NTA यानी कि नेशनल टेस्ट एजेन्सी का गठन 2017 में हुआ था और वर्ष 2018 से यह सक्रिय हुई। यानी कि कुल मिला कर छः सात साल का ही मामला है। और इस बीच इस परीक्षा करवाने वाली एजेन्सी के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट और देश के 25 में से 22 उच्च न्यायालयों में कुल मिला कर 1100 केस दर्ज किये गये हैं। बात तो सोचने लायक है कि क्या वर्तमान सरकार ने पूरे सरकारी तंत्र में से सबसे अधिक भ्रष्ट अधिकारियों को इस विभाग में नियुक्त किया। वरना जिस सरकार का प्रधानमंत्री इतनी कठोर छवि के व्यक्ति हों उनके शिक्षा मंत्री की नाक के नीचे इतना भ्रष्टाचार कैसे पनप सकता है!
अपनी बात…
ऐसा बहुधा होता है कि हम किसी विषय पर टीवी चैनलों में शोर सुनते रहते हैं; राजनीतिज्ञों के गला-फाड़ वक्तव्य सुनते हैं; समाचारपत्रों में लंबे-लंबे लेख पढ़ते हैं मगर मन ही मन सोच रहे होते हैं कि आखिर माजरा क्या है।
दरअसल जबतक भारत में ‘‘नीट’’ पर विवाद खड़ा नहीं हुआ था, तो मेरे जैसे विदेश में रहने वाले प्रवासियों को ‘‘नीट’’ का एक ही अर्थ मालूम था (NEET = Not Engaged in Education, Employment or Training) यानी कि वो युवा जो किसी प्रकार के पढ़ाई, नौकरी या प्रशिक्षण से नहीं जुड़े हैं। मगर जब भारत में शोर मच गया कि ‘‘नीट’’ में पेपर लीक हुए हैं, तो मैं सोच में पड़ गया कि ‘‘नीट’’ से भला पेपरों का क्या लेना देना है!
बहुत से पुरवाई पाठकों का संदेश भी आया, “तेजेन्द्र जी, आप ‘नीट’ पर लिखिये!” मैं हैरान और परेशान की जब मुझे इस संक्षिप्ताक्षर का अर्थ ही नहीं समझ में आ रहा तो इसपर कुछ लिखूं भी तो कैसे। एअर इंडिया के दिनों में कुछ लोग नीट पिया करते थे… यह तो स्मृति में है।
फिर मुझे याद आया कि आप सबने तो मेरे सुपुर्द एक ख़ास काम दे रखा है कि मैं सप्ताह भर शोध करूं और कोई न कोई नया विषय आप सबके सामने रखूं। तो मुझे यही बेहतर लगा कि मुझे ‘नीट’ का जो अर्थ मालूम है, उसे पूरी तरह से भुला दूं और भारतीय संदर्भ में इस संक्षिप्ताक्षर का जो अर्थ बनता है उसे समझूं; आपको समझाऊं और वास्तिवक समस्या क्या है उस पर एक गहरी नज़र डाली जाए।
चलिए, तो पुरवाई के पाठकों को भारतीय ‘नीट’ का अर्थ बताते चलें। भारत में ‘नीट’ कहते हैं नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (National Eligibility cum Entrance Test- NEET) को। इसका हिन्दी अर्थ आसानी से समझ आने वाला नहीं है… हिन्दी में इसे कहा जाता है – “राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा”। एक ज़माने में यह हर राज्य द्वारा अलग-अलग आयोजित किया जाता था। वर्ष 2013 में मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने देश भर में मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिये परीक्षा का मानकीकरण कर दिया और उसके बाद से राष्ट्रीय स्तर पर यह परीक्षा आयोजित होने लगी।
इस परीक्षा का आयोजन नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी कि NTA करती है। यह परीक्षा साल में दो बार होती है। इस परीक्षा के माध्यम से एम.बी.बी.एस., बी.डी.एस., आयुष और बी.वी.एस.सी. और ए.एच. सीटों पर प्रवेश के लिए परीक्षा के लिए चयन किया जाता है। यह केवल एम.बी.बी.एस. में प्रवेश करने की परीक्षा तक सीमित नहीं है।
पहले इन परीक्षाओं में राज्य स्तर पर गड़बड़ियां होती थीं। शायद इसीलिये उनकी इतनी चर्चा नहीं हो पाती थी। अब भी गड़बड़ी उन्हीं राज्यों में हो रही है मगर अब क्योंकि परीक्षा राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है, इसलिये मुद्दा भी राष्ट्रीय बन गया है।
आमतौर पर ‘नीट’ की परीक्षा में 200 प्रश्न पूछे जाते हैं और परीक्षार्थियों को केवल 180 प्रश्नों का उत्तर देना होता है। ऑब्जेक्टिव टाइप का पेपर होता है जिसमें मल्टीपल चॉयस की सुविधा होती है। अंग्रेजी, हिंदी, असमिया, बंगाली, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगु, उड़िया, कन्नड़, पंजाबी, मलयालम और उर्दू भाषाओं में ‘‘नीट’’ की परीक्षा दी जा सकती है। प्रत्येक सही उत्तर के लिये 4 अंक दिये जाते हैं। ग़लत उत्तर के लिये एक अंक काट लिया जाता है और जिन प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया जाता उस पर कोई अंक नहीं दिया या काटा जाता।
‘नीट’ परीक्षा में बैठने की न्यूतम आयु सीमा 17 वर्ष है मगर इसके लिये कोई उच्चतम सीमा तय नहीं की गई है क्योंकि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का एक फ़ैसला दिया जा चुका है।
पिछले सप्ताह ही हमने जिस विषय पर नज़र डाली थी यानी कि ‘किस्तों में रिश्वत’ उसका भी कुछ किरदार तो यहां भी दिखाई देगा ही। पैसे का लेनदेन तो इस प्रक्रिया में हुआ ही होगा। जिन बच्चों के माता-पिता किसी भी कीमत पर अपने बच्चे को डॉक्टर बनाना ही चाहते हैं वे पंद्रह बीस लाख रुपये पेपर लीक करवाने के लिये इन्वेस्ट करने में झिझक महसूस नहीं करते। हमने पिछले संपादकीय में भी कहा था कि हम अपने आपको नहीं बदल सकते मगर चाहते हैं कि सरकार हालात बदल दे। इस विवाद की जड़ में वे माता-पिता हैं जो किसी भी कीमत पर अपने बच्चे को डॉक्टर बना देखना चाहते हैं। इसके लिये वे स्कूल कॉलेज के अध्यापकों/प्राध्यापकों; नेट के अधिकारियों; राजनीतिज्ञों; और प्रिंटिंग प्रेस के कर्मचारियों को किसी भी हद तक भ्रष्ट करने को तैयार हैं।
NTA यानी कि नेशनल टेस्ट एजेन्सी का गठन 2017 में हुआ था और वर्ष 2018 से यह सक्रिय हुई। यानी कि कुल मिला कर छः सात साल का ही मामला है। और इस बीच इस परीक्षा करवाने वाली एजेन्सी के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट और देश के 25 में से 22 उच्च न्यायालयों में कुल मिला कर 1100 केस दर्ज किये गये हैं। बात तो सोचने लायक है कि क्या वर्तमान सरकार ने पूरे सरकारी तंत्र में से सबसे अधिक भ्रष्ट अधिकारियों को इस विभाग में नियुक्त किया। वरना जिस सरकार का प्रधानमंत्री इतनी कठोर छवि के व्यक्ति हों उनके शिक्षा मंत्री की नाक के नीचे इतना भ्रष्टाचार कैसे पनप सकता है!
यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि वर्ष 2018 में नेशनल टेस्ट एजेन्सी के विरुद्ध केवल 6 मामले दर्ज हुए थे जो कि सुरसा के मुंह की तरह फैलते चले गये। 2019 में 125; 2020 में 137; 2021 में 191; 2022 में सबसे अधिक 317; 2023 में 185 और अभी 2024 की पहली छमाही में 139 मामले दर्ज हो चुके हैं।
हालांकि पता चला है कि दायर किये गए 1,100 मामलों में से 870 का निपटारा कर दिया गया है; जबकि 230 मामले अभी भी लंबित हैं… इसका मतलब है कि निपटान की औसत दर लगभग 70% है… पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में दायर 89 प्रतिशत मामलों को सुलझा दिया गया है, यहां 62 में से 55 मामलों का निपटारा किया जा चुका है।
इस बीच पेपर लीक का मुद्दा एक राष्ट्रीय मुद्दा बन कर उभरा है। झारखण्ड, बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र से सीबीआई ने भी कुछ लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। ग़ौरतलब बात यह है कि ‘नीट’ विवाद की जांच सीबीआई कर रही है। सीबीआई ने बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र से कई आरोपियों को गिरफ्तार किया है। साथ ही सीबीआई पेपर लीक के सबूत भी इकट्ठा कर रही है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर वर्तमान हालात में कोई शख्स मेरिट लिस्ट में रैंक बढ़वाने का आश्वासन कैसे दो सकता है? पश्चिम बंगाल से ऐसा समाचार मिल रहा है। कहीं इसके लिंक बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र से जुड़े तो नहीं हैं? इसका पता तो जांच के बाद ही लग पाएगा।
एक नाम जो सबसे अधिक चर्चा में है उसका नाम है संजीव मुखिया उर्फ़ लुट्टन। पेपर लीक मामले में बिहार पुलिस संजीव कुमार उर्फ संजीव मुखिया उर्फ लुटन की तलाश कर रही है। संजीव मुखिया पेपर लीक गिरोह को नालंदा से ही ऑपरेट किया करता था… वह नालंदा उद्यान महाविद्यालय में टेक्निकल असिस्टेंट के पद पर कार्यरत था।
महाविद्यालय के अधीक्षक से जब संजीव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि संजीव कई सालों से यहां काम कर रहा है। जब टीवी पर पेपर लीक की खबरे आईं और उन्होंने उसमें संजीव की फोटो और नाम देखा तो सभी चौंक गए कि अरे ये तो हमारे साथ ही काम करता है। अधीक्षक ने कहा कि संजीव को देखकर कभी ऐसा नहीं लगा कि वह इतने बड़े नेटवर्क को चला रहा है। ध्यान देने लायक बात यह है कि ‘नीट’ पेपर लीक की परीक्षा 5 मई को आयोजित हुई थी और आरोपी संजीव 4 मई को आखिरी बार कॉलेज आया था। इसके बाद उसने अचानक कॉलेज आना बंद कर दिया।
इस बीच संजीव मुखिया की पत्नी ममता देवी के फ़ोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं जिनमें वे बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार, अन्य मंत्रियों और प्रशांत किशोर के साथ दिखाई दे रही हैं। आरोप तेजस्वी यादव पर भी लग रहे हैं और माँग यह भी की जा रही है कि शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को नैतिक आधार पर त्यागपत्र दे देना चाहिये।
मामले की गंभीरता से कोई इन्कार नहीं कर रहा। भारत के लाखों युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है। मगर क्या सत्ता पक्ष और विपक्ष संसद में इस मामले को लेकर ज़रा भी गंभीरता से व्यवहार कर रहे हैं। शुक्रवार को लोकसभा में वही पुराना दृश्य दोहराया जा रहा था। राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना था कि परंपरा को ताक पर सबसे पहले ‘नीट’ पेपर-लीक पर चर्चा करवाई जाए। वही चेहरे सत्ता पक्ष के दिखाई दे रहे थे, वही लोकसभा अध्यक्ष और उनका बार-बार कहना, “माननीय सदस्य… !” और सदस्यों का माननीय जैसा व्यवहार ना करते हुए नारेबाज़ी और हुल्लड़ कर रहे थे।
‘पुरवाई’ का संदेश भारत की संसद के नाम। भारतीय विपक्ष एक बार हमारा कहना मान कर लोकसभा के स्पीकर कहने पर राष्ट्रपति अभिभाषण पर बहस करना शुरू कर ले। अभिभाषण में जैसे ही ‘नीट’ का मुद्दा आए, वहां सरकार को जकड़ ले कि इस मुद्दे पर पूरी बहस होना ज़रूरी है। सत्ता पक्ष भी उस समय किसी बहानेबाज़ी से बचे। इस तरह परंपरा का निर्वाह भी हो जाएगा। ‘नीट’ पर गंभीरता से बात भी हो जाएगी। और आयकर देने वाला आम आदमी इस बात से संतुष्ट भी हो पाएगा कि उसके टैक्स पर संसद सदस्य मौज नहीं मना रहे बल्कि कुछ सकारात्मक काम कर रहे हैं।
आदरणीय संपादक जी,
लेख में ऑटो करेक्शन के कारण संपादकीय पढ़ने का आनन्द समाप्त होगया है।
जी चेक करता हूं। आभार।
जी अब पढ़ियेगा… क्या कुछ फ़र्क पड़ा।
बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत अच्छे तरीके से आपने अभिव्यक्त किया। आदरणीय
आभार भावना।
बहुत से पुरवाई पाठकों का संदेश भी आया, “तेजेन्द्र जी, आप ‘‘नीट’’ पर लिखिये!” मैं हैरान और परेशान की जब मुझे इस संक्षिप्ताक्षर का अर्थ ही नहीं समझ में आ रहा तो इसपर कुछ लिखूं भी तो कैसे।
पहले तो इस पर हैरानी है की आप जैसा विद्वान इंसान नीट के बारे में अनभिज्ञ है। आप हिंदुस्तान के हो सर जी यह कैसे भूल गए?
NTA यानी कि नेशनल टेस्ट एजेन्सी का गठन 2017 में हुआ था और वर्ष 2018 से यह सक्रिय हुई। यानी कि कुल मिला कर छः सात साल का ही मामला है। और इस बीच इस परीक्षा करवाने वाली एजेन्सी के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट और 25 में से 22 उच्च न्यायालयों में कुल मिला कर 1100 केस दर्ज किये गये हैं।
अब इस को देखिए यहां अगर 70% भी मामले। निपट गए तो उनमें कितनी विश्वसनीयता के साथ मामले निपटाए गए होंगे? यह भी संदिग्ध के दायरे में है। पहली बात तो यह की पेपर लीक होते ही क्यों है। अगर हो भी गए तो उसके बाद भले 1100 नहीं 110000 मामले दर्ज हो जाए लेकिन ये छात्रों के नुकसान की भरपाई नहीं कर सकते।
आपका यह संपादकीय केवल खबर मात्र बन कर रहा गया है। कारण आपके कहे से ही लीजिए जिसे नीट की जानकारी नहीं फिर भी जैसे तैसे सात समंदर पार रहकर भी ऐसे संपादकीय लिख रहे हैं तो इसका कोई तुक समझ नहीं आता। जब आपकी समझ इलेक्ट्रोल बॉन्ड पर नहीं थी तो आपने कहा की मेरी समझ नहीं बनी इसलिए नहीं लिख पाया। तो इस पर इतनी समझ कैसे बना ली आपने आश्चर्य की बात है।
आप इसके बजाए किसी और विषय को आधार बनाकर भी संपादकीय लिख सकते थे। वैसे ही नीट के साथ साथ नेट का पेपर लीक होने से लाखों हम जैसे विद्यार्थियों के जीवन संकट में पड़ जाते हैं।
शुक्रिया
महोदय, प्रतियोगी परीक्षाओं के बारे केवल वही जानते हैं जिन्हें यह प्रतियोगिताएं देनी है अथवा उनके अभिभावक।
जिनसे आपका कोई संबंध ना हो उन सभी प्रतियोगिताओं के बारे में सभी नहीं जानते हैंऔर जानने की आवश्यकता और इच्छा भी नहीं होती। यदि पेपर लीक का मामला इतना धूल ना पकड़ता तो क्या हर किसी को इस परीक्षा के बारे में ज्ञान होता।
संपादकीय के औचित्य को समझाने के लिये हार्दिक आभार सरोजिनी।
दुःखद!! देश के भविष्य.. युबा पीढ़ी को सदैव राजनीति का मुद्दा बनाया गया.. उन्हींके साथ इस तरह जा अन्याय भी होता रहा… सरकार चाहे जो हो.. परंतु आज अगर देश में अराजकता है तो कारण भी यही स्वार्थी और लालची राजनीति ही है।
पुरवाई के पाठकों को…सदैव एक गुरुत्वपूर्ण संपादकीय पढ़ने देने हेतु आपका हृदयतल से धन्यवाद सादर नमस्कार सर
सही कहा अनिम। हार्दिक आभार।
बहुत चिंताजनक स्थिति है। ऐसी परीक्षाओं में यह सब नया नहीं है। हम सब विद्यार्थी काल से सुनते आ रहे हैं।
अब नई तकनीक के आ जाने के कारण यह सब पकड़ में आ रहे हैं। देश को ऐसे प्रसंगों पर ईमानदार होने की आवश्यकता है।
आपने NEET की पूरी प्रक्रिया को बताया है, विस्तार से लिखा है। हमें आशा की जानी चाहिए कि सरकार ठोस कदम उठाएगी। इस दृष्टि से बननेवाले कठोर कानून भी इसकी रोकथाम के पहल की तरह देखे जाने चाहिए।
अशोक भाई, मुझे सच में अच्छा लगा जब कुछ मित्रों का फ़ोन आया कि यह संपादकीय राष्ट्रीय समाचारपत्रों में प्रकाशित होना चाहिये ताकि तमाम जनता को नीट के बारे में जानने में सहायता मिले। आभार।
यह शर्मनाक तो है ही, पर देश के युवा साथ ही उसके भविष्य के लिए भी घातक है।
आपने पड़ताल की और अच्छा लिखा।
हार्दिक आभार निर्देश निधि जी।
आपने नीट की पूरी प्रक्रिया को विस्तार से बताया है। आशा करनी चाहिए कि सरकार ठोस कदम उठाए
जी उम्मीद पर दुनिया कायम है।
सामयिक विषय ,अच्छा है ।
भारत में किसी भी छोटे आदमी के द्वारा डाला गया जाल और उसमें फंसे लालची अवसरवादियों का जंजाल
सुलझना या सुलझाना आसान नहीं है ।
Dr Prabha mishra
सही कहा आपने प्रभा जी।
शानदार संपादकीय; बधाई हो।संपादकीय पढ़ते हुए राजेंद्र यादव याद हो आए,ऐसी बेबाकी उनके संपादकीय के बाद आपके संपादकीय में देखने को मिली।
सही लिखा आपने, काश विपक्ष आपकी बात सुन ले हालांकि वो ऐसा करेगा नहीं क्योंकि विपक्ष का मकसद नीट नहीं बल्कि इमरजेंसी की चर्चा को टालना है और लोगो का ध्यान इमरजेंसी से हटाना है । सच ये है संविधान बदलने और आरक्षण हटाने का झूठा नरेटिव गढ़ कर विपक्ष इतनी सीटें ला सका है और अब वो ये झूठा नरेटिव गढ़ने में लगा है कि सत्ता में रहने का जनमत मोदी को नहीं उसे मिला है यानि NDA की 293 कम हैँ ,272 से और उसकी 239 अधिक हैँ 272 से ! और दावा ये कि ये संविधान के मानने वाले हैँ !
आपने एक नया कोण दिया है संपादकीय को।
Your Editorial of today gives us details of NEET and the raises an important question as to why the required precautions were not taken so that the paper does not get leaked.
Also,your sagacious appeal to both the opposition and the ruling party is timely.
Warm regards
Deepak Sharma
Deepak ji some serious steps need to be taken to root this evil out. My appeal is even to the parents who are loaded with money – not to induce officers and get the question paper for their children.
एक अति महत्वपूर्ण प्रवेश परीक्षा में ऐसी स्थिति अत्यंत शर्मनाक है,सर। यह प्रशासनिक चूक या राजनैतिक धांधली जो भी हो, लेकिन जो प्रतिभावान बच्चे इसके शिकार होते हैं, उन पर और परिवार पर क्या गुजरती है, यह मैंने करीब से देखा है, व्यापम घोटाले के समय।
इन परीक्षाओं को आयोजित करने वाली एजेंसियों का निष्पक्ष होना बेहद जरुरी है। अहम विषय पर संपादकीय के लिए आभार।
शैली जी इस साज़िश में प्रशासनिक और राजनीतिक लोग तभी भ्रष्ट हो सकते हैं जब विद्यार्थियों के अभिभावक रिश्वत के पैसों से उन्हें ख़रीदें। बदलाव हर तरफ़ ज़रूरी है।
जी, बिल्कुल सही है सर, रिश्वत तभी ली जा सकती है जब दूसरी तरफ कोई देने वाला हो और जो लोग इस प्रक्रिया से बाहर रहते हैं, उन्हें योग्य होते हुए भी खामियाजा भुगतना पड़ता है। आपने ठीक कहा बदलाव समाज और व्यक्तिगत स्तर पर होना चाहिए।
हार्दिक आभार शैली जी।
NTA और NEET के बारे में लिखा आपका संपादकीय विचारणीय है। दरअसल पहले मेडिकल और इंजिनियरिंग पढ़ने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थियों को अलग-अलग कालेजों में पढ़ने के लिए अलग -अलग फॉर्म भरने पड़ते थे, अलग -अलग स्थानों पर जाकर परीक्षाएं देनी पड़ती थीं। इसमें धन और समय दोनों का नुकसान होता था।
इसीलिए इंजिनिरिंग के लिए ZEE तथा मेडिकल के लिए NEET प्रारम्भ की गईं। इसमें देश के किसी भी प्रदेश के छात्र-छात्राएँ सम्मिलित हो सकते हैं।एक ही All india रैंकिंग होने के कारण वे भारत के किसी भी कॉलेज में दाखिला ले सकते हैं किन्तु विद्यार्थियों की सुविधा के लिए लाई गईं स्कीम कुछ भ्रष्टाचारियों के कारण विवाद का. मुद्दा बन गई है। आश्चर्य तो यह है कि हम जो लेता है वह तो भ्रष्टाचार के लिए दोषी कहलाता है किन्तु जो देता है उस पर भी मुकदमा चलाया जा ना चाहिए क्योंकि देने वाला ही अधिकतर भ्रष्टाचार कों बढ़ावा देता है।
जहाँ तक. पक्ष विपक्ष का सम्बन्ध है, कुछ वर्षो से विपक्ष का काम सार्थक चर्चा या समाधान सुझाने के अतिरिक्त सिर्फ व्यवधान पैदा करना रह गया है।
सिर्फ एक व्यक्ति के ईमानदार होने से कुछ नहीं होगा। ज़ब तक हर व्यक्ति सिर्फ अपने बारे में सोचेगा तब तक कुछ नहीं बदलने वाला। यह समस्या आज की नहीं, देश कों आजादी मिलने के बाद ही प्रारम्भ हो गई थी। मुझे याद है की कुछ वर्षो पूर्व मेरे एक परिचित ने ग्रामीण इलाके में स्कूल खोला तब उन्होंने बताया था कि लोग बच्चे को दाखिला दिलाने से पूर्व पूछते हैं क्या यहाँ बच्चे को नकल कि सुविधा मिलेगी। ज़ब माता -पिता कि यह मनः स्थिति है तो बच्चे क्या पढ़ेंगे?
सच तो यह है कि देश के पूरे सिस्टम को बदलने में अभी दशकों लगेंगे।
आपका पिछला संपादकीय भी भ्रष्टाचार पर आधारित था तथा यह भी।
सुधा जी इस बेहतरीन टिप्पणी के लिये आप धन्यवाद और आभार की पात्र हैं।
वर्तमान प्रधानमंत्री की स्वच्छ छवि के ठीक विपरीत , उन्हीं की नाक के नीचे ऐसा भ्रष्टाचार पनप सकता है ,सोचकर ही निराशा हुई । यद्यपि इस सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि भ्रष्टाचार तो व्यवस्था के रग रग में रचा-बसा है। एक प्रधानमंत्री किस किस को बदले और कितना? ऊपर से विपक्ष का असहयोग वाला रवैया,जो नकारात्मकता की हदों के पार जा पहुंचा है। …. लेकिन ये सब बिंदु इस बात को स्थापित होने से नहीं रोक सकते कि यह सत्तारुढ़ दल की विफलता के अतिरिक्त कुछ नहीं। प्रधानमंत्री देश की स्वच्छता को देखते रह गये लेकिन सिस्टम की सफ़ाई से चूक गये ।
अब भी अपेक्षा की जाती है कि कठोर कदम उठाते हुए दोषी लोगों को दण्डित किया जाये ताकि सरकार की काबिलियत पर भरोसा पुनः स्थापित हो सके।
यह बात आपने सही कही है सर कि ये भ्रष्टाचार फैलाने वाले भी तो हम ही लोग हैं, तो शोर मचाने से पहले एक बार अपने गिरेबान में क्यों नहीं झांक लेते।
जानकारियों से भरपूर संपादकीय के लिए आपको साधुवाद सर!
हार्दिक आभार रचना। हम सबको मिल कर प्रयास करना होगा, तभी कुछ नतीजे निकलेंगे।
नीट नीट ना रहा,,,,,एक दर्द भरी सच्चाई को उकेरता संपादकीय। यह भी एक तथ्य ही है की कठोर छवि वाले प्रधान मंत्री और उनके विश्वस्त मंत्री के नाक के नीचे होता रहा और खबर तक नहीं।!
भारत में पैसा है पर कुछ ऐसा लोगों के पास जो अपात्र हैं,ना टैक्स देना, ना वोट,,,बस पैसे की गर्मी है और उसी की सरजमीं है ।
सियासत है कि शहजादी मानती ही नहीं और आजकल मीडिया भी शहजादा है कुछ बोलता ही नहीं।
यह भी सच है कि जितने भी पेपर लीक ,भारती परीक्षा रद्द इस दशक में हुई हैं ???
क्या कहा जाए।
कुल मिलाकर चौथे खंबे को जिंदा रखता संपादकीय।
भाई सूर्यकान्त जी हम प्रयास तो कर रहे हैं। पुरवाई बिना शोर-शराबा किये मुद्दे की बात करने का प्रयास करती है।
पुरवाई के इस अंक का संपादकीय भारत में रिश्वतख़ोरी और भ्रष्टाचार के संस्थागत रूप लेने की कहानी बयाँ करते पिछले संपादकीय का ही विस्तार प्रतीत होता है।
भारत में पेपर लीक की घटना कोई नई नहीं है, हाँ NTA ने इसे नया आयाम और नया विस्तार दे दिया है। शायद इसी के लिए इसे बनाया गया था।
रही बात संसद में इस मुद्दे पर चर्चा होने या ना होने की, तो अगर चर्चा हो भी जाए तो परिणाम तो वही होना है , ढाक के तीन पात। उन बच्चों के नुक़सान की भरपाई तो नहीं हो सकती जिन्होंने इन परीक्षाओं में भाग लिया।
तरुण जी आप तो प्रशासन का हिस्सा हैं… तमाम बारीकियों को समझते हैं। आप की टिप्पणी तो अनुभवों पर आधारित है। आभार।
Neet and क्लीन
क्या कहने भ्राता श्रीं
साधु वाद
कपिल जी… जय हो
ईश्वर करे भविष्य में नीट नीट ही रहे।
रातों रात बुलाकर पेपर रटवाया गया । बताया जा रहा है 35 से 40 लाख रुपए लिए गये । एक अभ्यर्थी तो जेल में रहते हुए ही पास हो गया । कैसा मजाक है यह । कितनी बुरी व्यवस्था है। एक तो बच्चे पढ पढ कर इतने अवसाद से घिरे रहते हैं और अब इस हद तक भ्रष्टाचार। बहुत दुखद और शर्मनाक।
रेणुका जी सबको मिलकर आवां ही बदलना होगा… यदि सांचा ही ख़राब है तो भला उत्पाद कैसा होगा।…
सर आज आपके लेख में व्यंग्य न होते हुए भी मेरे चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट है कि कोई एक ऐसी चीज तो है जिसके बारे में आपको नहीं पता वह शायद इसलिए कि आप सालों से ब्रिटेन में है और नीटअभी 6-7 सालों से ही आया है। किंतु वास्तव में यह एक बहुत गंभीर मुद्दा है सिर्फ पेपर लीक ही नहीं किया गया बल्कि बल्कि चार मई की रात को बच्चों को
पेपर रटवाये गए हैरान कर देने वाली सबसे बड़ी बात जिन बच्चों के हाथ में पेपर था वह रट्टा मारकर भी इस पेपर को क्वालीफाई नहीं कर पाए चार लोगों में से एक के 135 एक के 195 और दो लोगों के 300 कुछ थे जबकि क्वालीफाई करने के लिए 620+ चाहिए होते हैं। यह पकड़ में वहां से आया जब टॉपर बच्चों के 718 और 719 नंबर थे जो कि नेगेटिव मार्किंग के हिसाब से कभी हो ही नहीं सकते देखिए सर कितना बड़ा खेल है
अंजु आपने स्थिति को बेहतर पकड़ा है। आपका प्रश्न लाजवाब है।
बहुत प्रभावी व सटीक लिखा है
हार्दिक आभार अनिल भाई।
आदरणीय तेजेन्द्र जी!
सबसे पहले तो आपके महत्वपूर्ण शीर्षक के लिए आपको बहुत- बहुत बधाइयाँ। वाकई नीट, नीट और क्लीन नहीं रहा। कहते हैं ना पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं। सो दिख गए।अभी उम्र 5 -6साल भी पूरी न हुई।
इस बार का संपादकीय पिछले संपादकीय के दूसरे भाग की तरह लगा।
हमने पिछले संपादकीय में भी लिखा था कि पहले व्यवसायिक परीक्षाएँ राज्य स्तर पर हुआ करती थीं 6-7 साल पहले मध्य प्रदेश का व्यापम का घोटाला देश का सबसे बड़ा घोटाला था जिसमें पीएमटी की परीक्षा को लेकर बड़े स्तर पर रिश्वत खोरी हुई थी जिसमें न जाने कितने लोग मारे गए थे और उनकी मृत्यु आज तक संदिग्ध है।
संभवतः इसीलिये NTA का गठन हुआ होगा।
वक्त ही कुछ ऐसा चल रहा है कि काबिलियत की कद्र नहीं है। पैसे के दम पर सब कुछ हो जाता है किंतु जो बच्चे जी जान से मेहनत करते हैं फिर उनका क्या????
और इस तरह पैसे देकर जो लोग डॉक्टर बनते हैं उनकी योग्यता तो संदिग्ध ही रहती है।
पहले मेडीकल के लिये पीएमटी और इंजीनियरिंग के लिये पी ई टी के नाम से राज्य स्तरीय परीक्षाएँ हुआ करती थीं।
हमने अपने पिछले संपादकीय में इस संबंध में चर्चा की थी किस तरह घोटाले हुआ करते हैं। इसमें मेडिकल संस्थान के बड़े-बड़े अधिकारियों सहित मंत्री तो मंत्री सीएम तक जुड़े हुए थे।
मध्य प्रदेश में पहले इतनी अधिक धांधली सुनी नहीं थी। यह सब शिवराज सिंह चौहान के राज्य में पनपा। सब जानते हैं कि वे स्वयं भी इसमें सम्मिलित थे स्वयं को बचाने के लिए न जाने कितने ही मरवा दिए गए।
तब भी इसके लिंक बिहार और यूपी से जुड़े हुए सुने गए थे। और रिश्वत तब भी चल रही थी मामला जब बहुत ज्यादा बढ़ गया मौतें नजर आने लगीं,तब चर्चा होने लगी।तब यह योग भले ही राज्य स्तरीय था लेकिन इसे राष्ट्र का सबसे बड़ा घोटाला कहा जाता है। इतब भी सीबीआई जांच हुई थी ऐसा याद आ रहा है। पर जहाँ बड़े-बड़े लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हों ,तो जांच स्वयं संदेह के घेरे में आ जाती है।
क्योंकि अब जब परीक्षाएँ ही राष्ट्र स्तर की हो गई हैं तो घोटाला भी राष्ट्रीय स्तर का ही है।
न्यायिक प्रक्रिया कितनी न्यायिक होगी यह तो वक्त बताएगा। ढोल की पोल धीरे-धीरे ही पता चलेगी।
यहांँ एक बार हम फिर कहना चाहेंगे की शिक्षा को इस तरह के हालातों से बचाना चाहिये। हम तो एक सिरे से नौकरी के मामले में और शिक्षा के मामले में जातिगत आरक्षण का विरोध करते हैं। और अगर आरक्षण देना भी है तो जो लोग समर्थ नहीं है उन्हें शिक्षा निशुल्क कर दो ,कॉपी किताबें फ्री में दे दो किंतु कम से कम परीक्षा की पवित्रता को बने रहने दो। जो जितनी मेहनत करें किसी भी जाति के हों ,परिश्रम का फल मिले।
सबसे ज्यादा जरूरत तो चुनाव में खड़े होने वाले लोगों के योग्यता की है। उनके लिए भी कुछ ऐसा नियम बने और कोई निश्चित शिक्षा अनिवार्य की जाए कि जो इतना पढ़ेगा ,इस डिग्री को हासिल करेगा ,उसे ही चुनाव में खड़े होने का अधिकार होगा। जिस तरह हर नौकरी में पुलिस वेरिफिकेशन होता है उसी तरह चुनाव लड़ने वालों के लिए भी यह जरूरी हो।
पर जो सबसे अधिक जरूरी है उसमें परिवर्तन की बात कोई भी नेता नहीं करता। और ना ही करेगा।
भ्रष्टाचार सुरसा की तरह मुँह फाड़े हुए हैं, किंतु उसमें अपनी बुद्धिमत्ता से प्रवेश करके बाहर आने वाला हनुमान जैसा कोई नहीं।
सिर्फ एक गैप होने से यह समझ में आया कि अगर सप्ताह में एक बार संपादकीय न पढ़ी जाए तो सप्ताह कितना लंबा खिंचा हुआ सा महसूस होता है और पुरवाई कितनी अधूरी सी हो जाती है।
और यह भी कि अगर अपन टिप्पणी देर से करते हैं तो लेखक लोग पढ़ते नहीं है और संपादकीय टिप्पणी पर लिखना आप भी भूल जाते हैं। खैर ….आपकी व्यस्तता तो समझ में आती है।
ईश्वर ना करे किअब संपादकीय लेखन में किसी तरह की ऐसी बाधाएँ उपस्थित हों। पर भ्रष्टाचार के लंबे हाथ अपनी पोल खुले ऐसा नहीं चाहते। तो सब कुछ संभव है। दुनिया भर की हर सच्चाई से रूबरू कराने के लिए आपके संपादकीय का शुक्रिया। और आप का भी शुक्रिया जो अपनी जान पर खेल कर भी वास्तविकता को लिखने से पीछे नहीं हटते।
पुरवाई का आभार तो बनता ही है।
आ0तेजेन्द्र जी हालांकि मैं प्रतिक्रिया नहीं दे पाई पर मैं इस विषय से परिचित हूँ। NEET और NET या और भी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये अक्सर छात्र बड़ी फ़ीस दे कर कोचिंग लेते हैं । कहा जाता है कि कोचिंग सेंटरस NTA
के अफ़सर , नेताओं का आपस में लेन देन का तालमेल होता है। हम अफ़सरों और नेताओं पर दोषारोपण करते हैं पर दरअसल पैसे वाले लोग अपने बच्चों को येन केन प्रकारेण अच्छे ओहदे पर बिठाना चाहते हैं चाहे वो इसके योग्य हों या नहीं और इसी खेल में प्रेस से या किसी और जगह से पेपर लीक करवा देते हैं ।आज अधिकतर लोग भ्रष्टाचार को बुरा नहीं मानते जबकि वो ख़ुद कर रहे हों। जब जनता भ्रष्ट है तो नेता भी वैसे ही तो होंगे।
दोषी हम सब ही हैं एक तरह से।
—-ज्योत्स्ना सिंह