरे कोरोना भी अपनी मौत मरेगा, भारत की जनसंख्या बहुत बढ़ गई है है Malthus का सिद्धांत सही था और रहेगा।
बहुत ही यथार्थवादी टिप्पणी है सर आपकी। किन्तु राजनेताओं को सिर्फ कुर्सी प्यारी है। कैसा मजाक चल रहा है रैली में जहां लाखों की भीड़ है किन्तु कोरोना नहीं है इसलिए आज जनता भी कह रही है कुछ नहीं है कोरोना-वरोना अगर इस लापरवाही पर जल्द लगाम नहीं लगाई गयी तो स्थिति बहुत भयावह होगी।
सामयिक विषय कोरोना संक्रमण पर सटीक कटाक्ष से दो बातें हुईं, एक तो हिन्दी साहित्य को एक नया शब्द मिला “कन्फ्यूज़िया”
और दूसरा की कोरोना वायरस कितना आज्ञाकारी व समझदार है ! सरकार के आदेशनुसार वो केवल रात में संक्रमित होता है और चुनावी सभाओं में अनुशासित रूप से अनुपस्थित रहता है ! अब तो वायरस की प्रवीणता देखिए कि स्वतः संज्ञान से वो नए वर्ष के उपलक्ष्य में धर्मिक स्थलों से भी दूर रहा और संक्रमण नहीं फेलाया ! भले ही जनमानस की अनुशासन हीनता से भगदड़ मच गई कुछ लोगों की जान भी चली गई पर मजाल है कि कोरोना ने किसी को छुआ हो !
अब तो निष्चित कार्यक्रनुसार तीसरी लहर पहुँच चुकी है, अब माह के मध्य में लहर अपने चरम पर होगी । अस्पतालों को स्पष्ट निर्देश दे दिए गए हैं कि कोई भी व्यक्ति यदि बुख़ार सर्दी खाँसी के लक्षण से मिले तो उसे प्रथम दृष्टा में कोरोना मरीज़ पंजीकृत किया जाय। ताकि तीसरी लहर की घोषित भविष्यवाणी को सिद्ध किया जा सके ! अगले माह बजट पेश होने के साथ चौथी लहर की रूपरेखा तैयार की जा सके और बजट में और अधिक राशि का प्रावधान कर सकें !
और लोगों के मन मस्तष्क से कन्फ्यूजिंया का भ्रम दूर हो कोरोना के अगले मॉडल (वैरिएंट) का पूरे विशवास के साथ सामना करें !!
कैलाश भाई, इतनी सार्थक टिप्पणी के लिए साधुवाद।
You have issued a warning to the public through this valuable Editorial of yours by pointing out how irresponsible every one is (and has been)by citing the example of the recent casualties of the devotees( caused by the stampede that took place at Vaishno Devi).
Also how by not following covid appropriate behavior the political parties continue to hold large rallies and how even the common public exposes itself to risk.
Please accept my regards n best wishes
Deepak Sharma
Deepak ji your support for the editorial is very encouraging.
बहुत सही लिखा है आपने। ज़मीनी हक़ीक़त
धन्यवाद शरद जी।
आपका हर सम्पादकीय जैसे दिमाग़ में घूमते और उसे परेशान करते मुद्दों को पूरी बारीकी से छू लेता है; आप लगभग हर बार ज्वलंत मुद्दों पर अपनी पैनी क़लम चलाते हैं और साथ ही सुझाव भी पेश करते हैं। आज के तेज़ी से संक्रमित होते माहौल में राजनेता चुनावी रैलियों और धार्मिक मजमों की इजाज़त कैसे दे देते हैं, राजनीतिक स्वार्थ के लिए सब विवेक और भावना शून्य हुए लगते हैं। बहुत ही समसामयिक और सशक्त सम्पादकीय।
धन्यवाद प्रगति। आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है।
बेहतरीन सम्पादकीय, लगता है करोना भी अवसरवादी हो गया ।
अब जो ख़ुद बचना चाहते हैं वे बचें करोना आता जाता रहेगा ।
Happy New Year
Dr Prabha mishra
प्रभा जी, लगता है कि कहें Happy New Year to Corona!
वाकई कोरोना के कन्फ्यूजन से ज़्यादा देश के लोग इससे हर बार बेफिक्र दिखते हैं तो सभी दल सिर्फ कहने के लिए कुछ बोलते हैं बाकी करने में फेल हैं, वाकई सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना चाहिए
धन्यवाद आलोक भाई।
आदरणीय संपादक महोदय नमस्कार ।नवागत वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। आपके द्वारा प्रस्तुत सामयिक एसंपादकीय में मूल सा है भारत में कोरोना के वास्तविक स्वरूप का निरूपण किया गया है। आपके द्वारा व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कोरोना के दोहरे स्वरूप को दर्शाया जाना सच को उजागर करना है।
क्षमा जी, सार्थक टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
साल बदल है क्या लोग बदलेंगे।ये पार्टियां ये धर्म के ठेकेदार ये बदलेंगे।
आपके लेख पर बड़ी वाली सहमति है सर। कोरोना का रोना निकल जाता है भारत मे अपनी स्थिति देखकर। पार्टी सत्तारूढ़ हो या विपक्ष सभी के लिए आम आदमी की जान हाशिये पर है और कमाल है आम आदमी के लिए उसकी जान भी हाशिये पर है। खुद के चेते ही जान सुरक्षित होगी। सब स्वार्थ लिप्त है, उन्हें कुर्सी चाहिए और वो अपना ध्यान रखना ख़ूब जानते है, एक नेता बता दीजिये जो कोरोना से निबटा हो। पर हम और आप जैसे आम लोग जाते क्यों है इन रैलियों में। माघ स्नान मौनी अमावस्या आ रहा है देखिएगा जाएंगे सब स्नान करने वार्ना नदियां बुरामण जाएगी, उल्टी बहने लगेगी। ये तो हाल है। क्यों अभी भी नही जग रहे लोग। भूख समझ आती है , बच्चों का बिलबिलाना, मजबूरियां समझ आती है पर रैलियां, तीर्थाटन, छुट्टियों में घूमने जाने की मजबूरियां, हद है ।
आपके लेख ने झकझोर दिया सर।
और हर बार आप मंथन करवा ही लेते है।
धन्यवाद शिप्रा… आपका ग़ुस्सा जायज़ है।
यह एक Public secret बन चुका है जहां यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है कि सोने की बोरी सुनी जाए नमक की बोरी को सील लगाए। विचारणीय प्रश्न।
धन्यवाद उषा जी।
बहुत ही सार्थक और सामयिक संपादकीय। ऐसे समय में जब भारत में कोरोना की तीसरी लहर दस्तक दे चुकी है, चुनाव कराना कहीं से भी विवेकपूर्ण नहीं लगता है। रैलियों में जुड़ती भीड़ कोढ़ में खाज का काम करेगी। मुझे तो लगता है कि कोरोना बीजेपी के लिए यूपी को भी बंगाल में न बदल दे।
धन्यवाद नीरज भाई… आपकी टिप्पणी बहुत सार्थक है।
बहुत सटीक लेख .. जमीनी हकीकत यही है कि तमाम राजनीतिज्ञों द्वारा जनता को डराने और स्वयं रोड शो के नाम पर भीड़ इकट्ठा कर लेने से जनता में गलत मेसेज जाता है | जब एक जगह भीड़ इकट्ठी हो रही है तो फिर हर जगह होगी ही | रात का और सप्ताहांत का कर्फ्यू भी महज खानापूरी है | आम जनता वैसे भी जान हथेली पर ले कर चलती है .. उस को रोकने के लिए नेताओं को पहले अपने पर अंकुश लगाना होगा |
धन्यवाद वंदना जी इस सटीक टिप्पणी के लिए।
संपादकीय विचारों में उथल – पुथल तो मचाता है, स्थिति यही है, और यही पहले भी थी, दोनों लहरें देख लीं, अगर बचे तो तीसरी भी देखेंगे.” लाभ, हानि, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ” भारतीयों की इसमें हृदय से आस्था है, तो सब चलता है। नेता रैली करें या रोड शो, जाने वालों को अपनी चिन्ता करनी चाहिए, जान तो उन्हीं की है। चुनाव के अलावा, पर्यटन, धर्म स्नान, माघ मेला आदि में जाना भी स्वेच्छा है। जब लोगों को ख़ुद मरने की चिन्ता नहीं तो कोरोना चिन्ता क्यों करे? यूँ भी “कोरोना 18 साल का नहीं हुआ तो चुनावों में नहीं जाता”.।सरकार सुप्रीम कोर्ट कोई कुछ नहीं कर सकता। जो होना है हो कर रहेगा….. लोग मरेंगे फिर धीरे धीरे कोरोना भी अपनी मौत मरेगा, भारत की जनसंख्या बहुत बढ़ गई है है Malthus का सिद्धांत सही था और रहेगा।
शैली जी, आपने अर्थशास्त्र की Malthusian Theory of Population की अच्छी याद दिलाई।
बहुत ही यथार्थवादी टिप्पणी है सर आपकी। किन्तु राजनेताओं को सिर्फ कुर्सी प्यारी है। कैसा मजाक चल रहा है रैली में जहां लाखों की भीड़ है किन्तु कोरोना नहीं है इसलिए आज जनता भी कह रही है कुछ नहीं है कोरोना-वरोना अगर इस लापरवाही पर जल्द लगाम नहीं लगाई गयी तो स्थिति बहुत भयावह होगी।