1. शुभ शगुन
क्या हूँ मैं
कुम्हार के हाथों गढ़ी हुई
उसकी कल्पना का एक रूप
जिसने बनाया और उसने ही
आग में तपाया भी मुझे
और सौंप दिया
एक अंजान साये को
अब मैं एक कठपुतली
से ज्यादा कुछ न थी
गढ़ी तो गई
एक हुनरबाज के हाथों
पर रीति -रिवाजों की
रस्सी में कस दी गई
जकड़ लिया उसने मुझे
कभी छटपटाती तो
कभी चिड़चिड़ाती
पर रस्सी ढीली न कर पाती
अपनाया इस सत्य को
और जीना सीख लिया मैंने
पर चाक का पहिया
कुछ इस तरह घूमा
एक नन्ही परी
मेरी आशाओं को लिए
आ गई द्वार मेरे
अब कुम्हार मैं थी
गढ़ दिया मैंने उसे
एक सुन्दर काया में
तपाया भी उसे
पर कुछ इस तरह कि वो
शुभ शगुन बन जाए
एक अनजान साये के साथ
आजाद परिन्दे की तरह
जिए अपनी जिन्दगी
इस जहाँ के संग
कदम से कदम मिला कर।
2. क्या कहूं तुझे
क्या कहूँ तुझे
साया!
नहीं
साया भी साथ छोड़ देता है
साथी!
वो भी तो छोड़ कर चला जाता है
हमसफर!
नए रास्ते मिलते ही
छोड़ दूजी राह पकड़ लेता है
तू जानता नहीं
तू क्या था
और आज क्या हो गया है
कभी सोचा न था
तेरा साथ मेरे लिए
खुदा का तोहफा होगा
क्या कहूँ
हाथ थामे रखना
नहीं
तूने तो
मेरी जिंदगी को थाम लिया है
तब
जब
दोराहे पर
भटक रही थी
इस स्वार्थी दुनिया में
कोई भी शब्द
तेरे लिए बना ही नहीं शायद
नही… नहीं
तू तो मेरी रूह है
जो मेरे साथ ही जाएगी
उस अंतिम सफर तक
तुझे अब मैंने थाम लिया है।
3. आशायें
हारना तो मैंने
सीखा ही नहीं
लोगों ने तो कि बहुत
मुझे हराने की कोशिशें
हारी तो मंै
फिर भी नहीं
पर टूटती तो जरूर हूँ
सोचती हूँ
कब तलक
ये हौंसला
साथ रहेगा मेरे
कब तलक
कोशिश करूँगी
नसीब को हराने की
कोई तो हो जो
थाम ले हाथ मेरा
और, बोले
ना डर
मैं खड़ा हूँ सँग तेरे
न रूप है, न रँग है
सोने-चाँदी की
खनक भी तो नहीं है
साथ मेरे
पर हीरे-सी
चमकती आशायें
दिल में लिए फिरती हूँ
कोई तो जौहरी आएगा
जो मेरी आशाओं को
कोहिनूर बना देगा।
4. एक नये सफर पर
धूप ने आज दस्तक दी
तो देहरी चमक उठी
कुछ शांत हुआ मन
उस हल्की
सुनहरी चमक से
सपने भी जाग गये
तूफान भी थम गया
मन का सागर आज
ठहर-सा गया
तब जाना
इंतजार था जिसका
वो आज धूप की
सुनहरी चादर ओढ़
मेरे द्वारे आया है
आज फिर मैं जी उठी
नजरों से नजरें मिला सकी
आज रास्ता चुन लिया
मंजिल का भी पता चल गया
और बस चल दी
उस पगडंडी पर
जहाँ इंतजार कर रहा था
एक सपना
जहाँ बना सकूँ मैं
अपनी पहचान
और मैं चल पड़ी
उस सुनहरी चादर सँग
एक नये सफर पर।