Sunday, October 6, 2024
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डॉ. कुमारी उर्वशी की कलम से प्रतिभा राजहंस कृत ‘सरप्राइज गिफ्ट’ की समीक्षा

पुस्तक : सरप्राइज गिफ्ट लेखिका : प्रतिभा राजहंस प्रकाशक : रचनाकार पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली प्रथम संस्करण : 2023 पेपर बैक मूल्य : 200
समीक्षक
डॉ. कुमारी उर्वशी
पुरुष वर्ग को सदियों से आदत है श्रेष्ठ सामाजिक स्थान पर विराजने की और महिलाओं को आदत है चुपचाप सर झुकाकर इस व्यवस्था को स्वीकारने की। जब तक एकतरफा व्यवस्था में दोनों सहमत रहे सब ठीक चलता रहा। यह सब आगे भी चलता रहता मगर यह नारीवाद या स्त्री विमर्श इस उटपटांग और एकतरफा व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाने आ गया। स्त्री के सशक्तीकरण की वजह से महिलाओं को अपने अस्तित्व, अस्मिता, इंसानियत का अहसास हुआ । महिलाओं के पाँव नई आज़ादी की हवा में शामिल हुए और पुरुष के पाँव अब भी अपनी पुरानी ज़मीन में धंसे के धंसे रहना चाहते हैं। यूँ भी कौन चाहेगा अपनी श्रेष्ठ स्थिति छोड़ कर किसी दूसरे के अस्तित्व को स्वीकारना। इसी अस्वीकार ने इस बात को तय किया कि बात अधिकारों से आरम्भ होकर ज़िद तक पहुंच गई। पुरुषवादी व्यवस्था नारी के सशक्त होने को हमेशा ही गलत ठहराती रही और पितृसत्ता ने बार-बार यह उदाहरण प्रस्तुत किया की पारिवारिक व्यवस्था में स्त्री की सहनशीलता का बड़ा योगदान था। अब तो हम आए दिन खबरे पढ़ते हैं स्त्रियों के अत्याचार की, पुरुषों को पीटने की। अधिकांश पुरुष वर्ग इससे क्षुब्ध हैं और इन समाचारों को हाइलाइट करना नहीं भूलते। समाज में लाखों में एक पुरुषों को प्रताड़ित करने वाली महिलाओं की बात तो होती है मगर इसके पूर्व सदियों से भयानक अत्याचार सहती महिलाओं की हालत पर हमारा समाज मौन रहता है।
इस वर्ष 2023 में रचनाकार पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली से प्रकाशित कहानी संग्रह ‘सरप्राइज गिफ्ट’ की लेखिका प्रतिभा राजहंस इस कहानी संग्रह में स्त्रियों के संघर्ष के कुछ ऐसे ही सामाजिक मुद्दे लेकर सामने आई हैं जिनमें स्त्रियां अपने सशक्त रूप में सामने आती हैं। कहानियों की भाषा और शैली लेखिका की समाज के प्रति जागरूकता और साहित्य के प्रति जवाबदेही को दर्शाती हैं जिससे यह कहीं महसूस नहीं होता कि यह उनका पहला संग्रह है।
‘स्पेशल केयर’ कहानी में शारीरिक रूप से अविकसित बेटी के हृदय में अपनी स्वयं की माँ के प्रति वितृष्णा के भावों का बेहतरीन वर्णन है। बेटी का माँ को बात-बात पर टोकना, उसे नीचा दिखाना, हर बात में उसकी कमी निकालना,उसकी रुचि में परिवर्तन होना तथा पढ़े-लिखे माता-पिता का मनोवैज्ञानिक व चिकित्सक से सलाह-मशविरा कर बच्ची के जीवन में बदलाव लाना, इन सभी का स्वाभाविक चित्रण है।
 हम सभी जानते हैं कि किशोरावस्था में अक्सर आपकी बातों को मानने और समझने वाले अच्छे स्वभाव के आपके बच्चों के व्यवहार में भी बदलाव आता है। क्योंकि यह समय होता ही ऐसा है। इस दौरान बच्चे मनोवैज्ञानिक बदलाव से गुजर रहे होते हैं। मनोवैज्ञानिक परिवर्तन की वजह से गुस्सा करना और विद्रोह करने जैसे बदलाव बच्चों में नजर आ सकते हैं। हार्मोन में होने वाले बदलावों की वजह से किशोरों को कई तरह के भावनात्मक परिवर्तनों से गुजरना पड़ता है। ऐसे में आवश्यकता है कि अपने बच्चों के जीवन के इस सुनहरे पड़ाव में उनके साथ खड़े रहें और हर कदम में उनका सहयोग करें। किशोरावस्था की ऐसी ही समस्याओं पर केंद्रित कहानी ‘स्पेशल केयर’ एक किशोरी की मनोवैज्ञानिक अवस्था को दर्शाती है साथ ही साथ बड़ी बात यह है कि लेखिका ने समस्या का समाधान भी दिया है।
नारी अस्मिता के सवाल से दो चार होती कहानी ‘सरप्राइज गिफ्ट’ अपनी शैली में बेहद आकर्षण रखती है। नारी अस्मिता अपने स्थूल रुप में नारी की वैयक्तिकता , व्यक्ति या मनुष्य के रुप में उसकी गरिमा , प्रतिष्ठा तथा पहचान है , जिसमें अपने जीवन पर खुद उसकी सत्ता होती है। भारतीय समाज में स्त्री अस्मिता का प्रश्न आधुनिक चेतना का प्रतीक है। कहानी की नायिका शशि का अपने पति के घर में पति द्वारा अपमान होता चला जा रहा है। उसे भोग की वस्तु समझकर वह आदमी अपने तरीके से इस्तेमाल कर रहा है, यह एक सभ्य समाज की नजर में बेहद चिंताजनक बात है। आज अनेक शक्लों में नारी के वजूद को धुंधलाने की घटनाएं शक्ल बदल-बदल कर काले अध्याय रच रही हैं। न मालूम कितनी महिलाएं कब तक ऐसे जुल्मों का शिकार होती रहेंगी। कब तक अपनी मजबूरी का फायदा उठाने देती रहेंगी।
 ‘सरप्राइज गिफ्ट’ कहानी में नायक समीर पहली पत्नी के देहांत के बाद नसबंदी करवाता लेता है क्योंकि उसके दो बच्चे हैं। बच्चों को नानी के घर भेज कर वह ‘शशि’ नाम की लड़की से विवाह करता है। विवाहपूर्व वह शशि से सारे कुटुंब के सामने इस तरह पूछता है कि उसे बच्चे चाहिए कि शशि प्रश्न समझ नहीं पाती है। समीर एक स्वार्थी और शक्की ही नहीं, बल्कि औरत को मात्र भोग्या समझने वाला पुरुष है। उसके आत्मकेंद्रित व्यवहार से आहत शशि निराश होने के बदले अपने पिता के सहयोग से पढ़ती लिखती है और एक सफल एडवोकेट बनती है। उसके सफल होने पर जब समीर उसे बुके देकर और शाल ओढ़ाकर फिर से अपने जाल में फँसाना चाहता है तो शशि पर्स से तलाकनामा का लिफाफा निकालकर समीर को देती है और उसके प्रश्न करने पर कहती है- ‘सिर्फ तुम्हारे लिए स्पेशल’। फिर सख्त आवाज में ‘गेट आउट’ कर देती है। यह नारी अस्मिता की कहानी है। यहां शशि को सशक्त किरदार में दर्शाया गया है। नायिका शशि पढ़ती है, पढ़ने में उसके पिता का सहयोग मिलता है, वह समाज के बनाए दकियानूसी ख्यालातों से लड़ती है और जीतती भी है।
खूबसूरत स्त्रियों के पास दिमाग नहीं होता यह उक्ति समाज में काफी प्रचलित है मजाक मजाक में कई लोग इस बात को दोहरा जाते हैं। कुछ इसी तरह की मानसिकता रखने वाले ‘कहानी का ट्रीटमेंट’ कहानी के पात्र संपादक महोदय एक कहानी की लेखिका जो खूबसूरत नहीं हैं, को प्रकाशित होने का झांसा देकर अपने जाल में फंसाना चाहते हैं।‌ उनकी नजर में एक नारी की बौद्धिकता की कोई कदर नहीं है। अपनी कहानियों की सशक्त स्त्री पात्रों को रचने वाली लेखिका प्रतिभा राजहंस ने इस कहानी में भी एक सशक्त स्त्री का निर्माण किया है जो कहानी के अंत में घोषित करती है कि, संपादक महोदय मैं आपकी कहानियों की छुईमुई नायिका नहीं हूं। जिनका आप अपनी लेखनी से बलात्कार करवाते हैं । और सुनिए मैं चटपटा नहीं बल्कि स्वस्थ और सार्थक लेखन पसंद करती हूं। 
‘कहानी का ट्रीटमेंट’ कहानी अपने मूल कथ्य में समाज की उस विकृति पर उंगली रख रही है जिसमें पुरुषवर्ग नारी को मात्र देह रूप में स्वीकार करता है, लेकिन नारी को उनके सामने मस्तिष्क बनकर अपनी क्षमताओं का परिचय देना होगा। अब उसे अबला नहीं, सबला बनना होगा। प्रत्येक भारतीय यह जानता और मानता है कि ‘मातृदेवो भवः’ यह सूक्त भारतीय संस्कृति का परिचय पत्र है। ऋषि-महर्षियों के तप से सिंचित इस धरती के जर्रे-जर्रे में गुरु, अतिथि आदि की तरह नारी भी देवरूप में प्रतिष्ठित रही है। आदि कवि महर्षि वाल्मीकि की यह पंक्ति ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ जन-जन के मुख से उच्चारित है। प्रारंभ से ही हमारे भारत देश में नारी शक्ति की पूजा होती आई है, फिर सवाल उत्पन्न हो रहा है कि क्यों नारी पर अत्याचार बढ़ रहे हैं? प्राचीन काल में भारतीय नारी को विशिष्ट सम्मान दिया जाता था। सीता, सती-सावित्री आदि अगणित भारतीय नारियों ने अपना विशिष्ट स्थान सिद्ध किया है। इसके अलावा अंग्रेजी शासनकाल में भी रानी लक्ष्मीबाई, चांद बीबी आदि नारियां रही हैं, जिन्होंने सभी परंपराओं आदि से ऊपर उठ कर इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। लेकिन समय परिवर्तन के साथ-साथ देखा गया कि देश पर अनेक आक्रमणों के पश्चात भारतीय नारी की दशा में भी परिवर्तन आने लगे। अंग्रेजी और मुस्लिम शासनकाल के आते-आते भारतीय नारी की दशा अत्यंत चिंतनीय हो गई। दिन-प्रतिदिन उसे उपेक्षा एवं तिरस्कार का सामना करना पड़ता था। वैदिक परंपरा में दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी के रूप में नारी की आराधना होती रही है। नारी स्नेह का स्रोत है,मांगल्य का महामंदिर है, परिवार का आधार है। उसके स्नेहिल साये में जिस सुरक्षा और शांति की अनुभूति होती है, वह हिमालय की हिमशिलाओं पर भी नहीं होती। इन विलक्षणताओं और आदर्श गुणों को धारण करने वाली नारी फिर क्यों बार-बार छली जाती है? ‘कहानी का ट्रीटमेंट’ कहानी के माध्यम से लेखिका ने जवाब दिया है कि स्त्रियां सशक्त हो सकती हैं यदि वे स्वयं पर विश्वास करना सीख जाएं।
‘परकन्नो’ कहानी है एक ऐसे पुरुष की जिसने दूसरों की  बातों पर यकीन कर अपनी पहली पत्नी का जीवन नरक कर दिया। मनोविज्ञान यह मानता है कि अच्छा स्वास्थ्य शारीरिक रूप से स्वस्थ शरीर भर नहीं, उससे कुछ ज्यादा होता है ; एक स्वस्थ व्यक्ति का दिमाग भी स्वस्थ होना चाहिए । एक स्वस्थ दिमाग वाले व्यक्ति में स्पष्ट सोचने और जीवन में सामने आने वाली समस्याओं, का समाधान करने की क्षमता होनी चाहिए । मित्रों, कार्यस्थली पर सहकर्मियों और परिवार के साथ उसके संबंध अच्छे होने चाहिए । उसे आत्मिक रूप से शांत और सहज महसूस करना चाहिए और समुदाय के दूसरे  लोगों को खुशी देनी चाहिए । ‘परकन्नो’ कहानी का नायक अपने दिमाग से चलने वाला नहीं बल्कि किसी की भी बात में आजाने वाला है। इस कहानी में भी दूसरी पत्नी एक सशक्त स्त्री पात्र है जिसने पहली पत्नी का उद्धार किया।
हम आए दिन समाज में स्त्री जाति पर होने वाले अत्याचारों के वाकए टीवी चैनलों से लेकर अखबारों में पढ़ते ही रहते हैं। दिल्ली स्थित एक सामाजिक संस्था द्वारा कराए गए अध्ययन के अनुसार भारत में लगभग पांच करोड़ महिलाओं को अपने घर में ही हिंसा का सामना करना पड़ता है। इनमें से मात्र 0.1 प्रतिशत ही हिंसा के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने आगे आती हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि भारत में आज भी ज्यादातर महिलाएं इस बात से वाकिफ नहीं हैं कि उन्हें घरेलू हिंसा से बचाने के लिए सरकार ने घरेलू हिंसा अधिनियम बनाया है। यही वजह है कि इस अधिकार के बारे में जानकारी न होने के चलते पीड़िताओं की संख्या में हर रोज इजाफा हो रहा है। लेकिन ‘फैसला’ कहानी की नायिका तमाम कानूनों से वाकिफ है। अपने अधिकारों को जानने के बावजूद चुप है क्योंकि वह आत्मनिर्भर नहीं होने की वजह से मजबूर है। वह पति की दुष्चरित्रता को बर्दाश्त करती है क्योंकि उसको अपने पति के पैसे से ही अपने बच्चे पालने हैं। हद तब हो जाती है जब पति अपने चरित्र में इतना गिर जाता है कि अपनी सगी बेटी से भी संबंध बनाना चाहता है। कहानी की नायिका जो पूरी कहानी में एक बेचारी के रूप में सामने आती है कहानी के अंत में बेटी के प्रति होते अन्याय का विद्रोह करती बेहद प्रभावी ढंग से सामने आती है और ऐसे पति का परित्याग कर देती है।
भारतीय समाज का एक बड़ा तबका भूत-प्रेत, जादू-टोना जैसी बाधाओं पर यकीन करता है। भूत बाधा के नाम से प्रचलित एक प्रकार के आवेश का लक्षण एवं प्रभाव ऐसा होता है जिसे पहली बार देखते हुए उसे बहानेबाजी या सनक नहीं कहा जा सकता। उसके प्रभाव प्रत्यक्ष दीखते हैं। उन कारणों से रोगी का जीवनक्रम ही अस्त-व्यस्त नहीं हो जाता है तथा कई बार तो जान पर बन आती है और बुरी तरह बर्बादी उठानी पड़ती है। दूसरों का ध्यान आकर्षित करने- सहानुभूति पाने के लिए कई लोग कई प्रकार के चित्र- विचित्र आचरण तो करते और मन गढ़न्त करतूतें भी दिखाते हैं। अक्सर गांव जवार में यह देखा जाता है कि स्त्रियां खुद को उपेक्षित पाकर इस तरह की प्रक्रिया में शामिल हो जाती हैं । ‘भूत खेला’ कहानी की नायिका बाढ़ में बह गए अपने पति की मृत्यु के बाद एक असुरक्षा में जी रही है। जब उसके देवर के विवाह की बात शुरू होती है तब यह असुरक्षा उसके मन मस्तिष्क को ज्यादा परेशान करने लगती है। अपने देवर से अपने विवाह के लिए वह भूत खेला जैसी पद्धति को अपनाती है क्योंकि सीधे-सीधे देवर को विवाह के लिए कहने की हिम्मत उसकी नहीं है। समाज में बैठे एक गहरे अंधविश्वास पर उंगली रखते हुए लेखिका ने स्त्रियों के भीतर अपने बच्चों के लिए लगाव और प्रेम को भी इस कहानी से दर्शाया है। क्योंकि कहानी की नायिका कहीं गहराई में इस बात से चिंतित है कि यदि वह दूसरा विवाह अपने देवर के अलावा किसी और से करती है तो वह व्यक्ति उससे तो प्रेम कर सकता है लेकिन उसके पहले पति से पैदा हुए बच्चों से नहीं और एक मां अपने बच्चों के साथ अन्याय नहीं होने देना चाहती। वास्तव में ‘एकाकी’ स्त्री-पुरूष अपने आप में अपूर्ण हैं, पुरूष जहां शारीरिक रूप से सबल है, वही स्त्री मानसिक रूप से मजबूत होती है।ईश्वर ने उनकी रचना इस प्रकार की है, कि वे एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी नहीं वरन पूरक हैं। केवल भावी संतति- सृजन के लिए ही नहीं, वरन उसके पालन-पोषण के लिए भी स्त्री-पुरूष एक दूसरे पर आश्रित हैं। माना जाता है कि  ईश्वर ने अपने आपको दो खण्डों में विभाजित किया, वे दो खण्ड परस्पर पति-पत्नी हो गये। प्रबुद्ध समाज ने विवाह जैसी संस्था बनाकर ईश्वर के इस संदेश को आत्मसात किया, तथा नर-नारी को पति-पत्नी के रूप में एक सूत्र में बांधकर उन्हें सम्पूर्णता प्रदान की।
संग्रह की एक कहानी  ‘छै हजार की नौकरी’ एक ऐसे बुजुर्ग पिता की मनोदशा को दर्शाती है जो बनिए की दुकान से हटाकर अपने बेटे को प्राध्यापक की नौकरी करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि पैसों से बढ़कर इज्जत होती है जो एक व्यापारी से ज्यादा प्राध्यापक की होती है। इस संग्रह की प्रत्येक कहानी अनायास ही अनुभूतियों से सराबोर करने वाली हैं। संग्रह में प्रत्येक परिवेश के साथ न्याय किया गया है। शहरी और ग्रामीण जीवन की कहानियां जो मूलतः स्त्री केंद्रित तो हैं लेकिन समाज की मानसिकता और मनोविज्ञान को बखूबी दर्शाती हैं। संग्रह की पहली ही कहानी ‘किंतु रोता कौन है’ में गरीबी ,अशिक्षा एवं पिछड़ेपन से त्रस्त समाज को बदलने की कसक साफ-साफ दिखती है। इस कहानी संग्रह की प्रत्येक कहानी एक समाधान प्रस्तुत करती है और यही इस संग्रह की विशेषता है।
डॉ कुमारी उर्वशी
सहायक प्राध्यापिका
हिंदी विभाग रांची विमेंस कॉलेज,रांची
झारखंड 834001
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