होम कविता ‘पुस्तक’ पर सुविधा पंडित के दोहे कविता ‘पुस्तक’ पर सुविधा पंडित के दोहे द्वारा सुविधा पंडित - May 7, 2023 63 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1 हुई किताबों की दशा,जैसे बैरन कोय, मोबाइल पकड़े रहें ,मानो प्रियतम होय ।। 2 सद्चरित्र,सद्भावना,कैसे विकसे आज, पुस्तक सच्चा मित्र है,भूला सकल समाज ।। 3 रही झेलती दंश वो, कुंठित सारी रात, बिक न पाई पुस्तक जो, करे गलत पे घात। 4 जब से लालच ‘फेम’ की, दिल में हुई पनाह, सच का लिखना हो गया, तब से यहाँ गुनाह। 5 कभी तो रखती नम्रता, कभी करारा वार, पोथी सच ही बोलती, कहती है ये सार। 6 आज अंधेरा हो चला, दिखती नहीं है राह, मित्र किताबों के बनें, मिट जाये हर दाह। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ. हर्षा त्रिवेदी की तीन कविताएँ प्रेमा झा की कविता – माँ रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – सपने कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.