परिचय साहित्य परिषद् द्वारा रशियन विज्ञान और सांस्कृतिक केन्द्र में लघुकथा पाठ और समीक्षा गोष्ठि का आयोजन किया गया। इस अवसर डॉ. पूरन सिंह, अशोक वर्मा, मुकेश शर्मा, शोभना श्याम, डॉ. सुषमा गुप्ता, ज्योत्सना कपिल, अंजू खरबंदा, निधि अग्रवाल, शोभा रस्तोगी, नीता सैनी जैसे देश के विभिन्न स्थानों से आए लघुकथाकारों ने अपनी लघुकथा का पाठ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया ने की।मंच कमल कुमार, गिरिराज शरण अग्रवाल, डॉ. बलराम, डॉ. अशोक भाटिया, सुभाष नीरव, बलराम अग्रवाल, अशोक जैन, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, सुभाष चंदर, संदीप तोमर और अनुज कुमार जैसे दिग्गजों से सुज्जित था। वहीं वीरेन्द्र वीर मेहता और सतीश खनगवाल जैसे लघुकथाकारों का विशेष सानिध्य रहा।

आयोजन की विशिष्टता यह रही कि सभी लघुकथाकारों को अपनी दो-दो लघुकथाओं का पाठ करने का अवसर दिया गया और हाथों-हाथ लघुकथा के दिग्गजों  द्वारा उनकी समीक्षा की गई। सभी लघुकथाएँ बेहतरीन रही। किंतु डॉ. पूरन सिंह की ‘बरसात’ और ‘शातिर औरत’, डॉ. सुषमा गुप्ता की ‘पूरी तरह तैयार’, मुकेश शर्मा की ‘सरकारी पावर का नशा’, अशोक वर्मा की ‘कमीज’, शोभना श्याम की ” कंपोस्ट” पहली बार लघुकथा पाठ कर रही झांसी की निधि अग्रवाल की ‘कुलच्छिनी’ को आलोचकों द्वारा विशेष सराहना प्राप्त हुई। सभी समीक्षकों और दिग्गजों द्वारा लघुकथा की रचनाधर्मिता, शिल्प और कथ्य पर प्रकाश डाला गया।

कार्यक्रम की एक बड़ी विशेषता सन्दीप तोमर द्वारा लघुकथा विधा में आलोचक की नई भूमिका का निर्वहन करना भी रहा। अति वरिष्ठ लोगों ने उनमें भविष्य के बेहतरीन आलोचक की संभावना की बात की, वहीं सन्दीप तोमर ने इस जिम्मेदारी का पृरी निष्ठा से निर्वाह करने का आश्वासन दिया।

विशिष्ट अतिथि के रूप में गिरिराज शरण अग्रवाल ने कहा कि ‘अब पाठकों के पास समय नहीं है कि वे लम्बे-लम्बे उपन्यास या कहानियाँ पढे। इसलिए लोग लघुकथा की ओर आकृष्ट होते है। और लघुकथा कहीं भी उन्हें निराश नहीं करती।’  कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. अशोक भाटिया ने इस अवसर पर लघुकथा को विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में स्थान देने के लिए जोरदार वकालत की और अपने महत्वपूर्ण विचार रखे। बलराम अग्रवाल ने लघुकथा को जीवन के उपन्यास की संज्ञा देते हुए कहा कि, ‘लघुकथा किसी भी अन्य साहित्यिक विधाओं से कमतर नहीं है। बेशक लघुकथा में कथ्य के उतार-चढ़ाव के लिए स्पेस नहीं है। किंतु इसमें वो सबकुछ है जो इसे अन्य विधाओं से विशिष्ट बनाती है।’

सबसे विशिष्ट टिप्पणी कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही देश की जानी-मानी कथाकार ममता कालिया ने की। उन्होंने लघुकथा को गद्य का दोहा करार दिया और कहा कि ’15-20 साल पहले तक पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथा का उपयोग ‘फिलर’ के रूप में किया जाता था। किंतु अब लघुकथा फिलर नहीं रही बल्कि ‘किलर’ बन गई है। देश की वरिष्ठ कथाकार और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता चित्रा मुद्गल समेत आज देश में अनेक ऐसे साहित्यकार है जिन्होंने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत लघुकथा से की थी। मैं आश्वस्त हूँ कि आने वाला समय पूरी तरह लघुकथा का ही होगा।’

इस अवसर पर डॉ. बलराम द्वारा सम्पादित दो लघुकथा संग्रह ‘लघुकथा लहरी’ और ‘छोटी-बड़ी कथाएँ’ तथा ज्योत्सना कपिल के लघुकथा संग्रह ‘लिखी हुई इबारत’ का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम का संचालन परिचय साहित्य परिषद् के संयोजक अनिल मीत द्वारा अनूठे अंदाज में किया गया। लघुकथा की दृष्टि से ये आयोजन ऐतिहासिक आयोजनों में गिना जाएगा।

– सतीश खगनवाल

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