रिट. लेफ्टिनेंट जनरल रामेश्वर राय

इन दिनों ख़बरों में बने भारत-चीन सीमा विवाद के ऐतिहासिक और तकनीकी पक्षों, युद्ध की संभावनाओं, भारत की तैयारियों सहित जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद लगभग साल भर में हुए बदलावों को लेकर भारतीय सेना के पूर्व कोर कमांडर, 16 कोर (नगरौटा, जम्मू-कश्मीर); पूर्व डायरेक्टर जनरल, असम राइफल्स जैसे पदों पर रह चुके रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल रामेश्वर राय से पुरवाई प्रतिनिधि की विशेष बातचीत।

सवाल – इन दिनों भारत-चीन सीमा विवाद का मसला सुरख़ियों में है।  यह एल.ए.सी. का मसला ख़ासा तकनीकी लगता है। हमारे पाठक इस मसले को इसकी ऐतिहासिकता व वर्तमान के साथ सरल शब्दों में समझना चाहेंगे।
रामेश्वर राय – ऐतिहासिक मामला तो ये है कि 1914 में शिमला में एक बैठक हुई थी जिसमें तत्कालीन ब्रिटिश शासित भारत के प्रतिनिधि, तिब्बत के प्रतिनिधि और चीन के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। ब्रिटिश इंडिया की तरफ से जो शख्स मीटिंग में थे, उनका नाम था – मैकमोहन। उस बैठक में ये तय हुआ कि तिब्बत को दो भागों में बाँट दिया जाए जिसमें एक होगा ‘इनर तिब्बत’ और दूसरा होगा ‘आउटर तिब्बत’। इनर तिब्बत पर चीन का पूरा नियंत्रण होगा जबकि आउटर तिब्बत स्वतंत्र रहेगा, लेकिन उसपर चीन की संप्रभुता रहेगी।
बातचीत के हिसाब से ये तय हुआ लेकिन जो समझौता था उसपर ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने तो हस्ताक्षर कर दिया लेकिन चीन के प्रतिनिधि ने केवल अपना नाम लिखकर छोड़ दिया। इसके बाद 1962 की लड़ाई हुई और चीन ने हमसे पूरा अक्साई चिन ले लिया जो 38 हजार स्क्वायर किलोमीटर माना जाता है। इससे पूर्व 1950 में पीएलए ने चीन को कंट्रोल में लेते ही तिब्बत पर भी अपना कब्जा जमा लिया था। तो जहां तक मैकमोहन की बातचीत है, चीन उसे मानता नहीं है। वो कहता है कि हमारा प्रतिनिधि वहां जरूर था, लेकिन हमने हस्ताक्षर नहीं किया।
इस संधि को न मानने के कारण ही चीन ने जब अक्साई चिन ले लिया तब भारत के साथ उसकी जो अंडरस्टैंडिंग हुई, उसको कहा गया – लाइन ऑफ़ एक्चुअल कण्ट्रोल। यानी कि जो भी उस लाइन को जहां तक एक्चुअली कण्ट्रोल करेगा, वहां तक उसकी सीमा मानी जाएगी। अब इसमें मुश्किल यह हुई कि आज की तारीख में जिसे हम अपनी एल.ए.सी. मानते हैं और जो चीन मानता है, उन दोनों में मतभेद है। चीन जो एल.ए.सी. मानता है, उसे वो ज्यादा पश्चिम यानी हमारी तरफ लाता है और हम जो एल.ए.सी. मानते हैं, उसे पूरब यानी चीन की तरफ ले जाते हैं।
ऐसे में जब हम अपनी लाइन मानेंगे तो उसे पीछे ढकेलेंगे और वो भी यही करेगा। इस समस्या को देखते हुए दो अलग-अलग एल.ए.सी. बनाई गयीं, इस तरह डिफरिंग लाइन ऑफ़ परसेप्शन बन गया। अब शांतिकाल में जब हम यह बताने के लिए कि हमारा कंट्रोल कहाँ तक है, पेट्रोलिंग एक्टिविटी करते हैं, तो वो हम अपनी लाइन तक करते हैं और चीन अपनी लाइन तक करता है, और इसके बीच का जो लैंड है, वो नो मैन लैंड है जिसका आजतक कोई फैसला नहीं हुआ। इस तरह एल.ए.सी. का मतलब ये है कि आपको फिजिकली वहां रहकर के नहीं आकुपाई करना है, बल्कि कंट्रोल जहां तक होगा वो हमारी लाइन है और कंट्रोल दिखाने के लिए हमलोग अपनी पेट्रोलिंग करते हैं, वो लोग अपनी करते हैं।
हर बार गर्मियों में चीन के सैनिक अपनी एक्सरसाइज करने आते हैं और करके वापस चले जाते हैं, इसबार भी चीनी सैनिक आए तो यही सोचा गया कि वे एक्सरसाइज के लिए आए हैं। लेकिन इसबार वे पूरे साजो-सामान के साथ आए थे और आकर गलवान में भी बैठ गए तथा फ़िंगर-4 से फ़िंगर-8 पर जम गए। पहाड़ जब नदी आदि में आकर मिलते हैं तो पतली सी एक लाइन बनती है, फ़िंगर से इसीका तात्पर्य है। भारत की तरफ से जब हम गिनते हैं फ़िंगर-1, फ़िंगर-2, फ़िंगर-3, 4, 5, 6, 7, 8। यहाँ पर जो हमारी लाइन ऑफ़ परसेप्शन है, वो फ़िंगर-8 तक है, लेकिन चीन कहता है कि तुम्हारी एल.ए.सी. फ़िंगर चार तक है। तो ये सब फ़िलहाल मान्यताओं की बात है। इसलिए अभी जो कुछ स्टैंड-ऑफ़ चल रहा, वो पर्सेप्शन मेटर पर चल रहा है।
बीच में अभी गलवान में हाथापाई हो गयी जिसमें हमारे बीस सैनिक शहीद हुए हैं और चीन ने भी माना है कि उसका एक सीओ और अफसर शहीद हो गए हैं, लेकिन मुझे यकीन है कि ये संख्या इससे कहीं अधिक ही होगी। तो ये पूरी कहानी अभी जमीन पर चल रही है और बातचीत भी जारी है। हमारा पक्ष ये है कि जो स्थिति अप्रैल में चीनी सैनिकों के यहाँ एक्सरसाइज़ के लिए आने से पहले थी, इसे फिर वैसा ही किया जाए और जो सैनिक एक्सरसाइज़ के लिए आए हैं, वे वापस चले जाएं। लेकिन मुझे लगता है कि अबकी बार वे आसानी से वापस जाने को तैयार नहीं हैं।
सवाल – यह कहा जा रहा कि भारतीय सैनिकों के पास हथियार नहीं थे। इस बात का क्या मतलब है और क्या इसका भी कोई तकनीकी पक्ष है?
रामेश्वर राय – देखिये, ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि पहले भी ऐसी झड़पों से जुड़े जितने वीडियो अबतक दिखाए गए हैं, उनमें कहीं भी सैनिकों के पास हथियार नहीं हैं। हाथों से ही वे पुलिंग-पुशिंग कर रहे हैं। इससे भी एक धारणा बन गयी है कि जो गलवान में हुआ, उसमें हमारे सैनिकों के पास हथियार नहीं थे। दूसरी चीज़ जो सुनने में आ रही वो ये कि किसी समझौते के चलते ऐसा आदेश था कि हथियार यदि ले जाएंगे तो फ़ायर नहीं करेंगे या फिर हथियार नहीं ले जाएंगे।
हालांकि ये बात कितनी सही है, ये सरकारी सूत्र ही बता सकते हैं। लेकिन एक सोल्जर होने के नाते मैं ये कह सकता हूँ कि यदि मेरे पास हथियार हो और किसीके साथ मेरी ऐसी झड़प हो, तो सेल्फ-डिफेंस में मैं हथियार जरूर चलाऊंगा क्योंकि मैं सोल्जर हूँ। एक बात यह भी है कि यदि मेरे पास हथियार है और उसे मैंने गले में लटका रखा है, तो किसीसे मल्लयुद्ध करने में मुझे दिक्कत आएगी। तो जिस तरह का ये पूरा घटनाक्रम रहा, जिस तरह की गुत्थमगुत्था हुई, यदि हथियार होते तो कुछ हथियार गुम भी हो गए होते उसके बारे में कोई कुछ नहीं कह रहा।
दूसरी चीज कि यह मामला जिस जगह का है, वो चौदह हजार फ़ुट की ऊँचाई पर है। मैं अट्ठारह हजार फ़ुट की ऊँचाई तक रह चुका हूँ, तो मुझे मालूम है कि ऐसी ऊँचाई पर अपने को संभालना मुश्किल होता है। ऐसे में, सैनिक के लिए अपने-अपने साथ-साथ हथियार और दुश्मन, दोनों को संभालना आसान नहीं है। इन सब बातों  और अनुमानों के आधार पर जहां तक मेरा मानना है कि शायद हमारे सैनिकों के पास हथियार नहीं थे; हालांकि मैं कन्फर्म नहीं हूँ। अब क्यों नहीं थे, ये एक अलग सवाल है, जिसका जवाब मेरे पास नहीं है।
सवाल – भारत-चीन के बीच चल रही मौजूदा खींचतान का क्या और कहां अंत देखते हैं आप? कहीं ये बात युद्ध तक तो नहीं जाएगी? यदि युद्ध होता है तो क्या यह पारंपरिक युद्ध होगा या उससे कुछ आगे यानि कि एटमी युद्ध जैसा कुछ हो सकता है?
रामेश्वर राय – इस समय के जो अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय हालात हैं, जैसे कि कोविड का संकट, इकॉनमी की बर्बादी जैसी चीजों से दुनिया लड़ रही है, ऐसे में मुझे नहीं लगता कि कोई बड़े युद्ध जैसी बात सोचेगा भी। लेकिन अभी जो समस्या है, उसमें दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने डंटे हुए हैं, ऐसे में अगर वो पीछे नहीं जाते हैं और अपनी गतिविधियाँ बढ़ाने लगते हैं और फायरिंग वगैरह होती है, तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि लोकल लेवल पर एक छोटा-मोटा एक्शन हो सकता है। लेकिन बड़े युद्ध की कोई संभावना नहीं है।
सवाल – चीन कह रहा कि युद्ध हुआ तो भारत को तीन मोर्चों पर लड़ना पड़ेगा। इसमें कितनी सच्चाई है और यदि ऐसा हुआ तो इसके मुकाबले के लिए क्या सामरिक रूप से देश तैयार है?
रामेश्वर राय – अभी चीन-पाकिस्तान के जो रिश्ते चल रहे हैं, जिसमें चीन ने ‘चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर’ में 62 अरब डॉलर के निवेश का तय किया है, इस तरह वो पाकिस्तान को अपना एक सहयोगी ही मानता है और पाकिस्तान भी उसके आगे इस तरह सरेंडर किए है कि लगता है जैसे वो उसका उपनिवेश बन चुका है। दूसरा, चीन नेपाल की बात कर रहा होगा, क्योंकि नेपाल में इन दिनों कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है, तो उसने भी आजकल लिपुलेख पर अपना क्लेम जताकर भारत को आँख दिखाना शुरू किया है। ऐसे में चीन को लग रहा है कि युद्ध की स्थिति में भारत के खिलाफ चीन, पाकिस्तान और नेपाल ये तीन मोर्चे हो जाएंगे। लेकिन वो शायद यह नहीं देख पा रहा कि इन तीन मोर्चों से मुकाबले में जहां तक भारत की क्षमता का सवाल है, तो हमारे सीडीएस जनरल विपिन रावत सहित जो हमारे प्रेजेंट आर्मी चीफ हैं तथा हम सब लोग भी दो फ्रंट वॉर और ढाई फ्रंट वॉर की बात पहले से ही करते रहे हैं। ढाई फ्रंट वॉर की बात में चीन-पाकिस्तान के एक-एक फ्रंट तथा आधा फ्रंट हमारी आंतरिक चुनौतियों का होता है। सो स्पष्ट है कि पाकिस्तान-चीन से लड़ने की तैयारी के बारे में हम पहले से ही बात करते आए हैं। बचा नेपाल तो आंतरिक चुनौतियों से निपटने के लिए हम जिस फ़ोर्स का इस्तेमाल करते आए हैं, नेपाल के लिए तो शायद वही काफी होगी।
सवाल – जिस तरह टीवी चैनलों में सीमा विवाद पर राजनीति की जा रही है, उससे सेना के मनोबल पर कैसा असर पड़ सकता है?
रामेश्वर राय – देश का जो सेंटिमेंट इस समय टीवी दिखा रहा है, वो काफी बढ़ा-चढ़ाकर और हाइपर करके दिखा रहा है। जबकि सेना इस बात को बहुत हाइपर तरीके से नहीं ले सकती उसे बहुत प्रोफेशनल तरीके से ही सोचना पड़ेगा। क्योंकि जो भी एक्शन सेना करती है, उसके साथ साजो-सामान और जिंदगी व मौत का भी सवाल होता है। लेकिन टीवी पर जो दिखाया जा रहा उससे हमारी तीनों सेनाओं पर कुछ न कुछ कर गुजरने या कर दिखाने का एक दबाव-सा बन जाता है। लेकिन वो ‘कर दिखाने’ का निर्णय जो हमारे नेता हैं, वही लेंगे। सेना के हाथ में निर्णय लेना नहीं है। सो जिस तरह मीडिया में चीजों को प्रस्तुत किया जाता है, वो ठीक नहीं।
अभी कल अख़बार में मैंने हेडिंग देखी कि – ‘सेना को खुली छूट दे दी गयी है’। अरे खुली छूट देने का कोई मतलब नहीं बनता है, सेना को कभी खुली छूट नहीं  मिलती और अगर खुली छूट मिल भी गयी तो सेना जो भी करेगी, अपने प्रोफेशनल असेसमेंट के बाद करेगी। तो ये जो कांफ्लिक्टिंग मेसेजिंग चल रही है, उससे  सेना पर एक दबाव बनता है और उससे उनकी प्रोफेशनल असेसमेंट में थोड़ी-बहुत एरर की गुंजाइश हो सकती है। मेरी समझ से ये माहौल ज्यादा गंद फैला रहा है और रक्षा-सुरक्षा से सम्बंधित हर एक व्यक्ति के प्रोफेशनल असेसमेंट में गलतियों की गुंजाइश बना रहा है। ये नहीं होना चाहिए। हर व्यक्ति को ऐसे मसलों को ज्यादा मैच्योर तरीके से ही लेने में भलाई है, इसको बढ़ा-चढ़ाकर बताने का कोई मतलब नहीं बनता है।
सवाल – आखिरी सवाल, आगामी अगस्त में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को हटे एक साल हो जाएगा। इस निर्णय से इस अवधि में क्या प्रदेश में कोई जमीनी बदलाव भी आए हैं?
रामेश्वर राय – बदलाव की बात करना अभी थोड़ी जल्दबाज़ी है। जल्दबाज़ी इसलिए कि जम्मू-कश्मीर के यूनियन टेरिटरी बनने के बाद से ऐसा सुनने में आया है कि वहां पर दिल्ली का कंट्रोल बढ़ गया है, लेकिन वहां की जो एडमिनिस्ट्रेटिव मशीनरी है, वो तो नहीं बदली है। अब दिल्ली में जो भी योजनाएं-नीतियां बनेंगीं, उसको क्रियान्वित करने का काम तो वहां की एडमिनिस्ट्रेटिव मशीनरी को ही करना है। राजनीतिक तौर पर एक पहलू यह है कि वहां के पीडीपी और नेशनल कान्फ्रेंस के जो लीडर हैं, उनकी कार्रवाइयों में अब निष्क्रियता आ गयी है। इनसे इतर कोई नई लीडरशिप वहां पनपने में अभी समय लगेगा।
इस स्थिति में अभी प्रदेश में एक पॉलिटिकल वैक्यूम है और पॉलिटिकल वैक्यूम की इस स्थिति में जो उपराज्यपाल वहां पर नियुक्त किए गए हैं, वे सशस्त्र बलों तथा स्थानीय पुलिस बलों के द्वारा वहां कहाँ तक शांति बहाली कर पाएंगे, ये कह पाना मुश्किल है। जहां तक आतंकी गतिविधियों का सवाल है, तो इस साल की शुरुआत से अबतक सौ के करीब आतंकी मारे जा चुके हैं। ये पहले छः महीने के अंदर बहुत बड़ा नम्बर है। ऐसे में, मैं यही कहूँगा कि जहां तक हार्ड कोर आतंकी गतिविधियों की बात है, तो हो सकता है कि उसमें थोड़ी गिरावट आ जाएगी, लेकिन गुड गवर्नेंस के लिए जो चीजें चाहिए, वो वहां की एडमिनिस्ट्रेटिव मशीनरी में एकदम से नहीं हो सकतीं। ये होने में समय लगेगा।
पुरवाई प्रतिनिधि – हमसे बातचीत के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
रामेश्वर राय – धन्यवाद।

2 टिप्पणी

  1. अत्यन्त सार्थक व तार्किक साक्षात्कार की प्रस्तुति के लिए “पुरवाई” को हार्दिक साधुवाद। लेफ़्टिनेंट जनरल रामेश्वर राय सहित समग्र भारतीय सेना को मैं सैल्यूट करती हूँ। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर आज तक मेरे परिवार की कई पीढ़ियों ने फ़ौजी अफ़सरों के रूप में व स्वतन्त्रता सेनानियों के रूप में देश की सेवा की है और वर्तमान में भी कर रहे हैं। अतः मैं उक्त गतिविधियों की गरिमा का समादर करती हूँ।
    हमारा मीडिया तत्सम्बन्धित ख़बरों को अनावश्यक बढ़ा-चढ़ाकर व हाइपर करके प्रस्तुत न करे, यही देश के हित में है।

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