भारत की माटी से उपजी
हिंदी जन–मन की प्राण है,
संपूर्ण विश्व में यह भाषा
मेरे भारत की पहचान है।
कबीरा ने इस भाषा में ही
जीवन का सार बताया है,
इसकी एक बोली अवधी में
तुलसी ने मानस गाया है।
वेदों की भाषा संस्कृत की
यह सबसे प्यारी बिटिया है,
मैथिली अवधी भोजपुरी
सब इसकी प्यारी सखियां हैं।
दक्षिण भारत की भाषाएं
इसकी ‘सहोदरा‘ बहनें हैं,
कुछ में माता का एक रक्त
कुछ के कपड़े इक जैसे हैं।
वह देश भला क्या पनपेगा
जिसकी अपनी पहचान न हो?
अपना ध्वज, अपनी भाषा औ‘
अपनी संस्कृति पर मान न हो?
अपने भारत के गौरव को
यदि ऊंचा हमें उठाना है,
अपनी भाषा, निज संस्कृति को
आगे–आगे ले जाना है।
हिंदी पर अच्छी कविता है सरोजिनी जी आपकी। आपने सही कहा कि हमारी संस्कृति,हमारी भाषा ही हमारी पहचान है। इसकी उन्नति, प्रचार और प्रसार के लिए हम सभी को मिलकर कोशिश करनी होगी।
बधाई आपको।