1. शक़

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वो ग़ज़ब थे
जो…..
ज़िद पर अड़े
ढूंढ ली उन्होनें अलग राहें
ज़िन्दा होने में
यक़ीन रखते थे वो
न ठग सकी उन्हें
मरने के बाद स्वर्ग की
अवधारणा
किसी ज़ीनत
किसी हूर का
ख़्वाब नहीं देखा उन्होंने

हर शै पर वो …एतबार न किए
शक्की होना उनका
हितग्राही सिद्ध हुआ
नई खोज हमेशा
इंतज़ार करती रहीं उनका
उन्होंने…
ज़मीन पर पांव टिकाए हुए
शरीर के
चुम्बकत्व पर विचार किया
हवाओं के बहाव पर
आसक्त न हुए
नए आसमानों ने उन्हें
सिर पर बैठाया
और एक हम
उन्हें सिर पर उठाए
चल पड़े !

चल पड़ना …किसी के कदमों पर
अपने निशानों को खोना है

विलुप्त न होने की क़सम
पुरातन पीढ़ी ने हमें सौंप दी
और… निश्चिंत होकर पर्दा कर गए

हम मानते हैं
वो मरे नहीं सिर्फ़ पर्दा किए हैं
उस पार की दुनिया के बाशिंदे
कौतुक का विषय थे कभी
अब ….
उनके दिये अफ़साने
जड़ हो गए हैं
यही जड़ता
हर कौम पर ठप्पा है !

काश …हर बार
किसी इल्म को मानने से बेहतर होता
सोचते…..
पृथ्वी का एक चक्कर लगाते
और खोजते …..
कैसे आकाश को पृथ्वी
गिरने नहीं देती कभी भी

शक करते
उसके गुरुत्वाकर्षण पर….

स्वमसिद्ध होने की ओर
बढ़ा चुके होते क़दम
कहते तेज़ आवाज़ में …..

यदि …..
सफल हुआ मैं !
तो……
शक  करना
मुझ पर…….!!!

नए होने की कल्पना बुरी तो नहीं !!!

2. धूप
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ख़्वाबगाह में बैठ
सोचा था….. !
तू आज …!
धूप की तरह मिलेगा
पर तू……
कहीं और
बर्फ़ की तरह
किसी वादी में जम गया
इंतज़ार है मुझे ….
कि …किसी रोज़
तेरे पत्थर से दिल पर
इस कागज़ दिल की
इबारत नक्श कर जाऊँगी
तुझे पिघला कर
दरिया बनाऊँगी
तू पाएगा……
दरियादिली का खिताब !
बस ….एक इल्तिजा
कभी तू ….
किसी रोज़…..
सर्द मौसम में
मेरे धूप हो जाने की
कहानी भी
सुना देना किसी को…..!

3. पलायन
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एक दिन
पढ़ी मैंने
श्मशान पर एक कविता
और… वशीभूत हो गई

उतार दिए उसी वक़्त
चेहरे से मुखौटे
ताकि …..दिख सकूँ
वैरागी

पर …..
कंधों पर लटके मुखौटे
जिन्हें मैंने उतारा तो था
फेंका नहीं था….
पीछे होने के बावजूद
मेरी आँखों में
उस नई पहचान की
लोलुपता को भांप कर
डर गए
मैं !
एक बार फ़िर …
जलती चिताओं की
भस्म हटा

वापस लौट आई

कुछ क्षण का ही होता है सम्मोहन …
कैसा भी हो
अपने आप से भागना
छुप जाना
सच का सामना करना
इतना आसान नहीं होता…!!!

4. कुछ संजीदा औरतें
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देखतीं हैं सहज भाव से
सुख की कामना को
कहलाए जाने से बदचलन
नहीं होतीं आहत
उफ़ान की तरह
विद्रोह बैठ जाता है
पानी के कुछ छींटों से

उधारी पर है बरसों से
उनकी जीवित आस
चुकाती रहतीं हैं ब्याज
देह के चुकने तक
पर वो ….
पुरुष देह को
शिथिल अवस्था तक
ले जाने की मंशा से
देना नहीं चूकतीं निमंत्रण
झोलियाँ भर लेना चाहतीं हैं
धन-धान से
प्रेम तो वैसे भी
अचरज ही है उनके लिए

बुरी होती है परछाई
मुर्दा खुशमिजाज औरतों की
अचंभा हुआ था जानकर
जब…. व्यस्ततम बाजार में
लगभग घसीटते हुए
खींचकर माँ ने
कहा  था ….मत देखो उनकी तरफ़
डायन हैं
बंधक बना लेतीं हैं
बच्चों के पिता को
हतप्रभ से …..उनके चेहरों को
याद करके सोचते रहे
कैसे हो सकतीं हैं ?
सुंदर  औरतें इतनी बुरी !

समझ आई देर से यह बात
कि ….बुरी नहीं हैं
बुरी कहलाई जाने वाली औरतें ….
बस…..
उन औरतों के पेट की आग
बहुत  बुरी बन गई है
जो….
पेट के निचले हिस्से से ही
मिटती है

मैं दावे से कहती हूँ
वो बहुत संजीदा औरतें  हैं
व्यापार के बावजूद भी
कलंकित देह में
मौजूद
कौमार्य को
सहेज कर  रखती हैं …!!!

5. रांड
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कमउम्र की मासूम लड़की
विधवा हो गई थी आज
मंगली नहीं थी बस……
मंगलहीन हो गई थी
आज एक बार फिर से
बाँचा जा रहा था भविष्य
आकाशवाणी कर दी गई थी
रांड हो गई है
अब न जाने कितने घर खाएगी…..!!!

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