1
हुई किताबों की दशा,जैसे बैरन कोय,
मोबाइल पकड़े रहें ,मानो प्रियतम होय ।।
2
सद्चरित्र,सद्भावना,कैसे विकसे आज,
पुस्तक सच्चा मित्र है,भूला सकल समाज ।।
3
रही झेलती दंश वो, कुंठित सारी रात,
बिक न पाई पुस्तक जो, करे गलत पे घात।
4
जब से लालच ‘फेम’ की, दिल में हुई पनाह,
सच का लिखना हो गया, तब से यहाँ गुनाह।
5
कभी तो रखती नम्रता, कभी करारा वार,
पोथी सच ही बोलती, कहती है ये सार।
6
आज अंधेरा हो चला, दिखती नहीं है राह,
मित्र किताबों के बनें, मिट जाये हर दाह।