समीक्षित कृति  : सियासत (उपन्यास)
लेखक   : सुरेश कांत
प्रकाशक : प्रलेक प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड,
702,
जे/50, एवेन्यूजे, ग्लोबल सिटी, विरार (वेस्ट), ठाणे, महाराष्ट्र– 401303
आईएसबीएन नंबर  : 978-93-90916-88-7
मूल्य : 299 रूपए
सियासत वरिष्ठ और उत्कृष्ट व्यंग्यकार, साहित्यकार, कथाकार, आलोचक श्री सुरेश कांत का नवीनतम उपन्यास है। इसके पूर्व लेखक के कई उपन्यास और व्यंग्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी प्रमुख पुस्तकों में अफसर गए बिदेश“, “पड़ोसियों का दर्द“, “बलिहारी गुरु“, “गिद्ध“, “अर्थसत्य“, “देशी मैनेजमेंट“, “चुनाव मैदान में बंदूकसिंह“, “कुछ अलग“, “बॉस, तुसी ग्रेट हो!”, औरमुल्ला तीन प्याजा से बैंक, “जॉब बची सो…”, “लेखक की दाढ़ी में चमचाशामिल हैं। इनकी रचनाएँ निरंतर देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं। व्यंग्य लेखन में श्री सुरेश कांत की सक्रियता और प्रभाव व्यापक है। अपने लेखकीय सफर में सुरेश कांत ने रचनात्मकता के स्तर पर निरंतर नए आयाम जोड़े हैं। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के निवासी श्रीसुरेश कांत पेशे से पहले आरबीआई और फिर एसबीआई में टॉप मैनेजमेंट के पदों से सेवानिवृत्ति के बाद कम्पटीशन सक्सेस रिव्यू के संपादक और हिन्द पॉकेट बुक्स के प्रबंध संपादक रहने के बाद अब एक प्रसिद्द बहुराष्ट्रीय प्रकाशन संस्थान में सम्पादन परामर्शदाता है। सुरेश कांत की रचनाधर्मिता हमेशा सोद्देश्य रही है।
सियासतएक यथार्थवादी उपन्यास है। यह एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास है। है तो यह एक रियासत की कहानी पर सच यह है कि यह एक-दो रियासतों-रजवाड़ों की कहानी नहीं, बल्कि देश के सभी रियासतों-रजवाड़ों की कहानी है। लेखक ने अपने इस उपन्यास में अगनित दृश्य बुने हैं। छोटी-बड़ी घटनाओं के माध्यम से इन सबका रोचक रेखांकन उपन्यास में हुआ है। सुरेश कांत हमारे समय के ऐसे कथाकार हैं जिन्हें जमाने की नंगी हकीकतों का चेहरा साफ-साफ दिखता है। अनुभूतियों की सहजता सुरेश कांत के कथा साहित्य में देखने को मिलती है। इसका कथानक इसे दूसरे उपन्यासों से अलग श्रेणी में खड़ा करता है। अंत में, इस उपन्यास के बारे में स्वयं उपन्यासकार की टिप्पणी उल्लेखनीय है– आजादी के पूर्व से लेकर आजादी मिलाने तक के लगभग एक शताब्दी के काल-खंड को समेटता यह उपन्यास बताता है कि किस तरह आजादी महज हुक्मरानों की शक्लों का बदलाव भर रही; दुहने वाले बदल गए, पर दुही जाने वाली जनता की हालत ज्यों की त्यों रही, वह पहले की तरह ही दुही जाती रही और अभी भी दुही जा रही है। एक रियासत की कहानी है यह, पर किसी दूसरी रियासत की कहानी नहीं है, ऐसा कोई दावा नहीं है। सच तो यह है कि यह एक दो रियासतों-रजवाड़ों की नहीं, बल्कि सभी रियासतों-रजवाड़ों की कहानी है। एक रियासत के बहाने यह पूरे हिंदुस्तान की कहानी है। यह सियासत है उस प्यादे की, जो रियासत में अपने को फरजी यानी वज़ीर समझता ही नहीं, बल्कि बनना भी चाहता है। और उस फरजी की भी, जो असल में फरजी के भेस में प्यादा है।
यह उपन्यास प्यादों और नवाबों की जीवन्त कथा है। इस उपन्यास में नवाबों की अय्याशी और उनके ठाठ का यथार्थ चित्रण किया गया है। उपन्यास का कथानक नवाबों के जीवन पर केंद्रित रहते हुए रियासत, रजवाड़े की असली तस्वीर प्रस्तुत करता है। परिवेश विशेष पर केन्द्रित कथा-साहित्य में पात्र-निर्माण की चुनौती अधिक होती है। लेखक को एक निर्धारित दायरे के भीतर ही पात्र गढ़ने होते हैं। परिवेशानुकूल पात्रों का गठन और चरित्र-चित्रण ही कथानक को तार्किक और प्रभावी बनाता है। इस कसौटी पर सियासतखरी साबित होती है। उपन्यास का मुख्य किरदार तो नवाब सईदुद्दीन और उनके बेटे असद मियाँ उर्फ़ छोटे नवाब है, उपन्यास का ताना-बाना इन्हीं दो नवाबों के के इर्द-गिर्द बुना गया है। इस उपन्यास का नैरेटर चन्दरप्रकाश है, जो अपनी कथा के साथ गढ़ी मलूक के रैनबो की पूरी कथा सुनाता है। चंदरप्रकाश का ख़ुशनुमा मिज़ाज, मददगार स्वभाव और सबके साथ अच्छा व्यवहार उसके व्यक्तित्व को आदर्श बनाता है। यह बहुपात्रीय उपन्यास है। लेखक ने बहुत ही खूबसूरती से हर पात्र को गढ़ा है। यह उपन्यास अपने कथ्यात्मक कैनवास में हरखू चाचा, असद मियाँ, अनोखेलाल, शाही हकीम मुजफ्फर अली खां, बिल्किस बेगम, वजीरे-खजाना सरदारीलाल वैश्य, आयशा बी, शकील मियाँ, वजीरे-ख़ास उर्फ़ चीफ साहब, सादिक पहलवान, रईस मियाँ, हादी बेगम, जइसाखाने का मुंसरिम बलरामसिंह, हामिद मियाँ, असलम मियाँ, हफीज मियाँ, गुलबानू, अफसरी बेगम, नईमा, जाफर मियाँ इत्यादि पात्रों के जीवन, उनके सुख-दुःख को बयां करता है। रियासत की बेगमों के जीवन को तथा उनकी परेशानियों की गाथा के भावनात्मक पहलुओं को कथाकार ने बहुत ही सशक्त रूप से व्यक्त किया है। नवाबों, बेगमों और रजवाड़ों के नौकर-चाकरों के पहनाव-पोशाक, बोलचाल, सोच-विचार से लेकर बिंदास अंदाज तक को लेखक ने बारीकी से पकड़ा है, लिहाजा उपन्यास के सभी पात्र स्वाभाविक लगते हैं।
सुरेश कांत ने बड़ी कुशलता के साथ एक रियासत गढ़ी मलूक के नवाब, उनके उत्तराधिकारियों, बेगमों, नौकरों-चाकरों, अंग्रेज अधिकारियों की जिंदगी, उनकी सोच और उनके कामों का जितना अधिकारिक ब्योरा तफ़सीलों के साथ प्रस्तुत किया है उससे यह स्पष्ट होता है कि रियासतों से संबंधित गहन अध्ययन के कारण ही वे उपन्यास की विषयवस्तु को जीवन्त रूप में प्रस्तुत कर सके हैं। लेखक ने इस कृति में सामाजिक यथार्थ, नवाबों का वैभव, नवाबों के शौक, नवाब साहब के मिजाज, राजनीतिक एवं कूटनीतिक चालों और परिस्थितियों का सटीक शब्दांकन किया है। अनेक घटनाक्रम इस उपन्यास में देखने को मिलते हैं। कथाकार ने दीवान, जमादारों, खिदमतगारों, चोबदारों, मुंसरिम, अन्य नौकरों इत्यादि मातहतों के माध्यम से गढ़ी मलूक की व्यवस्था, दोगलापन, भष्टाचार, चापलूसी और जी हुजूरी का यथार्थ चित्रण किया है। उपन्यासकार ने अपने इस उपन्यास में मानव संवेगों का चित्रण बड़ी कुशलता से किया है। लेखक ने गढ़ी मलूक की सभ्यता, संस्कृति और विभिन्न महल, महलसरा, जनानखाने, इमारतों, दीवानखाना, पानदानखाना, तोशाखाना, तकियाखाना, बावर्चीखाना, दस्तरखान, भिंडीखाना, फर्राशखाना, जवाहरखाना इत्यादि संरचनाओं को बड़ी सूक्ष्मता से चित्रित किया है। उपन्यासकार ने नवाबों, बेगमों के अंदरूनी जीवन को बड़े ही रोचक, मार्मिक तथा मनोरंजन के साथ पेश किया है। यह उपन्यास अवैध संबंधों के रूप में सामंतवाद की एक प्रमुख मनोवृति को भी रेखांकित करता है।
गढ़ी मलूक का इतिहास लगभग तीन सौ साल पुराना है। गढ़ी मलूक के बहुत सारे किस्से हैं। उपन्यास का कथानक गतिशील है जिससे पाठक में जिज्ञासा बनी रहती है। उपन्यास के कथानक में कहीं बिखराव नहीं है। बुनावट में कहीं भी ढीलापन नहीं है। उपन्यास रोचक है और अपने परिवेश से पाठकों को अंत तक बांधे रखने में सक्षम है। उपन्यास के पात्र गढ़े हुए नहीं लगते हैं, सभी पात्र जीवन्त लगते हैं। यह उपन्यास जीवन के यथार्थ और सच्चाइयों से रूबरू करवाता है। भाषा सरल और सहज है। लेखक ने पात्रों के मनोविज्ञान को भली-भांति निरूपित किया है और साथ ही उनके स्वभाव को भी रूपायित किया है। भाषा सुगठित और प्रांजल है। कथानक का विस्तार सोची-समझी रणनीति के अनुसार किया गया है और उपकथाओं के तंतुओं से बुना गया है। बुनावट में कहीं भी ढीलापन नहीं है। सियासत उपन्यास अपने नाम को पूरी तरह से सार्थकता प्रदान करता है। इस उपन्यास में गहराई, रोचकता और पठनीयता सभी कुछ है। यह उपन्यास पठनीय है और पाठक की चेतना को झकझोरता है। एक सशक्त और रोचक उपन्यास रचने के लिए सुरेश कांत बधाई के पात्र हैं। आशा है कि सुरेश कांत के इस उपन्यास का हिन्दी साहित्य जगत में भरपूर स्वागत होगा।
समीक्षक : दीपक गिरकर
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर– 452016मोबाइल : 9425067036
मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com

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