सरोजिनी पाण्डेय की तीन कविताएँ
1 - नया चलन
महानगरों में रोज उगती
ये नई -नई बस्तियां ,
पलक झपकते ही
आबाद हो जाती हैं ,
सुखद ,नागरीय जीवन की चाह में
अपने गांव -खेत, घर -खलिहान
पीछे छोड़ आई
एकल पारिवारिक इकाइयां
इनमें पनाह पाती हैं,
इन बस्तियों में सुबह-शाम
दिखलाई पड़ती है
चहल-पहल ,हलचल
युवतियों की हंसी ,
बच्चों की किलकारियां...
सूर्यकांत शर्मा की कविता – धुआं है धुआं
धुआं है धुआं....
धुआं धुआं धुआं,
सारा आशियां है।
धुआं धुंआ धुंआ
सांस भी हो रही
धुआं धुंआ ।
सरसब्ज हो रही
खुदगर्ज़ी ,
सियासत सो रही
करके मनमर्ज़ी।
सियासत के रिश्तेदार,
घूम घूम कर रहे,
झूम झूम कर रहे,
हुआं हुआं बस
धुआं हुआं।
सांसों पर सांसत है,
चुनाव की सियासत है।
बात फिर करेंगे
सांसों की या फिर
उड़ गई सांसों...
आनंद शर्मा की कविता – करवा चौथ का उपहार
करवा चौथ का दिन,
सुबह सवेरे
पति ने पत्नी को जगाया
अप्रत्याशित प्रेम के वार से
पत्नी की नींद को भगाया
और अपने मन की बात से
गृहलक्ष्मी को अवगत कराया
प्रिय..इच्छा है मेरी
अपनी किंचित कमाई का
एक बड़ा हिस्सा
आज तुम पर वार दूँ।
अपना अदृश्य प्यार
तुम पर निसार दूं
तुम ही बताओ
आज मैं...
आशीष मिश्रा की कविता – दीपावली
आइए साथ में हम दिवाली मनाए।
राम सीता की मूरत हृदय में लगाए।।
लगाए भरत का समर्पण हृदय में
राम ही हैं सहारा किसी भी समय में
राम दीपक जलाएँ, भिगा भाव घी में
सत्य ही होगा दीपक दीपावली में
स्वयं का स्वयं से परिचय कराएँ।
आइए साथ में हम दिवाली...
योगेंद्र पाण्डेय की कविता – युगों-युगों की तंद्रा
लिखते लिखते मैं ये भूल जाता हूं
कि लिखता हूं क्यों
अपना मन हल्का करने के लिए
या किसी के दर्द की
आवाज बनने के लिए।
मैं लिखता हूं क्योंकि
लिखना मेरा धर्म है
और सुनना तुम्हारी इच्छा।
लिखते लिखते कभी कभी
खो जाता हूं
किसी अनजान कल्पना लोक में
तभी तुम्हारी याद आती है
और...
देवी नागरानी द्वारा अनूदित सिंधी लेखिका आतिया की कविताएँ
1- अमर गीत
जिस धरती की सौगंध खाकर
तुमने प्यार निभाने के वादे किये थे
उस धरती को हमारे लिये क़ब्र बनाया गया है
देश के सारे फूल तोड़कर
बारूद बोया गया है
ख़ुशबू ‘टार्चर’ कैम्प’ में आख़िरी सांसें ले रही है
जिन गलियों में तेरा हाथ थामे
अमन के ताल पर...