यों तो छंदोबद्ध वैदिक मंत्रों को ऋचाएं कहते हैं। इनमें पवित्रता और आध्यात्मिकता का बोध होता है इसलिए ये पूजनीय भी मानी जाती हैं लेकिन ऋचा जैन जिंदल की ऋचाएं उनके जीवन के विविध अनुभवों की कविताएं हैं जिनमें मानवीय मूल्यों के निरंतर फैलते क्षितिज का विस्तार देखा जा सकता है।
भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित जीवनवृत्त व्यास ऋचाएं ऋचा जैन का प्रथम काव्य संग्रह है जिसमें इन्द्रधनुषी मानवीय संवेदनाओं की कुल 62 कविताएं हैं। जितना अर्थपूर्ण इस संग्रह का शीर्षक है उतनी ही मार्मिक और संवेदनायुक्त इसमें संगृहीत रचनाएं हैं। इंजीनियरिंग की पृष्ठभमि से हिंदी काव्य-लेखन के क्षेत्र में आई ऋचा जैन के लिए कविता लिखना न केवल स्वयं की खोज और अंतर्मन की यात्रा है वरन् इस यात्रा के अनुभवों से बाह्य जगत को अवगत कराना भी है। उनकी कविताओं में खुद को अभिव्यक्त करने की एक छटपटाहट,एक बेचैनी साफ झलकती है।
षडयंत्र शीर्षक कविता में वह कहती हैं: “शब्द सताते रहे सालों साल,बिछाते रहे एक मायावी जाल,खुद से बातें करना,खाली दृश्य देख मुसकाना,अकथनीय पे झुंझलाना,उन्मत्त सी रहने लगी जब तक कि मैंने लेखनी नहीं उठाई।’’ संग्रह की एक अन्य कविता कोशिश भी कुछ इसी भाव की है: ‘‘मैं सीख रही हूं सच बोलना स्वयं से,मैं सीख रही हूं लिखना कविता।’’
यद्यपि संग्रह का शीर्षक किसी गणितीय सूत्र जैसा लगता है परंतु ऋचा जैन के लिए जीवन कोई गणित नहीं है जिसमें दो और दो का जोड़ हमेशा चार होता है। उनके लिए गणित का मतलब है: ‘‘जो जोड़ा वो जाता रहा,जो बांटा बस गया मुझमें।’’
कहते हैं कि कविता के लिए जिस जमीन की आवश्यकता होती है उसमें आत्मदान का सबसे बड़ा हिस्सा होता है। दुनियाभर के कवि उस जमीन की तलाश करते हैं जहां कविता का वृक्ष हजारों तरह से फलता है,प्रत्यन रहित होकर,प्रयत्न सहित भी। ऋचा जैन के इस संग्रह में भी ऐसी कविताएं मिलती हैं जिन्हें पढ़कर छोटी-छोटी दुनियाओं के पार जाया जाता है लेकिन छोटे अनुभवों की ऐसी भी कविताएं मिलती हैं जिनके पार शायद उन्हें खुद जाना पड़े।
संग्रह की पहली कविता उबुंटु ‘मैं’ से ‘हम’तक की यात्रा है। जीवन में साहचर्य और सामाजिकता के महत्व को रेखांकित करती यह कविता अपने परिवार से शुरू होकर बृहत्तर संसार तक जाती है और सामाजिक जीवन में एकता,बंधुत्व और प्रेम का संदेश देती है। उबुंटु अफ्रीकी सामाजिक दर्शन के अनुसार मानव जीवन का सार है। यह मनुष्य के भीतर उसके शाश्वत सदगुणों और मूल्यों का प्रतीक है। उबुंटु का अभिप्राय उस दर्शन से है जिसमें यह माना जाता है कि मैं हूं क्योंकि तुम हो,तुम नहीं तो मैं कुछ भी नहीं। प्रकारांतर से यह वसुधैव कुटुंबकम् के भारतीय दर्शन का अफ्रीकी संस्करण है।
संग्रह की पहली कविता ही ऋचा जैन के एक स्वतंत्र स्वर और अलग तेवर का अहसास कराती है। अन्य कई कविताएं जैसे ‘मां कहीं नहीं जाती’,‘कल मां घर आयी थी’,‘तुमसे ही’,‘धागों का मौसम’,‘वो बच्चा’,‘संग बुढ़ापा’,‘मीत’,आदि अपने परिवार के लोगों के साथ कवयित्री के मन के तादात्मय को दर्शाती है जिन्हें पढ़कर पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को लेकर मन में एक नई ताजगी का संचार होता है।
इन संबंधों को लेकर उनके अनुभव इतने सच्चे प्रतीत होते हैं कि कई जगहों पर वाग्स्फीति होने पर भी अखरता नहीं है। अछूते बिंब-प्रसंग और कई जगह कहन की भी अछूती भंगिमाएं इन कविताओं को एक अलग तेवर देती है और ब्रिटेन में युवा पीढ़ी की उभरती कवयित्री के रूप में ऋचा जैन को एक नई पहचान भी।
ऋचा जैन किसी वाद या विचारधारा अथवा विमर्श के अंतर्गत नहीं लिखती हैं। वह अपने अनुभवों को अपनी कविताओं में जीती हैं। उनकी कविताओं के केंद्र में मानवीय रिश्ता और इसका महत्व है। इसलिए इनमें मनुष्य के सुख-दुख,हर्ष-विषाद,आशा-उल्लास,संघर्ष-प्रतिरोध के अनेक भाव प्रसंग मिलते हैं जो अत्यंत विश्वसनीय होने के साथ साथ मर्मभेदी भी हैं।
मानवीय संवदेनाएं और मानवीय जीवन मूल्य इनकी कविताओं में द्रव और खनिज की तरह हैं। वह प्रवासी संसार के रचनाकारों पर लगनेवाले नास्टैल्जिया के आरोप से भी मुक्त हैं। संग्रह में ऐसी कवितायेँ कम हैं जिसे अतीत मोह पर आधारित कहा जाए। भारत की याद उनके लिए ‘व्यर्थ की सी बातों का एक व्यर्थ सा पहलू’ जैसा है। उनकी कविताओं का कथ्य उनके अपने अनुभवों की दुनिया से आता है।
प्रवासी रचनाकारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी रचनाओं में अपने परिवेश के बारे में भी लिखे। इस दृष्टि से देखा जाए तो संग्रह की कुछ कविताएं यूके के जीवन के बारे में भी हैं। भाषा,मेरी भाषा शीर्षक कविता ब्रिटेन में अंग्रेजी भाषा को बोलने को लेकर सार्वजनिक और सामाजिक जीवन में जो उदारता है,उसे रेखांकित करती हैं। यहां अंग्रेजी अन्य भाषाओं के समान ही एक भाषा मात्र है। इसके साथ किसी प्रकार की प्रतिष्ठा या श्रेष्ठताबोध नहीं जुड़ा है जैसाकि भारत में है।
ब्राउन पॉपी शीर्षक कविता प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को समर्पित है वहीं वेल्स नामक कविता में यूके के एक देश वेल्स का चित्रण इसकी ऐतिहासिक और भौगोलिक पृष्ठभूमियों में किया गया है। इन कविताओं में विशिष्ट प्रतीकों का प्रयोग किया गया है और इसलिए उन्होंने इन प्रतीकों के संदर्भों के बारे में पादटिप्पणियां भी दी है जिससे पाठकों के लिए इन्हें समझना आसान हो जाता है।
संग्रह की कुछ कविताएं ऋचा जैन की विज्ञान की पृष्ठभूमि और कविता में विज्ञान की शब्दावलियों के प्रयोग को भी दर्शाती हैं जैसे बाइनरी,बिग डेटा,फेसबुक,ऑफलाइन, आदि। बिग डेटा,फ़ेसबुक और बाइनरी में डिजिटल दुनिया में गुम होते मुनष्य के जीवन को बहुत खूबसूरती से दर्शाया गया है। संपूर्ण मानवीय जीवन,उसका पूरा कार्य -व्यापार,उसके अहसास, उसकी भाषा,उसकी बोली,एक विशालकाय डेटा बेस में तब्दील होती जा रही है। आज इंसान की जिंदगी मिट़्टी से शुरू होकर डेटा बेस बनने तक की कहानी बन गई है।
संग्रह की अंतिम कविता ऋचाएं संगृहीत कविताओं की प्रकृति और उनके स्वरूप को दर्शाती है और एक प्रकार से यह पूरे संग्रह का सार प्रस्तुत करती है। वह कहती हैं कि इन कविताओं में से कुछ आधी तो कुछ सादी,कुछ चुलबुली तो कुछ गंभीर,कुछ वैचारिक तो कुछ सांसारिक,कुछ ऐतिहासिक तो कुछ पौराणिक,कुछ काल्पनिक तो कुछ वास्तविक हैं।
कविता को हमेशा एक सहज और आत्मीय कथ्य और भाषा की जरूरत होती है। एक बेहतर दुनिया का ख्वाब हर कवि की आंखों में होता है जिसे वह अपने शब्दों से रचता है। ऋचा जैन भी अपने शब्दों से अपने अनुभवों की अलग दुनिया बनाती हैं। उनकी कविताओं की भाषा सरल और प्रवाहमयी है। कविताएं मुक्त छंद में लिखी गई हैं पर उनमें एक लयात्मकता है। उन्हें पढ़ते हुए शब्दों से संगीत सुनाई पड़ते हैं। इनमें प्रयुक्त कई प्रतीक और बिम्ब पाठकों का ध्यान आकर्षित करते हैं। शब्दों का चयन विषयानुकूल है। वैज्ञानिक पृष्ठभूमि वाली कविताओं में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी सहज प्रतीत होता है।
संग्रह की कविताओं से गुजरते हुए कहा जा सकता है कि इन कविताओं में विचारबोध,भावबोध और कलाबोध का संगम देखने को मिलता है और ऋचा जैन ब्रिटेन में प्रवासी हिंदी काव्य सृजन में एक नई संभावना जगाती है।