अजित राय की रपट – मिस्र का पांचवां अल-गूना फिल्म फेस्टिवल-2
अरब डाक्युमेंट्री की साहसिक दुनिया।
मिस्र के पांचवे अल गूना फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई दस डाक्यूमेंट्री देखकर हैरानी होती है कि यहां के युवा फिल्मकार अपनी जान की बाजी लगाकर कैसे इतनी उम्दा फिल्में बना रहे हैं जिन्हें दुनिया भर के फिल्मोत्सवों में सराहा जा रहा है। पर्यावरण, मानवाधिकार, धार्मिक कट्टरवाद और शरणार्थी समस्या के प्रति विश्व जनमत को संवेदनशील बनाने में इन फिल्मों का बड़ा योगदान है। उदाहरण के लिए मिस्र के अली अल अरबी की फिल्म ” कैप्टेंस आफ जअतारी” और सारा साजली की ” बैक होम ” , कुर्दिस्तान के होगीर हीरोरी की ” सबाया ” तथा लेबनान की जेइना डकाचे की ” द ब्लू इनमेट्स ‘ का नाम लिया जा सकता है। इसके अलावे नीदरलैंड्स, रूस, यूक्रेन , नार्वे और स्विट्जरलैंड में भी इन दिनों बहुत उम्दा डाक्यूमेंट्री फिल्में बन रही है।
सीरिया और ईराक के जिन हिस्सों पर आई एस आई एस ने कब्जा किया था, उससे सटे सिंजर जिले पर उन्होंने हमला किया और तीन लाख की आबादी वाले याजीदी समुदाय के शहर से अगस्त 2014 में हजारों औरतों को जबरन उठा लाए और उन्हें सेक्स स्लेव बनाया। जब सीरिया की सेना ने विदेशों की मदद से आई एस आई एस को वहां से खदेड़ दिया तो अधिकतर सेक्स स्लेव औरतों को अल होल कैंप में छुपा दिया गया जहां से महमूद और उनके साथियों ने उन्हें आजाद कराया।
लेबनान की जेइना डकाचे की फिल्म ” द ब्लू इनमेट्स ” जेलों में बंद कैदियों के लिए की गई थियेटर चिकित्सा का दस्तावेज है। जेइना डकाचे पहले बेरूत की औरतों की बाबदा जेल में गई और एक नाटक के जरिए उनके हालात, भय और सपनों को सामने लाया। यह फिल्म एक लंबे प्रोजेक्ट का हिस्सा है जिसमें रौमेह जेल की ब्लू बिल्डिंग में मनोरोगी हो चुके कैदियों की समस्याओं को नाटक के माध्यम से बताया गया है।
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