झाँसी :22 अप्रैल 2023 को बुंदेलखंड इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, झाँसी के सभागार में झाँसी साहित्य निधि के संयोजन में किताब पर चर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें युवा साहित्यकार डॉ० निधि अग्रवाल की उपन्यासिका अप्रवीणा  पर विद्वतजनों द्वारा चर्चा की गई। 
किताब पर चर्चा कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ बुंदेली साहित्यकार  रतिभानु तिवारी कंज जी ने की। कंज जी ने कहा कि निधि ने कम समय में लेखन में अपना स्थान बनाया है। अप्रवीणा लिखने से पहले उन्होंने विषय पर लम्बा शोध किया और इसी सिलसिले में उनसे मिलना हुआ। अप्रवीणा शीर्षक चकित करता है लेकिन नई चेतना जगाने वाला है। नारियों में सौतियादाह के मर्म को और नारियों की व्यथा को एक नारी ही बयाँ कर सकती है जो निधि ने अप्रवीणा में किया है। उपन्यास में अद्भुत प्रांजल भाषा का प्रयोग किया गया है। वे साहित्य जगत में ध्रुवतारे की भाँति चमकती रहें यही कामना है मेरी।
मुख्य अथिति बुंदेलखंड इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, झाँसी के निदेशक डॉ० पुलक मोहन पांडेय जी रहे। उन्होंने भी लेखिका को शुभकामनाएं दीं।
विशिष्ट अतिथि, किन्नर विमर्श के सशक्त हस्ताक्षर, लखनऊ से पधारे, महेंद्र भीष्म जी ने अप्रवीणा पर विचार करते हुए कहा  कि ऐतिहासिक पात्रों पर लिखना हर  लेखक की  इच्छा होती है। मेरी इच्छा थी कि मैं मस्तानी पर लिखूँ, रायप्रवीण पर लिखूँ। यह आनंद का विषय है कि यह काम  निधि अग्रवाल ने किया है। मैं परमार साहब की इस बात से सहमत हूँ कि सृजन को विधा में सीमित नहीं किया जा सकता। एक बड़ा लेखक प्रचलित ढांचों में तोड़ – फोड़ करता हैं। इसे पढ़कर आप स्त्री जीवन के यथार्थ को जान सकते हैं।  अप्रवीणा पाठकों के मन में  निश्चित ही जगह बनाएगा।
विशिष्ट अतिथि, बुन्देली संस्कृति के विश्वविख्यात विद्वान, बुन्देली बसन्त पत्रिका के यशस्वी सम्पादक, महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर में हिन्दी के प्रोफेसर, छतरपुर बुंदेलखंड निवासी प्रो० बहादुर सिंह परमार  ने अप्रवीणा किताब पर चर्चा करते हुए कहा कि आज तकनीक का युग है। संवेदनाएँ मर रहीं हैं, तकनीक जीत रही है फिर भी  आज इस भरे हुए सभागार में  संवेदनशील लोग साहित्य पर चर्चा कर रहें हैं यह साहित्य के जीवंत होने का संकेत है। लेखिका निधि  ने इस उपन्यास में स्त्री की छटपटाहट को उजाकर किया है। अप्रवीणा में स्त्री की पीड़ा और संवेदना केंद्र में है। जो इन पाँच नायिकाओं महारानी, चारूलता, राधिका, रायप्रवीण और गुरूमाँ के माध्यम से दिखाई देती है।
पुनिया नाम की कन्या को प्रवीण राय नाम देकर महाराज इंद्रजीत इसमें ब्राह्मणवादी परम्परा को तोड़ते हैं क्योंकि लोक में नामकरण करने की परम्परा ब्राह्मण द्वारा किये जाने की है। 
निधि  में प्रतीकात्मकता है।  उनकी भाषा में अर्थ का चमत्कार है। बड़ा रचनाकार प्रतीकों में बात कहता है सारा खोलकर नहीं रखता।
रचना में समय दो तरह से आता है। एक जिस समय की उसमें कथा है और दूसरी जिस युग में रचना लिखी जा रही है। इस उपन्यास में निधि ने चारूलता के माध्यम से आज के स्त्री के जीवन को भी रचा है।  बड़ा लेखक वही बनता है जो जोखिम उठाता है।  रायप्रवीण के समांतर प्रतिनायिका गढ़कर निधि ने यह जोखिम उठाया है। प्रेम केवल शरीरी नहीं होता। प्रेम का आंतिरक और सात्विक रूप भी होता है जो अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
अप्रवीणा उपन्यास राजनैतिक संघर्षों का दस्तावेज है। तत्कालीन बुन्देला राज्य के राजनैतिक षडयंत्रों की गाथा इसमें प्रतीकात्मक रूप में झलकती है। इतिहास के मध्यकाल में बुन्देलखण्ड सांस्कृतिक अस्मिता और उत्थान का स्वर्णयुग है।
शास्त्रार्थ की परंपरा बुंदेलखंड में लंबे समय से रही है। इसलिए अप्रवीणा में शास्त्रीय भाषा की झलक स्वाभाविक है। जहाँ तक अप्रवीणा की भाषा का सवाल है  अप्रवीणा की भाषा प्रभावित करती है। मुझे विश्वास है कि इस कृति के माध्यम से पाठक बुंदेली संस्कृति और साहित्य से परिचित होंगे।
विशिष्ट अतिथि युवा आलोचक, लमही पत्रिका के अतिथि संपादक व प्रबुद्ध आलोचक बाँदा बुंदेलखंड निवासी शशिभूषण मिश्र  ने अप्रवीणा पर अपने विचार रखते हुए कहा कि अप्रवीणा के  मूल अर्थ को समझना है तो हमें यह समझना होगा कि जो स्त्री हमेशा दूसरों के बनाए उसूलों और परिपाटी पर चलती है वही अप्रवीणा बनती है। अपनी पृथक पहचान स्थापित करना आवश्यक है। इस उपन्यास की बड़ी  ताकत  दृश्यांकन है। यह उपन्यास के स्थापित मानदण्डों को तोड़ने वाली रचना है। इसमें राजघरानों की स्त्रियों और वतर्मान की स्त्री की कथा कही गई है। 
वक्ता समीक्षक, सहायक प्राध्यापिका, बाँदा बुंदेलखंड निवासी अंकिता तिवारी  ने अप्रवीणा पर चर्चा करते हुए कहा कि रायप्रवीण और महाराज इंद्रजीत की प्रेमकहानी तो सबने ही सुनी है। लेखिका ने अप्रवीणा शब्द किसलिए गढ़ा यह जानने की उत्सुकता बनी रहती है। इंद्रजीत की काल्पनिक तीन पत्नियों को आधार बनाकर अप्रवीणा रचा गया है जिनके माध्यम से भिन्न परिस्थितियों और मनोस्थितियों में स्त्री के संघर्षों को कहा गया है।  महारानी कहती हैं कि जिसे हम बदल नहीं सकते। उसे स्वीकार लेना कायरता नहीं मंझली रानी चारूलता को अपने रूप और पति की प्रिया होने का दंभ है किंतु पितृसतात्मक समाज में स्त्री का दंभ ज्यादा समय तक  टिक नहीं सकता। चारूलता का दंभ भी  रायप्रवीण के आ जाने  टूटता है। छोटी रानी राधिका की स्थिति उपहार में मिले पशु धन से बेहतर नहीं है।
इस उपन्यास की विशेषता यह  है  कि इसे पढ़कर किसी भी पात्र के प्रति दुर्भाव नहीं रहता। यहां पात्र सफेद- काले, सही- गलत में बंटे नहीं हैं वरन विषम परिस्थितियों में स्वयं को सही सिद्ध करने के तर्क दे, आत्मग्लानि से मुक्ति का मार्ग तलाश रहे हैं।
प्रवीण भी सोचती है कि मैंने एक पत्नी का अधिकार हनन किया है किंतु मेरे  अलग हो जाने से भी चारूलता उन्हें पुनः न पा सकेगी। ।अप्रवीणा का अंत चारूलता के अंत से होता है। महारानी का एक कथन कि  ‘ जीत किसी की भी हो लेकिन अंत में हारती स्त्री ही है’ हमारे समाज में  नारी जीवन की दशा दक्षता से कहता है 
देश के चर्चित कवि, झाँसी बुंदेलखंड निवासी अर्जुन सिंह चाँद जी ने अप्रवीणा पर विचार करते हुए कहा कि इस उपन्यास के हर पात्र के संवादों में लेखिका परकाया रूप में प्रवेश करती हुई प्रतीत होती है। इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इसमें कोई खलनायक नहीं दिखता है।अप्रवीणा नाम क्यों? मैं इस पर बहुत सोचता रहा है। राधिका, तीसरी पत्नी इंद्रजीत को सामान की तरह युद्ध जीतने पर दी गई थी। ये स्त्री की पीड़ा को बयाँ करती है क्योंकि आज स्त्री वस्तु नहीं है वह भी इंसान है। लेखिका ने महारानी के मुख से ठीक ही कहलावाया है कि जीते कोई भी, हार हमेशा स्त्री की होती है। इसमें लेखिका की छटपटाहट दिखाई देती है। वे चाहतीं है कि हर स्त्री जीते और इस पितृसत्तात्मकता से स्वतंत्र हो।
सुप्रसिद्ध साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, झाँसी बुंदेलखंड निवासी डॉ० रामशंकर भारती  ने कहा कि  मैं इस  उपन्यास की भाषा पढ़कर दंग रह गया। भाषा की रवानगी के कारण अप्रवीणा स्त्री जीवन का गद्यात्मक महाकाव्य है। उन्होंने कहा कि इन दिनों हमारे साहित्य में एक दोष आ गया है कि हम साहित्यकार की कृति को कम महत्त्व देते हैं लेकिन साहित्यकार के व्यक्तित्व को ज्यादा महिमामंडन करते हैं। ऐसा करना भविष्य के साहित्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। 
आज पुस्तक संकट का दौर चल है। व्यस्तस्ता, मोबाइल और सिनेमा के कारण लोग  किताबों से दूर होते जा रहे हैं। आज भी अच्छा लिखा जा रहा है। आज भी अच्छा पढ़ा जा रहा है। लेखिका के श्रम का पता अप्रवीणा को पढ़कर लगता है। यह सराहनीय है। निधि को अनमोल उपन्यास के लिए बधाई।
वक्ता पुर्व आईएएस अधिकारी, वरिष्ठ साहित्यकार, अधिवक्ता, बरूआसागर बुंदेलखंड निवासी डॉ० प्रमोद कुमार अग्रवाल जी अप्रवीणा पर अपने विचार रखते हुए कहा कि रायप्रवीण के चरित्र में ये संदेश है कि हमें कभी भी किसी के सामने स्वाभिमान नहीं खोना चाहिए। मुगल अकबर के सामने रायप्रवीण ने नर्तकी होने पर भी उसको धिक्कारते हुए कहा कि हम बुंदेलखंडी नारी हैं हमारा चरित्र और स्वाभिमान ही सबकुछ है। मैं  इंद्रजीत की हो चुकी हूँ। उसके सिवा किसी की नहीं हो सकती। यह उपन्यास प्रेम की पवित्रता को पुष्ट करता है। यह उपन्यास ऐतिहासिकता को उजागर करते हुए वर्तमान परिवेश की स्त्रियों को त्याग और पवित्र प्रेम हेतु प्रेरित करता है।
लेखिका डॉ० निधि अग्रवाल  ने किताब के संदर्भ में कहा कि, “यह पराजित स्त्रियों का मान वापस दिलाने का प्रयास है। अप्रवीणा शीर्षक का अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि इसमें चारूलता, राधिका आदि स्त्रियाँ  प्रवीण नहीं हैं बल्कि यह उस व्यथा को कहता है जहां रास्ते अलग होने पर प्रवीण व्यक्ति अप्रवीण सिद्ध कर दिया जाता है।” 

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.