तेजनारायण शर्मा की ग़ज़लें
“तोप, तमंचे, छुरे, कतरनी, पैने-चाकू भेज दिए ,
1.
जिन ज़मीनों को मयस्सर बूँद भर पानी न था
जो अँधेरों की मुसलसल रहबरी करते रहे
आपने तो मामले को आपसी मसला कहा
आपने चाबुक़ चलाया, आप भी क्या ख़ूब हैं
बज़्म को हैरत हुई है, आपकी इस नज़्म पर
सोचिये, किनके इशारों पर प्रभाती गा रही है
मैं इसी आबो-हवा का रुख़ बदलना चाहता हूं
देखियेगा उन घरों को, टूटकर बिखरे हुए हैं
आप जिन रंगीनियों की सोच में डूबे हुए हैं
मैं नशेमन में अकेला बैठकर ये सोचता हूं
क्या करेंगे इस नुमाइश में दुकानें हम लगाकर
आपको उपचार की तालीम किसने दी बताएं
भाईचारे की वकालत आप कैसे कर रहे हैं
भक्तजन उन साधुओं के वास्ते बैठे हुए हैं
मुल्क़ की तक़दीर जिनकी कोठियों में सड़ रही है
बज़्म ने मदहोश समझा, जब मैं पूरे होश में था
तेजनारायण शर्मा
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शानदार ग़ज़लें!
वाह वाह वाह
अपने नाम के अनुरूप तेज नारायण जी की गजलों में तेज की आँच महसूस हुई!
सबसे पहले तो उदाहरण के लिए जो आपने पेश किया उसी की दाद देनी पड़ेगी तेजेन्द्र जी!
“तोप, तमंचे, छुरे, कतरनी, पैने-चाकू भेज दिए ,
सरहद की रक्षा करने कई वीर लड़ाकू भेज दिए,
चम्बल के खेतों में अब तो कवितायें लहरातीं हैं ,
जितने भी थे हमने चुन कर ‘दिल्ली’ डाकू भेज दिए”
गजब की पंक्तियाँ हैं।
एक वक्त था तब चंबल डाकुओं के लिए मशहूर था और डाकू अब चुनकर दिल्ली में है।क्या तंज राजनीति पर
सच में पढ़कर मजा आ गया। एक कहावत है हमारे इधर –बेशर्मों को कहीं भी मार लो ,कैसे भी मार लो, कोई फर्क नहीं पड़ता।
वैसे तो तीनों ही गजलें बहुत अधिक दमदार हैं सर!और हर एक शेर एटम बम से कम नहीं पर फिर भी जो ज्यादा प्रभावित कर गए –
1.
रक्षको! इस चौकसी में ढील कैसे आ गई
ये तो हंसों की सभा थी, चील कैसे आ गई।
-हंस की तुलनात्मकता में चील की बात करके आपने बहुत बड़ी बात कह दी सर!!
जो अँधेरों की मुसलसल रहबरी करते रहे
आज उनके हाथ में कंदील कैसे आ गई।
-पाली बदलने में सब उस्ताद है!-
आपने चाबुक़ चलाया, आप भी क्या ख़ूब हैं
आप ही अब पूछते हैं, नील कैसे आ गई।
-इसे ही कहते हैं -चोट देकर मलहम लगाना।
मतलब साधने के लिए सब कुछ संभव है।
बज़्म को हैरत हुई है, आपकी इस नज़्म पर
बात इसमें बे-अदब, अश्लील कैसे आ गई।
-समय को देखते हुए ऐसा कुछ करना ही होता है। जैसों के साथ तैसा करने के लिए जरूरी है।
2.
सोचिये, किनके इशारों पर प्रभाती गा रही है
ये हवा जो सामने से सिर उठाकर आ रही है।
-इस पर विचार करना बहुत जरूरी है।
मैं इसी आबो-हवा का रुख़ बदलना चाहता हूं
रोज़ जिसमें सभ्यता की नथ उतारी जा रही है।
-वाह !!वाह!!!! और वाह!!!!! गज़ब लिखा आपने यह तो!
देखियेगा उन घरों को, टूटकर बिखरे हुए हैं
एकता जिन-जिन घरों में, एकताएँ ला रही है।
-बड़ा ही तीखा व्यंग्य है सर जी!!!
*एकता जिनके घरों में एकताएँ ला रही है*
आप जिन रंगीनियों की सोच में डूबे हुए हैं
वो हमारी नस्ल की ख़ुद्दारियों को खा रही है।
-यह बहुत बड़ा मसला है और बहुत ही गंभीर मामला भी! विचारणीय बिंदु।
मैं नशेमन में अकेला बैठकर ये सोचता हूं
ये हवा इस अंजुमन को क्यूँ नवाज़ी जा रही है।
-यह गौर करने वाली बात है।
आपकी यह गजल पूरी की पूरी एक नंबर है।
3.
क्या करेंगे इस नुमाइश में दुकानें हम लगाकर
आपने तौहीन कर दी दाम इतने कम लगाकर।
-सभी जोहरी नहीं हुआ करते।
आपको उपचार की तालीम किसने दी बताएँ
आपने तो घाव गहरे कर दिये मरहम लगाकर।
-स्वार्थ और लूट का बाजार गर्म है सर जी! आज सभी ऐसे मिलेंगे। कंकड़ में से चाँवल बीनने जैसा मसला है।
भाईचारे की वकालत आप कैसे कर रहे हैं
आप तो ख़ुद घूमते हैं मज़हबी परचम लगाकर।
-यह सबसे बड़ा व्यंग्य है। मुख में राम बगल में छुरी, इसे ही कहते हैं।
भक्तजन उन साधुओं के वास्ते बैठे हुए हैं
जो अभी लौटे नहीं हैं, जंगलों से दम लगाकर।
-यह जबरदस्त है और भक्तजन बैठे रहेंगे जब तक धक्का देकर उन्हें न भगाया जाए।
*मुल्क की तक़दीर जिनकी कोठियों में सड़ रही है*
*जी में आता है सभी को, मैं उड़ा दूं बम लगाकर।*
सर इस शेर के लिए हम आपको 100 में से 1000 नंबर देंगे।भले ही 900 की उधारी पटती रहेगी।
बज़्म ने मदहोश समझा, जब मैं पूरे होश में था
होश में समझा गया मैं, जब गया था रम लगाकर।
क्या बात कह दी सर! कहते हैं पीने के बाद आदमी पूरा-पूरा सच बोलता है इसीलिए होश में समझे गए। गज़ब!!!
वैसे तो गजलों की हमें जरा भी समझ नहीं है बस भाव जो मन को छू लें। वही अच्छा लग जाता है।
बहुत दिनों के बाद बहुत अच्छी गजलें पढ़ने को मिलीं। इतनी अधिक सामयिक हैं की वर्तमान का आइना दिख रहा है।
आपकी कलम तलवार से बात कर रही है। बड़ी ही तेज धार है तोप, तमंचे, छुरे, कतरनी, पैने-चाकू यह सभी आपकी कलम की धार के सामने भोथरे साबित हुए हैं। काफी पहले एक कविता पढ़ी थी- “कलम और तलवार” वह कविता याद आ गई! कवि भले ही याद न आ रहे हों
आपका लेखनी को सलाम और आपकी सोच को सादर प्रणाम तेज नारायण जी!
तेज नारायण जी की ग़ज़लें हालते-हाल पर सटीक तबूसिरा हैं। ख़ूब ख़ूब।