उपन्यास: कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया लेखिका: सुश्री संतोष श्रीवास्तव
प्रेषिका: एकता व्यास (गांधीधाम) कच्छ गुजरात
समीक्षक
जया केतकी
(सह संपादक, अक्षरा, भोपाल)
संतोष श्रीवास्तव की नई पुस्तक 252 पृष्ठों और 15 अध्यायों में लिखी गई “कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया” सचमुच उस दुनिया तक ले जाती है जो इतनी रहस्यमयी है कि आश्चर्यचकित भी करती है और कभी-कभी सहसा विश्वास ही नहीं होता कि ऐसी भी कोई दुनिया इस संसार में है। मुझे बचपन से अघोरी साधुओं को देखकर रोमांच होता और भय भी लगता।
मैं उन्हें देखते ही अम्मा के पीछे छुप जाती। सबसे अधिक भय उपजाती उनकी डरावनी आँखें। भभूत से लिपटी उनकी देह, साथ में टँगी झोली और न के बराबर वस्त्र। उनकी घुँघरू की आवाज आती तभी से मैं छुपने लगती। उन्हें देखने का, उनके पास जाने का मन भी करता पर अजीब सा डर मन में बसा रहता। अम्मा उन्हें दान देतीं। न जाने क्या देतीं, यह तो मुझे याद नहीं।
उनके बारे में पढऩे और जानने की कोशिश की पर बहुत कुछ नहीं मिल पाया। रेडियो समाचार और दूरदर्शन के माध्यम से जरूर कुछ देखने-सुनने को मिला। परंतु वह पर्याप्त नहीं था मेरी जानकारी के लिए। दो बार कुंभ मेले में जाना हुआ। एक बार इलाहाबाद और एक बार उज्जैन। उज्जैन के महाकुंभ में जब हम लोग अपने होटल की बालकनी में खड़े होकर धर्मावलंबियों का नजारा देख रहे थे तभी अचानक भीड़ छँटने लगी और नागा साधुओं का झुंड आता दिखाई दिया। फिर पता चला की नागा साधुओं का अखाड़ा होता है। और भी बहुत से अखाड़े होते हैं जिनके सदस्य बारी-बारी से डुबकी लगाते हैं। यह भी जानकारी मिली कि विशेष तिथियों पर यानी अमावस्या, एकादशी, पूर्णिमा आदि पर सभी अखाड़े एक साथ कुंभ स्नान करते हैं।
जब संतोष जी की यह पुस्तक मेरे हाथ में आई तो कुछ पन्नों को पलटते ही मुझे विश्वास हो गया कि यह एक अत्यंत शोधपूर्ण पुस्तक है। आसान नहीं था नागा साधुओं के बारे में इतनी वृहद जानकारीपूर्ण पुस्तक लिखना। निश्चय ही संतोष जी ने कई वर्षों की साधना के बाद इसे पूरा किया होगा। यही नहीं उनकी हर पुस्तक पूरी तरह जानकारी लेकर ही वे लिखती हैं चाहे ‘करवट बदलती सदी आमची मुंबई’ हो या कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया। यदि मैं इसे संपूर्ण शोध ग्रंथ कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
‘और खुलते गए द्वार’ बतौर भूमिका लिखी गई संतोष जी की कलम से लेखकीय वक्तव्य है। वे लिखती हैं विदेशियों के साथ अखाड़े के किसी भी व्यक्ति के साथ मेलजोल पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अखाड़े का मानना है कि विदेशियों के संपर्क में आने से नागा गलत संगत में पड़ रहे हैं। इसी भटकाव के चलते नागा ने विदेशी के साथ शादी की। वे स्वयं कहती हैं कि नागा साधुओं की रहस्यमई दुनिया यह उपन्यास, बल्कि दस्तावेज आप को सौंपते हुए मैं अंतर्मन से अभिभूत हूँ।
पेज 21 पर भाग-1 के अंतिम पृष्ठ पर वे कहती हैं-भूल हुई उससे, भूल करता रहा अब तक। ‘मंगल हमें अपना बना लो। हम तुम्हारे बिना जी नहीं पाएँगे।’ दीपा ने फिर पास आने की कोशिश की। वह खुद को छुड़ाकर कमरे से बाहर निकलने के लिए बाहर हुआ वह तो बैठक, पूजा घर, बरामदा और गेट से भी बाहर हो गया। पेज 22 पर भाग-2 की पहली ही लाइन में वे लिखती हैं अंतरिक्ष में न जाने कितने ब्लैकहोल हैं दिखलाई कहाँ देते हैं। नहीं दिखलाई दिया मंगल के मन का ब्लैक होल जिसमें वह धीरे-धीरे धँसता जा रहा है।
पुस्तक का भाग 3 बहुत जानकारीपरक है जिसमें बताया गया है कि सप्तऋषि यानी सात ऋषियों को हम तारे के रूप में देख सकते हैं-मारीचि, वशिष्ठ, अंगिरसा, अत्री, पुलस्त्य, ट्पुलहा और कृतु। इनके नीचे एक नन्हा सा तारा अरुंधति है। जहाँ सप्तऋषि मंडल है वहीं उत्तर दिशा में सदैव विराजमान रहने वाला ध्रुव नक्षत्र है, बेहद चमकीला और बड़ा। इसी अध्याय के अंतिम पृष्ठ यानी कि 49 पर व्यक्त हैं-मैं तो वैज्ञानिक बनना चाहता था खगोल शास्त्री। पर ईश्वर मुझसे कुछ और कराना चाहते थे तो बन गया नागा। धर्म और अध्यात्म से पहले खुद को जोड़ूँगा फिर अन्य लोगों को। 14 वर्ष हो गए माता फिर भी पूर्णता पाने में अभी समय शेष है। चिलम ठंडी पड़ चुकी थी, कुटिया अपेक्षाकृत गर्म थी वह नींद के आगोश में समा गया। थोड़ी देर में जानकी देवी भी कंबल में मुँह ढाँपे खर्राटे भरने लगीं।
पेज 56 पर जानकी देवी ने मुस्कुराते हुए नरोत्तम की ओर देखा सारे कुंभ देख चुकी हूँ। अर्ध कुंभ सहस्त्र जिसे पूर्ण कुंभ भी कहते हैं। तब तो आपने जूने अखाड़े के नागा साधुओं का शाही स्नान भी देखा होगा। पूरे कुंभ मेले में यह शाही स्नान आकर्षण का केंद्र रहता है। मेले में आए श्रद्धालुओं समेत पूरी दुनिया की साँसें उस अद्भुत दृश्य को देखकर थम जाती हैं। यह तुम कैसे कह सकते हो? जब हम नागा नहीं हुए थे तब की बात है माता। कुंभ मेले में हमने खुद महसूस किया। बड़ा आकर्षित करता था न गाँव का इतिहास। वर्षों पहले उनकी सैन्य भूमिका। जब-जब देश ने उन्हें पुकारा यहाँ तक कि विदेशी आक्रमणकारियों से भी युद्ध लडऩे में पीछे नहीं हटे। 1260 में श्री महानिर्वाणी अखाड़े के महंत भगवा नंदगिरी के नेतृत्व में 22000 नागा साधुओं ने कनखल स्थित मंदिर को आक्रमणकारी सेना के कब्जे से छुड़ाया था। इस तरह की जानकारी देना आसान नहीं है। यह लेखिका के अध्ययन और परिश्रम दोनों की साक्षी है।
चौथे भाग में पृष्ठ 62 पर वे लिखती हैं -‘नियम है माता 24 घंटे में बस रात्रि भोजन है। जब हम तप करते हैं तो इस आवश्यकता को भी महसूस नहीं करते।’ महाकाल गिरी ने शंका का समाधान किया। बहुत खूब। कैथरीन ने देखा नरोत्तम गिरी का चेहरा थोड़ा गुस्सा गया था। आप मेरे सवालों से थके तो नहीं? मैं और भी ज्यादा जानना चाहती हूँ। पूछिए न। क्या महिलाएँ भी नागा साधु होती हैं? फिर भी परंपरा अनुसार बिना कपड़ों के कैसे रहती होंगी? होती है न। महिलाएँ भी नागा साधु होती हंै लेकिन वे पूर्णतया नग्न न होकर गेरुआ वस्त्र लपेटे रहती हैं। उन्हें बिना वस्त्रों के शाही स्नान करना भी वर्जित है। हमारे पंच दशनाम, जूना अखाड़ा ने प्रयागराज कुंभ में 60 महिलाओं को नागा बनने की दीक्षा दी। उनके घर वाले विरोध नहीं करते?
इसी अध्याय के प्रश्न 74 पर भी लिखती हैं- आप नंबर मत बोलिए मैं नंबर लिख कर ही अखाड़ों के बारे में लिख रही हूँ। कैथरीन ने बीच में टोकते हुए कहा। नरोत्तम गिरी मुस्कुराया। अच्छा देवी नरोत्तम गिरी को कैटरीन जैसी महिला पहले कभी नहीं मिली। जिज्ञासु, एकाग्रचित्र, कोमल किंतु कठोर भी। यह कोमलता और कठोरता उसके व्यक्तित्व को औरों से सर्वथा भिन्न बनाती है। इस उपन्यास की विशेषता है कि यह अधिक से अधिक संवाद करती है इस कारण रोचक भी है और पढऩे में मन भी लगता है।
भाग 5 के पृष्ठ 79 पर देखें पुरोहित जी से संवाद। अभी बता रहे हैं एक और पंथ है हमारे समाज में- अघोरियों का पंथ। क्या आप उनके बारे में जानती हैं। पुरोहित जी ने पूछा -हाँ मैंने सुना है। मैं उनके बारे में नहीं जानतीं। अगर आप कुछ बताएँगे तो मेरे ज्ञान में वृद्धि होगी। उनके बारे में तो आपको अष्ट कौशल गिरी अच्छे से बता सकेंगे। नरोत्तम गिरी ने मुस्कुराते हुए अष्ट कौशल गिरी की ओर देखा। हाँ, हाँ क्यों नहीं हम पहले अघोरी ही थे अष्ट कौशल गिरी ने चेहरे पर गंभीरता लाते हुए कहा -सुन सकेंगी माता अघोरियों के जीवन के बारे में। बहुत कठिन और जुगुप्सा भरा जीवन है उनका। फिर भी मैं सुनूँगी लेकिन पहले यह जानना चाहूँगी कि आप पहले अघोरी साधु थे फिर उस पंथ को क्यों छोड़ दिया।
13 वर्ष का था जब सौतेली माँ के अत्याचार से पीडि़त होकर मैंने घर त्याग दिया था और अघोरियों की संगत में पड़ गया था। सच में सौतेली माता बिल्कुल ऐसी होती हैं। पुरोहित जी ने कहा, लेकिन माता हमारी बुरी नहीं थीं। जैसे कैकेई राम को प्यार करती थीं और मंथरा के भडक़ाने में आकर उन्हें बनवास दे दिया था, वैसे ही हमारी माता रानी के भडक़ाने में आकर हम पर अत्याचार करती थी। भरपेट खाना भी नहीं मिलता था। 6 रोटी की भूख और दो रोटी मिलती थी खाने को। पिता से चुगली कर देती तो उनकी मार अलग पड़ती। हम भी कब तक सहते। एक दिन घर से भाग निकले और श्मशान पहुँच गए और अघोरियों से मुलाकात हुई।
कैथरीन गंभीर हो गई सच में इस संसार में कोई भी सुखी नहीं है सब अपने अपने दुखों का युद्ध लड़ रहे हैं।
इस संवाद को प्रस्तुत करने का आशाय यह है कि कैथरीन की हर जिज्ञासा का समाधान उसे नागा साधुओं की संगत में मिला। इसी भाग के पेज 90 पर वे लिखती हैं पुरोहित जी कैथरीन से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा आपको हिंदू अध्यात्म का बहुत ज्ञान है और आपकी रुचि भी है उसमें। यह हमारे लिए गर्व का विषय है। जी हाँ सबसे बड़ी बात यही है कि जब तक हमारी रुचि नहीं होती, हमारा अध्ययन नहीं होता तब तक हम कुछ भी बात सही ढंग से नहीं जुड़ सकते।

लेखिका के लेखन का वैविध्य देखिए वे सीधे नहीं कहतीं कि नागा साधु कपड़े नहीं पहनते। नरोत्तम और कैथरीन के प्रश्न उत्तर के माध्यम से इस बात को स्पष्ट करती हैं। नागा साधु प्रकृति और प्राकृतिक अवस्था को महत्व देते हैं। इसलिए भी वे वस्त्र नहीं पहनते। नागा साधुओं का मानना है कि इंसान निर्वस्त्र जन्म लेता है अर्थात् यह अवस्था प्राकृतिक है। इसी भावना को आत्मसात करते हुए नागा साधु हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं। नागा साधु बाह्य चीजों को भी आडंबर मानते हैं। केवल नग्न अवस्था ही नहीं बल्कि शरीर पर भस्म और जटा जूट भी नागा साधुओं की पहचान है।

पेज 91 पर आरंभ में उन्होंने बताया कि दिन भर कैथरीन भोजपत्र की खोज में भोजबासा के जंगलों में भटकती रही। उसे ध्यान आया कि अरे यही तो वर्ष है यानी उसके देश में भी इस तरह के पेड़ हैं जिसमें कागज के रिम की तरह छाल निकलती है पतली भूरी और सफेद यही तो है भोजपत्र।
इस भाग का एक रोचक दृश्य है। कैथरीन ने कहा और नौकरानी की लाई कॉफी ख्यालों में उड़ेलने लगी। कॉफी के बाद ब्रषभानु पंडित चले गए नौकरानी भी काम खत्म कर चली गई। प्रवीण ने हिम्मत कर कहा- आज मैं तुम्हें अपने घर ले जाना चाहता हूँ डिनर के लिए। अरे अचानक ही। कोई खुशखबरी है क्या? नहीं कहते हुए प्रवीण की आँखें झुक गईं। वह हिम्मत जुटाने लगा, शक्ति बटोरने लगा। शंकाओं से घिरे मन को लगा साल भर का साथ कहीं एक झटके में टूट न जाए। कहीं कैथरीन बिखर न जाए, इतना बड़ा धोखा!
फिर क्या है बताओ अभी रोककर कहती -अपनी पत्नी और बेटी से मिलवाने ले चल रहा हूँ कैथरीन। पल भर को कमरे में सन्नाटा छा गया। पल से मिनट, मिनट की संख्या बढ़ती उसके पहले ही प्रवीण ने शक्ति बटोरी- शेफालिका मेरी पत्नी है और जासमीन बेटी। अरे वाह बहुत सुंदर नाम है। मैं जरूर चलूँगी डिनर पर तुम्हारे घर वही नीली पोशाक पहन लूँ जो तुम्हें बहुत पसंद है जिसमेें मैं तुम्हें नीलपरी से दिखती हूँ। . . .
प्रवीण तो शादीशुदा नहीं भी होते तो भी मैं तुमसे शादी नहीं करती क्योंकि शादी नहीं करने का निर्णय मैंने तुमसे पहले ही ले लिया था। प्रवीण चकित होकर अपनी इस असाधारण महबूबा को देख रहा था। रही बात यह कि इस बात को सुनकर मैं तुम्हें छोड़ दूँगी ऐसा नहीं होगा। हमने प्यार किया है, हम बिना किसी रिश्ते के प्यार निभाएँगे हमारा प्यार बस प्यार होगा।
अंदर तक भिगोकर रख देने वाला यह दृश्य कितना मार्मिक है। इसे वे ही समझ सकते हैं जिन्होंने डूब कर प्यार किया है।
प्रवीण की पत्नी और बेटी जासमीन से मिलकर भी कैथरीन जरा भी विचलित नहीं होती। शेफालिका कहती है कि आप तो भारतीय अध्यात्म को बखूबी जान गई हैं शेफालिका। तुम्हें नहीं मालूम कैथरीन भारतीय नागा साधुओं पर उपन्यास लिख रही है। अरे वाह हमारा भारत देश दुनिया भर के लिए आकर्षण का केंद्र है। आप लिखिए आँकड़े जुटाने में मदद करूँगी। कितना साफ-सुथरा वार्तालाप है एक पत्नी का अपने पति की प्रेमिका से।
कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया के भाग 7 में कैथरीन के एक और चरित्र का खुलासा होता है। चलिए मेम साहब आज भोजन नहीं करना है? नहीं आज भूख नहीं है। मैं भी नागा साधुओं के साथ शाम को ही भोजन करूँगी। कमंडल में पानी हो तो पिला दो। . . .
कैथरीन ने डायरी में से भोजपत्र निकाला- ‘देखिए मैंने इस पर लिखने का प्रयास किया है।’
‘ओह तो आप भोजपत्र के बारे में जान गईं।’
मुझे आध्यात्मिक ग्रंथों की पांडुलिपियों के सुरक्षित रहने का कारण भी पता चल गया। यह बर्च की छाल है जो कभी पुरानी नहीं होती।
हमेशा नूतन रहने का वरदान मिला है इसे।
पेज 126 पर प्रश्न करते हैं अच्छा अंगों के अलावा जेवर गिरने से भी शक्तिपीठ बन गए। कैथरीन के इस प्रश्न का किसी के पास उत्तर नहीं था इसलिए महाकाल गिरि ने अपना वक्तव्य जारी रहा। वे कामाख्या कालीपीठ आदि के बारे में कैथरीन को विस्तार से बता रहे थे। कैथरीन को और भी बताने की इच्छा से नरोत्तम गिरी ने कहा महाकाल गिरी तंत्र की मुख्य 10 देवियाँ भी हैं जिन्हें दसमहाविद्या कहा जाता है। काली, तारा, षोडशी यानी त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। इन सभी महाविद्याओं की आराधना तांत्रिक करते हैं। इस तरह से लेखिका ने 10 देवियों की जानकारी भी पाठकों को दी है। 131 पेज पर दी गई इस जानकारी के अतिरिक्त भैरव बाबा के 8 रूपों की जानकारी और रुद्रावतार के विषय में भी विस्तार से बताया गया है।
जब नरोत्तम गिरी अपनी कठिन साधना को पूरा कर लौटते हैं तो पृष्ठ 137 पर उनकी हिचकिचाहट दिखलाई गई है। पूर्णत: नागा होने के बाद भी जब उन्हें नागा साधु बनने का प्रशिक्षण लेने आए नवोदित के बीच जाना होता है तो वह गुरु से एक वस्त्र धारण करने की अनुमति माँगते हैं। नरोत्तम गिरी गुरु जी के वचनों को अंगीकार करता है -‘कहाँ जाना होगा?’
‘कर्णप्रयाग के जंगलों में 100 नौजवान नागा साधु बनने का प्रशिक्षण लेंगे। तुम्हें 20 नौजवानों की टीम को प्रशिक्षित करना है। तुम्हारे साथ चार प्रशिक्षण कर्ता और होंगे लेकिन वे पूर्णतया दिगंबर नहीं हैं।
‘मुझे भी एक वस्त्र धारण करने की अनुमति दें।’
‘क्या तुम भी दिगंबर से एक वस्त्र धारी होना चाहते हो। उल्टी गंगा बहा रहे हो। 16 वर्षों से तुम तक साधना में लीन अब शरीर की चिंता करते हो।’
‘क्षमा गुरुदेव सभी प्रशिक्षक एक वस्त्र धारी रहेंगे इसलिए कहा क्षमा।’
यहाँ पर यह विचारणीय है कि एक नागा साधु को अपने शरीर की चिंता कैसे हुई। क्या उसे किसी ने चुनौती दी है। आज के नागा साधु आधुनिकता से परिपूर्ण हैं, इसका पता चलता है पृष्ठ 141 पर जहाँ प्रशिक्षण के लिए लैपटॉप का बैग लिए प्रशिक्षक जा रहे हैं और प्रशिक्षण की सारी सूचनाएँ हरिद्वार स्थित आश्रम में गुरुजी के पास लैपटॉप के द्वारा भेजते हैं।
भाग दस-पृष्ठ 153 पर वे लिखती हैं कि कैथरीन की आँखों में नरोत्तम की परछाई अभी भी समाई हुई थी। तभी वह देखती है कि आद्या ने कैनवास पर हुबहू नरोत्तम को उतार दिया है।
देखो आद्या मैंने भी कोशिश की थी पर तुमने तो कमाल ही कर दिया
आप किताब लिखो मामा मैं उस किताब की कहानी पर चित्र भी बनाती जाऊँँगी।
पृष्ठ 155 पर वृषभानु पंडित की उपस्थिति दर्ज है। आद्या जब उन्हें पेंटिंग दिखाती है, वह कहते हैं अरे यह तो भारतीय नागा साधु है।
‘जी हाँ जिनसे मिलकर मैं आई हूँ वही नरोत्तम गिरी।’
‘तुम्हारी किताब में सहयोगी बनेगी आद्या।’
‘हाँ मैं मामा की किताब की घटनाओं पर चित्र बनाऊँगी।
वाह इससे बढिय़ा और क्या हो सकता है। कैथरीन की सालों की मेहनत एग्जीबिशन में भी दिखे तो क्या बात है।
भाग 11 पृष्ठ 168 पर भाग 11 आरंभ हुआ है। लोक कलाकारों के लोक नृत्य देखकर कैथरीन मंत्रमुग्ध हो गई। आध्या के नागा साधुओं को लेकर प्रश्न भी अनंत थे। इतने सारे अखाड़े हैं आप लोगों के क्या कभी लड़ाई नहीं होती आपस में? नरोत्तम गिरी को आज्ञा के चेहरे पर जिज्ञासा भरा भोलापन बड़ा आकर्षित करता होती है ना लड़ाई तभी तो वेट भेजना कारों के शाही स्नान का समय और आने-जाने के रास्ते अलग-अलग हैं शैव और वैष्णव अखाड़ों में लंबे समय तक मतभेद रहे और खूनी संघर्ष भी हुए पर अपने ही पीढ़ी के आने के बाद से मतभेद कम हुए हैं। शिक्षा से बदलाव भी आया है।
पृष्ठ 171 वे आगे लिखते हैं इस बार हमने 14 जनवरी से 10 मार्च तक का समय शांति से गुजारा नरोत्तम ने। फिर जुदाई का वक्त आ गया है। हमारे इस दोबारा मिलन में ईश्वर सहायक है। वही व्यक्ति को मिलाता है, वही जुदा करता है वरना समुंदरों पर्वतों को लाँघ इस तरह मिलती क्या? अब तुम कंदराओं में, गुफाओं में, हिमालय की चोटियों पर होगी और मैं सिडनी की आधुनिक चकाचौंध भरी दुनिया में। हम तो संन्यासी-बैरागी हैं वही तो ठिकाने हैं हमारे। ठिकाने हैं, नहीं बना लिए हैं तुमने। मैंने बहुत बारीकी से तुमको पढ़ा है, परखा है नरोत्तम।
भाग12 में मैंने देखा कैटरीन चली गई। नरोत्तम गिरी 1 वर्ष तक कंदराओं में रहा। खुद को परिष्कृत कर मन को बाँधा। पृष्ठ 183 पर पहलगाम पहुँचते ही नरोत्तम गिरी का फोन बज उठा और नाम चमका कैथरीन बिलिंग। कैथरीन कैसे हो नरोत्तम हरिद्वार में कुंभ के बाद में पहाड़ों पर खुद को खँगाल कर चलाया था तो क्या पाया एक बेचैनी। यूँ लगा जैसे किसी की परछार्इं मेरे साथ चल रही है तो क्या मैं मानव नहीं।
जितना नरोत्तम गिरी कैथरीन से बचना चाह रहा था उतना ही उसके दिमाग में बसती जा रही थी। कितने सारे मिसकॉल। ठीक तो हो न नरोत्तम। कहाँ हो?
‘हरिद्वार के जंगल स्थित प्रशिक्षण केंद्र में और तुम?’
‘वहीं अपने ठिकाने पर अपने अपार्टमेंट में, अपने बिस्तर पर जस्ट अभी लेटी हूँ। आज शाम से किताब लिख रही हूँ। पूरा एक चैप्टर कंप्लीट कर दिया पर तुम कुछ बेचैन लग रहे हो।’
‘कैसे जाना तुमने कैथरीन?’
‘बार-बार मेरे फोन की रिंग बजा कर काट रहे हो।’
‘कैसे समझ लेती हो तुम मुझे हजारों मील दूर रहकर भी अपने पास कर लेती हो।’
‘तुम तो मेरे पास ही हो नरोत्तम। तुम नागा नहीं होते तो मैं तुम्हारा अपहरण कर लेती।’
भाग 14 इस उपन्यास का सबसे बड़ा भाग है। पृष्ठ 202 पर वे लिखती हैं -एक बात कहूँ गुरुजी, भारत की प्रतिभा विदेशी पहचानते हैं। आपके देश के महात्मा गाँधी पर विदेशी निर्माता रिचर्ड एटनबरो फिल्म बनाता है तब जाकर भारतीय निर्माता जागते।
अंतिम भाग साधुओं के लिए सांसारिक परिवार का महत्व नहीं होता, ये समुदाय को ही अपना परिवार मानते हैं। नागा साधुओं का कोई विशेष स्थान या मकान भी नहीं होता। ये कुटिया बनाकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। सोने के लिए भी ये किसी बिस्तर का इस्तेमाल नहीं करते हैं बल्कि केवल जमीन पर ही सोते हैं। नागा साधु एक दिन में 7 घरों से भिक्षा माँग सकते हैं। यदि इन घरों से भिक्षा मिली तो ठीक वरना इन्हें भूखा ही रहना पड़ता है। ये पूरे दिन में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करते हैं। नागा साधु हिन्दू धर्मावलंबी साधु होते हैं जोकि हमेशा नग्न रहने और युद्ध कला में माहिर के लिए जाने जाते हैं। विभिन्न अखाड़ों में इनका ठिकाना होता है। सबसे अधिक नागा साधु जूना अखाड़े में होते हैं। नागा साधुओं के अखाड़े में रहने की परंपरा की शुरुआत आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी।
भाग 14 में कैथरीन की पुस्तक दिव्य पुरुष नरोत्तम नागा के अंतिम अध्याय के लेखन और इसी बहाने नरोत्तम से 11 वर्ष बाद कैथरीन की मुलाकात की दास्तान है। कैथरीन नरोत्तम आध्या प्रवीण आदि की लंबी बातचीत इस अध्याय का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। नाना और प्रोफ़ेसर शांडिल्य इस बातचीत का हिस्सा है। यहीं पर महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया भी आती है। शैलजा माता बताते हैं कि 6 से 12 साल तक हमें नागा बनने में लगते हैं कठोर नियमों से गुजरना पड़ता है 5 दिन हमारी योनि को शिथिल करने के लिए हमें भूखा रखा जाता है। चमारी काम इच्छा उसी दौरान समाप्त हो जाती बाकी शक्ति हमारी माता पार्वती और शिव भोला भंडारी हमें देते हैं। नागा साधु बनने से पहले उसका मुंडन किया जाता है और नदी में स्नान करवाते हैं महिला नागा साधु पूरा दिन भगवान का जब करती है सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना होता है। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत्त होकर शिवजी का जाप करना होता है। दोपहर में भोजन करते हैं और फिर से शिव जी का जाप करते हैं शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं और इसके बाद शयन।
मैम उनका अंतिम संस्कार कैसे होता है कैथरीन के लिए यह प्रश्न अप्रत्याशित था लेकिन वह उत्तर के लिए तैयार थी। उसकी अपनी जिज्ञासा ने नरोत्तम से इस बार की जानकारी भी पहले ही ले ली थी नागाओं का अंतिम संस्कार अग्नि से नहीं होता उनके शव को पहले जल समाधि दी जाती थी लेकिन नदियों का जल प्रदूषित होने के नाते अब पृथ्वी पर समाधि दी जाती है। सबको सिद्धि योग में बैठाकर भू समाधि दी जाती है।
पेज 228 पर कैथरीन और गिरिराज गिरि महंत की चर्चा है जिसमें हनुमानगढ़ी का किला बनने और शुजाउद्दौला के उपचार का विस्तार से वर्णन है। शुजाउद्दोला को कुष्ठ रोग होने की बात का यहाँ खंडन होता है और उनके घायल पड़े मिलने का समाचार पता चलता है।
इसके बाद कैथरीन अपने किताब को पूरा करने के लिए वापस लौट जाती है।
इस पुस्तक का सबसे रोचक प्रसंग आया है पृष्ठ 244 और 245 पर। नरोत्तम गिरी और कैथरीन का वार्तालाप –
इतने ख्वाब दिखा दिए। काश तुम साथ चलते। मैं गंगा का सौंदर्य रात में भी देखना चाहती हूँ।
कल रात मणिकर्णिका घाट की सैर कर लेना बाकी के घाट परसों।
नरोत्तम जाने कितने ख्वाब दिखा देते हो तुम। जिंदगी उन ख्वाबों में सिमट कर रह जाती है।
जिंदगी ख्वाब नहीं हकीकत है जिस तरह पूरी प्रकृति हकीकत है। हम भी तो प्रकृति का हिस्सा ही हैं न।
पर मैंने उस हकीकत से परे हटकर तुम्हें किताब में बाँध लिया है। हर पन्ने, हर पैराग्राफ, हर वाक्य, हर शब्द में तुम।
‘अब हम नागा जीवन की शपथ ले चुके हैं। अब हटेंगे तो पथभ्रष्ट कहलाएँगे।
मैं तुम्हें पथभ्रष्ट नहीं होने दूँगी नरोत्तम। प्यार कीमत नहीं माँगता इतना तय मानो।
‘परसों तुम चली जाओगी। कुछ दिन जरूर विचलित रहूँगा फिर वही साधना, जाप, तप। अब जीवन को इसी को दे दिया है न कैथरीन।’
‘काश इन सब बातों में मैं सशरीर तुम्हारे साथ होती। मन से तो हूँ ही हमेशा।’
तुम मेरे साथ ही हो हमेशा। कहते हुए नरोत्तम गिरी ने आँखें मूँद लीं। कैथरीन उस तिलिस्म में आकंठ डूबी खुद को भूलने लगी। नरोत्तम गिरी फरिश्ते के रूप में आई कैथरीन को देखता रह गया। जिसने कभी यह नहीं कहा कि तुम मेरे साथ आ जाओ। हमेशा यही कहा कि काश मैं तुम्हारे साथ होती। प्रेम की इस ऊँचाई की तो नरोत्तम गिरी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया इस पुस्तक का अंतिम भाग सबसे अधिक मर्मस्पर्शी है जिसमें नरोत्तम के इस संसार को छोडक़र जाने और कैथरीन के नागा साधु बन जाने की लीला व्याप्त है।

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