
क़मर जलालाबादी शायद दुनियां के अकेले ऐसे गीतकार हैं जिनका एक गीत दशकों तक रेडियो सिलोन पर हर महीने की पहली तारीख़ को सुनाया जाता था। गीत के बोल थे – दिन है सुहाना, आज पहली तारीख़ है / ख़ुश है ज़माना आज पहली तारीख़ है। गीत किशोर कुमार की आवाज़ में है और इसका संगीत बनाया था सुधीर फड़के ने। फ़िल्म का नाम था पहली तारीख़ (1954) यह गीत लिखा था क़मर जलालाबादी ने। मुझे नहीं लगता कि हिन्दी सिनेमा में इससे अधिक लोकप्रिय कोई और गीत हो सकता है जिसकी रेडियो पर बजने की तारीख़ औऱ समय तय होता था।
फ़िल्मी गीत आम आदमी के जीवन का अभिन्न अंग सा बन चुके हैं। हम बचपन से बुढ़ापे तक इन गीतों को रेडियो, टेलिविज़न, कैसेट प्लेयर, सीडी प्लेयर, वीसीआर और अब यू-ट्यूब पर सुनते आ रहे हैं।
फ़िल्मी गीतों ने हमारे लोकगीतों को कहीं ठण्डे बस्ते में डाल कर रख दिया है। अपने हर त्यौहार, ख़ुशी के मौक़े पर हम कोई ना कोई फ़िल्मी गीत ढूंढ ही लेते हैं। फिर चाहरे राखी हो या होली, दीवाली हो या जन्मदिन, कोई ना कोई फ़िल्मी गीत आपकी ज़रूरत पूरी कर ही देगा।
बहुत से गीत हम हर वक़्त गुनगुनाते रहते हैं मगर हमें पता नहीं होता कि यह गीत लिखा किस गीतकार ने हैं। पुरवाई ने तय किया है कि वो गीतकार जो गीत तो अमर लिख गये मगर उनके नाम कहीं गुमनामी के अंधेरे में खो गये – उन्हें समय समय पर याद किया जाए और उनके गीतों के साथ उनके नाम को जोड़ कर देखा जाए।
क़मर जलालाबादी, असद भोपाली, राजा मेहंदी अली ख़ान, शिव्वन रिज़वी, एस. एच. बिहारी, गुलशन बावरा, इंदीवर, राजेन्द्र कृष्ण जैसे कितने ही नाम हैं जिनके गीत हमारी ज़बान पर चढ़े हुए हैं मगर उन गीतों के गीतकारों से हम परिचित नहीं हैं।
आपकी प्रिय पत्रिका ‘पुरवाई’ ने यह निर्णय लिया है कि आपको ऐसे गीतकारों से मिलवाया जाए जो 1942 से 2000 तक आपको अमर गीत तो देते रहे मगर आपके ज़हन में जिनके नाम जुड़ नहीं पाये। इसी सिलसिले में पहला नाम है क़मर जलालाबादी।
क़मर जलालाबादी (09 मार्च 1917 – 09 मार्च 2003 मुंबई)
क़मर जलालाबादी शायद दुनियां के अकेले ऐसे गीतकार हैं जिनका एक गीत दशकों तक रेडियो सिलोन पर हर महीने की पहली तारीख़ को सुनाया जाता था। गीत के बोल थे दिन है सुहाना, आज पहली तारीख़ है / ख़ुश है ज़माना आज पहली तारीख़ है। गीत किशोर कुमार की आवाज़ में है और इसका संगीत बनाया था सुधीर फड़के ने।
अमर नाथ अमर (दिल्ली दूरदर्शन वाले नहीं) ने ओमप्रकाश भण्डारी को सलाह दी कि अपना कोई शायराना नाम रखे। क़मर जलालाबादी ने दूरदर्शन पर अपने एक इंटरव्यू में तबस्सुम को बताया कि शायराना तख्ख़लुस अमर की तरज़ पर ही रखना था। बस सोचा कि क़मर बढ़िया रहेगा। तो बन गये क़मर जलालाबादी।
फ़िल्म का नाम था पहली तारीख़ (1954) यह गीत लिखा था क़मर जलालाबादी ने। मुझे नहीं लगता कि हिन्दी सिनेमा में इससे अधिक लोकप्रिय कोई और गीत हो सकता है जिसकी रेडियो पर बजने की तारीख़ औऱ समय तय होता था।
क़मर जलालाबादी का असली नाम था – ओम प्रकाश भण्डारी। उनका जन्म 9 मार्च 1917 को उस जलालाबाद में हुआ था जो कि भारतीय पंजाब के फ़ाज़िल्क़ा ज़िले में स्थित है।
बहुत से मित्र जलालाबादी के नाम से उन्हें अफ़ग़ानिस्तान के जलालाबाद से जोड़ देते हैं। यह जलालाबाद पूर्वी अमृतसर चुनाव क्षेत्र के निकट है।
उनकी पढ़ाई लिखाई अमृतसर में ही हुई जहां से उन्होंने पंजाब मैट्रिक की परीक्षा पास की। उन्होंने लाहौर में पत्रकारिता का कैरियर शुरू किया जहां उन्होंने दैनिक मिलाप और दैनिक प्रताप जैसी प्रतिष्ठित उर्दू अख़बारों में लिखना शुरू किया।
शायरी का शौक़ उन्हें बचपन से ही था। ज़ाहिर है कि शायरी उर्दू ज़बान में ही किया करते थे। उन्हें अपने एक दोस्त अमर नाथ अमर के अतिरिक्त किसी और से किसी भी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं मिलता था। परिवार तो पूरी तरह से ऐसी किसी भी गतिविधि के विरुद्ध था।
अमर नाथ अमर (दिल्ली दूरदर्शन वाले नहीं) ने ओमप्रकाश भण्डारी को सलाह दी कि अपना कोई शायराना नाम रखे। क़मर जलालाबादी ने दूरदर्शन पर अपने एक इंटरव्यू में तबस्सुम को बताया कि शायराना तख्ख़लुस अमर की तरज़ पर ही रखना था। बस सोचा कि क़मर बढ़िया रहेगा। क़मर का अर्थ होता है चन्द्रमा। और जलालाबाद के तो वे रहने वाले ही थे। तो बन गये क़मर जलालाबादी।
लाहौर में पत्रकारिता करते हुए उनकी मुलाक़ात पंचोली साहब से हो गयी। क़मर साहब एक शायर के तौर पर भी लोकप्रिय हो रहे थे। 1942 में उन्हें पंचोली साहब की फ़िल्म ज़मीन्दार में गीत लिखने का मौक़ा मिला। इस फ़िल्म में शमशाद बेग़म का गाया एक गीत “दुनियां में ग़रीबों को…” ख़ासा हिट हुआ था।
1944 में क़मर जलालाबादी पुणे चले आए। यहां उन्होंने प्रभात पिक्चर्स के साथ काम करना शुरू कर दिया। और 1946 में वे बम्बई चले आए।
क़मर साहब का फ़िल्मी कैरियर क़रीब 40 साल तक चला जिसमें उन्होंने लगभग 700 गीत लिखे। उनके गीतों को नूरजहाँ, जी.एम. दुर्रानी, सुरैया, शमशाद बेग़म, मुहम्मद रफ़ी, लता मंगेश्कर, आशा भोंसले, मुकेश, किशोर कुमार, मन्ना डे और गीतादत्त जैसे गायकों ने स्वर दिया।
1947 में क़मर साहब ने नूरजहाँ और त्रिलोक कपूर अभिनीत फ़िल्म मिर्ज़ा साहिबां के लिये अज़ीज़ कश्मीरी के साथ मिल कर गीत लिखे थे। फ़िल्म बहुत बड़ी हिट साबित हुई थी। इस फ़िल्म में पंडित अमरनाथ और हुस्नलाल भगतराम का संगीत था।
हुस्नलाल भगतराम के साथ उन्होंने कुछ अविस्मरणीय गीत लिखे। क्योंकि सुरैया कि दो फ़िल्मों प्यार की जीत (1948) और बड़ी बहन (1949) में उन्हें गीत लिखने का मौक़ा मिला। इक दिल के टुकड़े हज़ार हुए, कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा (मुहम्मद रफ़ी), ओ दूर जाने वाले, वादा ना भूल जाना (सुरैया), बिगड़ी बनाने वाले, बिगड़ी बना दे (सुरैया), चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है, पहली मुलाक़ात है जी, पहली मुलाक़ात है (लता मंगेश्कर, प्रेमलता) जैसे सुपर हिट गीत इन फ़िल्मों के लिये लिखे गये।
क़मर जलालाबादी के कैरियर को दो हिस्सों में बांट कर देखा जा सकता है। पहला हिस्सा जिसमें उन्होंने पंडित अमरनाथ, हुस्नलाल भगतराम, ख़ेमचन्द प्रकाश, ग़ुलाम हैदर,एस. डी. बातिश, श्याम सुंदर, सज्जाद हुसैन, सी. रामचंद्र आदि के साथ काम किया। दूसरे हिस्से में ओ.पी. नैय्यर, कल्याणजी आनन्द जी, सरदार मलिक, सोनिक ओमी, उत्तम सिंह एवं लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल के लिये गीत लिखे।

जानकारी से परिपूर्ण आलेख
This softness of life now only exists in the computer Software!!
well written article. full of knowledge. congrates.
बहुत अच्छी पहल सर। हम जैसे लोग कई भूले बिसरे गीतकारों को जान पायेंगे।
1942 से 2000 तक के फ़िल्मी अमर गीतकारों से पाठकों का परिचय करवाने की यह पहल स्तुत्य है। “पुरवाई” का सम्पादकीय हमेशा कुछ नया कलेवर प्रस्तुत करता है। सामग्री सर्वथा प्रामाणिक व रोचक है। बधाई।
अद्भुत
Behtreen
सच कहूँ तो हमारी पीढ़ी के लिए आप एक पुल हैं सुनहरे इतिहास से जुड़ने का। बहुत अच्छा सार्थक लेख।