बर्मिंघम में कंज़र्वेटिव पार्टी के वार्षिक सम्मेलन में पार्टी की नेता केमी बैडेनओच ने भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते को जल्द से जल्द पूरा करने का ऐलान किया था। भारत के विदेश मंत्री भी इस समझौते को लागू करने में ख़ासी रुची रखते हैं। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस स्वयं इस बात की घोषणा कर चुकी हैं कि जैसा पहले से तय है दोनों देशों को इस समझौते को दीपावली से पहले लागू कर देना है। मगर भारतवंशी सुएला ब्रेवरमैन का व्यवहार कुछ रेलगाड़ी के उन मुसाफ़िरों की तरह रहा जो स्वयं तो रेलगाड़ी में घुस जाते हैं और अपने आप को आराम से सुविधाजनक स्थिति में सेट कर लेते हैं। मगर जब कोई और यात्री डिब्बे में आना चाहे तो मुंह सिकोड़ कर कहते हैं कि भैया डिब्बा फ़ुल हो चुका है।

चाहे भारतीय हों या फिर भारतीय मूल के प्रवासी, हम सब इस बात में ख़ासा गर्व महसूस करते हैं कि भारतीय मूल का अमुक व्यक्ति किसी देश का सांसद, मंत्री या प्रधान मंत्री बन गया है। जब ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधान मंत्री बनने की कगार पर थे तो भारतवंशियों के दिलों में आशा की नई ज्योति सी प्रज्वलित होने लगी थी। इस बारे में बहुत कुछ लिखा जाने लगा।
एलिज़ाबेथ ट्रस ने ऋषि को गणना में पछाड़ा और अरविंद केजरीवाल की तरह औन-पौन वादे कर दिये जनता को। मुल्क चाहे कोई भी क्यों न हो, उसके नागरिकों को मुफ़्त की रेवड़ियां तो अच्छी लगती ही हैं। वही रेवड़ियां लिज़ ट्रस ने केजरीवाल से उधार लीं और ब्रिटेन की जनता को बांट दीं। 
जनता ने रेवड़ियां लपकीं और ऋषि को धता बता दी। सत्ता की कुर्सी पर विराजमान हो गयीं लिज़ ट्रस। ठीक वैसे ही जैसे कि बॉरिस जॉन्सन ने भारतीय मूल की प्रीति पटेल को ब्रिटेन का गृहमंत्री बनाया था, लिज़ ट्रस ने भी गोआ मूल की सुएला ब्रेवरमैन को इस विभाग की बागडोर सौंप दी। भारतवंशी एक बार फिर बल्ले-बल्ले करने लगे। 
पहले तो यह बताना आवश्यक है कि सुएला कि माँ तमिल हिन्दू हैं और गोआ की मूल निवासी हैं जबकि उनके पिता क्रिस्टी फ़र्नांडिस गोआ के ईसाई हैं। सुएला का जन्म मेरे ही शहर हैरो (ग्रेटर लंदन – मिडलसेक्स) में हुआ। सुएला ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री हासिल की है। वर्ष 2018 में सुएला ब्रेवरमैन ने रायल ब्रेवरमैन से विवाह किया था।  सुएला ब्रेवरमैन ने बौद्ध धर्म अपना लिया था और उन्होंने अपने पद की शपथ भी धम्मपद ग्रन्थ पर हाथ रख कर ली थी। 
अब बात आती है भारतवंशियों की ख़ुशी पर और उस पर हुए कुठाराघात पर। याद रहे कि बॉरिस जॉन्सन के प्रधानमंत्री काल में भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते  पर हस्ताक्षर किये गये थे। यह समझौता दीपावली से पहले लागू होना था। इस समझौते के तहत भारतीय विद्यार्थियों एवं व्यापारियों को आसानी से वीज़ा मिलने की शर्त भी शामिल है। 
बर्मिंघम में कंज़र्वेटिव पार्टी के वार्षिक सम्मेलन में पार्टी की नेता केमी बैडेनओच ने भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते को जल्द से जल्द पूरा करने का ऐलान किया था। भारत के विदेश मंत्री भी इस समझौते को लागू करने में ख़ासी रुची रखते हैं। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस स्वयं इस बात की घोषणा कर चुकी हैं कि जैसा पहले से तय है दोनों देशों को इस समझौते को दीपावली से पहले लागू कर देना है।
मगर भारतवंशी सुएला ब्रेवरमैन का व्यवहार कुछ रेलगाड़ी के उन मुसाफ़िरों की तरह रहा जो स्वयं तो रेलगाड़ी में घुस जाते हैं और अपने आप को आराम से सुविधाजनक स्थिति में सेट कर लेते हैं। मगर जब कोई और यात्री डिब्बे में आना चाहे तो मुंह सिकोड़ कर कहते हैं कि भैया डिब्बा फ़ुल हो चुका है। 
सुएला ब्रेवरमैन ने ही भारत के साथ ब्रिटेन के मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का विरोध किया है... उनका कहना है कि इससे ब्रिटेन में भारतीयों की भीड़ बढ़ सकती है। यह बयान उन्होंने बर्मिंघम के वार्षिक सम्मेलन के ठीक बाद दिया है। 
दि स्पेकटेटर पत्रिका को दिये गये एक साक्षात्कार में सुएला ने कहा कि जो लोग ब्रिटेन में वीज़ा समाप्त हो जाने के बाद भी ब्रिटेन में रुके रहते हैं उनमें भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है। उनका मानना है कि इस व्यापार समझौते के बाद ब्रिटेन में भारतीयों का आगमन कहीं अधिक बढ़ जाएगा और यह ब्रिटेन के ब्रेक्सिट के निर्णय के प्रतिकूल होगा। 
एक तरह से कहा जाए तो सुएला ने भारतीयों के विरुद्ध ब्रिटेन में एक मोर्चा खोल लिया है। इससे एक बात तो ज़ाहिर है कि हमें केवल नाम पढ़ कर प्रसन्न नहीं हो जाना चाहिये। भारत में रह कर भी कुछ भारतीय नाम भारत के पक्ष में नहीं बोलते तो फिर भला विदेश में रहने वालों को कौन रोक सकता है। 
द स्पेक्टेटर के अनुसार, ब्रेवरमैन इस फैसले से हैरान थीं कि लिज ट्रस की सरकार भारत के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को लेकर आगे बढ़ाने और इसमें इमिग्रेशन को भी शामिल करना चाहती है। गृह सचिव ने कहा, “मैं भारतीयों के लिए ब्रिटेन की सीमा खोलने वाली इस नीति को लेकर काफी चिंतित हूं… क्योंकि मुझे नहीं लगता कि लोगों ने इसलिये ब्रेग्जिट के लिए वोट दिया था।” साथ ही जब उनसे पूछा गया कि क्या वो ऐसे समझौते का समर्थन करेंगी, जिसमें छात्रों और उद्यमियों के लिए वीज़ा संबंधित नियमों को लचीला किया जाए, इस पर उन्होंने कहा कि मुझे इस पर कुछ आपत्ति है।
ब्रिटेन भारत के साथ व्यापार समझौते को सुनहरे मौक़े के रूप में देखता है। वहीं भारत चाहता है कि भारतीयों के पास ब्रिटेन में काम करने और वहाँ रहने के अधिक अवसर हों।
ब्रिटेन के साथ किसी भी तरह के कारोबारी समझौते में भारत की प्राथमिकता भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए वीज़ा नियमों में राहत हासिल करना ही होगी।
वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच, करों में राहत और व्यापार के लिए गतिरोधों को कम करने के लिए भारत कई देशों के साथ व्यापार समझौतों पर बात कर रहा है।
इसी साल भारत ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ कारोबारी समझौता किया है और ऑस्ट्रेलिया के साथ भी एक महत्वाकांक्षी व्यापार समझौता किया है। इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच करों में 85 फ़ीसदी तक की कटौती हो सकती है।
युरोपियन यूनियन के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बातचीत चल रही है।
सुएला ब्रेवरमैन के वक्तव्य पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय उच्चायोग द्वारा जारी बयान में कहा गया है, ‘‘एम.एम.ए. के अंतर्गत विस्तृत चर्चा के तहत, भारत सरकार ब्रिटेन की सरकार के साथ मिलकर काम करने को प्रतिबद्ध है, और वीज़ा अवधि से ज्यादा समय तक ब्रिटेन में रुकने वाले अपने नागरिकों को वापस ले जाने में मदद करेगी।’’ 
बयान के अनुसार, ‘‘गृह विभाग द्वारा दिखाये गए आंकड़ों के अनुसार, उच्चायोग को भेजे गए सभी मामलों में कार्रवाई शुरू की गई है। इसके अलावा ब्रिटेन को भी एमएमए के तहत कुछ वादों को पूरा करने को कहा है, जिसपर हमें ठोस कदम उठाए जाने का इंतज़ार है।’
एक सवाल यह भी उठता है कि क्या प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस ने किसी सोची समझी योजना के तहत यह बयान अपनी गृहमंत्री से दिलवाया है या फिर लिज़ ट्रस एक कमज़ोर प्रधानमंत्री हैं जिनका अपनी केबिनेट पर कोई नियंत्रण नहीं और उनके मंत्री जो चाहें उनके विरुद्ध बोल सकते हैं। अच्छा होता कि साक्षात्कार में अपनी बात कहने से पहले सुएल ब्रेवरमैन अपनी नेता के साथ केबिनेट की मौजूदगी में इस विषय पर विचार विमर्श कर लेतीं।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

12 टिप्पणी

  1. Very intriguing on the part of Braverman,the Home Minister,UK,to want to put curbs on the already announced policy of Truss,the PM of UK,to a happy exchange of friendly trade relations with India.
    Sharing your views on this turnaround as expressed in your Editorial.
    Regards
    Deepak Sharma

  2. आज के संपादकीय से यह स्पष्ट हो गया कि देश-काल कोई भी हो ,’राजनीति’, सदा ‘राज-नीति’
    रहेगी,राज करने की नीति न कि :राज्य चलाने की नीति’। एक और प्रचलित कहावत है -नया मुल्ला बहुत जोर से अज़ान देता है,। ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के लोगों में कुछ अवश्य ऐसे होंगे जो अपनी देश भक्ति अपने अपनाए गए देश के प्रति अधिक दृढ़ता से दिखाएंगे,शायद मूल ब्रितानियों से अधिक।

  3. केजरीवाल का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव जान कर बेहद दुःख हुआ और रेवड़िया माँगने की बात पढ़ कर आपके हास्य के तड़के की महक से मन प्रसन्न हो गया। पहले एक कहावत सुनी थी “बाभन, बिच्छी, हाथी, ई खायें आपन जाती”, यहाँ ‘बाभन’, की जगह, ‘भारतीय’, होना चाहिए।
    दुःखद है सुएला ब्रेवरमैन का कार्य। भारत-ब्रिटेन के संबंधों को बताते सुविचारित, शोध पूर्ण संपादकीय के लिए धन्यवाद.

  4. भारतीय कृषक समाज द्वारा कही गई कहावत से भारत और यू के के बीच हुए व्यापार समझौते पर ,चल रहे वैचारिक चिंतन के संदर्भ में सम्पादकीय बहुत संवेदनात्मक है ।
    राजनीति में अवसर वाद को महत्व देने वाले चरित्र को अपना लाभ जहाँ दिखता है वे वहाँ के हो जाते हैं यानी वोट के लिए भारत मूल के और पद के लिए ब्रिटेन के। अब समय ही तय करेगा कि दो देशों के बीच स्थिरता होगी या अस्थिरता ।
    जिस नाम का उल्लेख किया गया है वह मोहरा बनकर काम करेगा या उसकी अपनी कोई निष्ठा होगी ।
    Dr Prabha mishra

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