Saturday, July 27, 2024
होमसाक्षात्कारमैं अपनी हिन्दी की कहानियों में  बेवजह अपना अंग्रेजी भाषा ज्ञान नहीं...

मैं अपनी हिन्दी की कहानियों में  बेवजह अपना अंग्रेजी भाषा ज्ञान नहीं घुसाना चाहूँगा – आशीष त्रिपाठी

इन दिनों साहित्य जगत में युवा और नए लेखक बड़ी तादाद में आ रहे हैं। आशीष त्रिपाठी भी ऐसे ही एक युवा लेखक हैंआशीष का नाम अभी भले ही साहित्य जगत में बहुत ज्यादा परिचित न हो, लेकिन उनकी पहली ही किताब ‘पतरकी’ के जरिये उन्होंने अपनी बेहद पठनीय लेखनी का जो रूप प्रस्तुत किया है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि वे साहित्य जगत में जल्द-ही अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाएंगे। पुरवाई की इस साक्षात्कार श्रृंखला का उद्देश्य ऐसे प्रतिभावान युवा लेखकों को सामने लाना भी है। अतः इस श्रृंखला की चौथी कड़ी में हाजिर है आशीष त्रिपाठी से पीयूष द्विवेदी की बातचीत।

सवाल – अपनी अबतक की जीवन-यात्रा के विषय में बताइये।
आशीष – बड़ा सामान्य सा अब तक का जीवन रहा है , दो भाइयों में मैं छोटा हूँ । प्रारम्भिक शिक्षा गाँव और कस्बे के विद्यालयों में हुई और फिर गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की । कुछ वर्ष प्राइवेट नौकरी की और छोड़ दी । आजीविका हेतु मैंने कृषि को चुना , मेरे जो खेत बटाई पर दिए गए थे उन्हें ले लिया और खुद खेती करवाने लगा ।
सवाल –  लेखन में रुचि कैसे जगी?
आशीष – जबसे होश संभाला घर में अम्मा और बाबूजी को खाली समय में किताबें लिए ही देखा । पढ़ने लायक हुआ तो किस्से कहानियों की पुस्तकों ने आकर्षित किया । विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान नोटबुक के पीछे के पन्नो पर कोई किस्सा कहानी लिखता रहता था और मित्रों को सुनाता था । फिर समय बीतता रहा , प्राइवेट नौकरी करते वक्त तो समयाभाव रहा लेकिन उसके बाद जब मैं फेसबुक से जुड़ा तो अनेक वरिष्ठ लेखक मित्रों की बेहतरीन कहानियों ने मुझे भी प्रेरित किया कि मैं भी कुछ लिखूँ । इस क्रम में मैंने अपनी पहली हास्य श्रृंखला “फुदकन चाचा” लिखनी शुरू की । लोगों ने इसे खूब सराहा और वहाँ से लेखन की जो यात्रा शुरू हुई वो अब तक अबाध गति से जारी है ।

सवाल – एक नए लेखक के रूप में प्रकाशन के लिए किस हद तक और किस तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ा?
आशीष – यह सवाल बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । पतरकी लिखते वक्त मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह पुस्तक के रूप में आ पाएगी । इसकी छोटी – छोटी कड़ियाँ मैं फेसबुक डाला करता था और उस पर पाठक मित्रों से मुझे बहुत ही उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया मिलती थी । इन्हीं मित्रों में से कुछ ने मार्गदर्शन किया कि यह श्रृंखला पुस्तक के रूप में आनी चाहिए । यह सुझाव मेरी हर कथा श्रृंखला पर आता रहता था , अतः मैं इस बात को सामान्य तौर पर लेता हुआ पतरकी की आगे की कड़ियाँ लिखता रहा । तब तक यश पब्लिकेशन के श्री जतिन भारद्वाज जी से मैं जुड़ चुका था और  एक रात मैंने उन्हें पतरकी की एक कड़ी भेज दी । उन्होंने कहा कि आप अपना नम्बर दे दें , हम आपको जैसा भी होगा सूचित करेंगे । बात आई गई हो गई । एक रविवार मैं छत पर बैठा था तभी एक फोन आया , उठाने पर पता चला कि उधर से जतिन जी लाइन पर हैं । उन्होंने बताया कि मैं कहानी पूरी करूँ और जितनी लिखी है उतनी की पीडीएफ फ़ाइल उनको मेल कर दूँ । मैंने ऐसा ही किया और फिर एक दिन वो भी आया जब जतिन जी मुझसे फोन पर बोले -” बधाई हो आशीष जी ! हम पतरकी को पब्लिश करने जा रहे हैं। पुस्तक के प्रकाशन को लेकर जितनी परेशानियों के विषय में मैं सुनता आया था , ईश्वर की कृपा से ऐसी किसी परेशानी का सामना मुझे नहीं करना पड़ा । पूरी प्रक्रिया में यश पब्लिकेशन का रवैया बहुत ही सहयोगपूर्ण रहा।
सवाल – आपके उपन्यास ‘पतरकी’ की पृष्ठभूमि ग्रामीण है, इसमें कितना सच और कितनी कल्पना है?
आशीष – मेरी ज्यादातर कहानियों की पृष्ठभूमि ग्रामीण ही है ।  पतरकी भी एक ग्रामीण पृष्ठभूमि पर लिखा गया उपन्यास है । जहाँ तक बात कल्पना और सच की है तो मेरा मानना है कि कल्पनाओं को भी अपनी उड़ान शुरू करने के लिए किसी न किसी धरातल की आवश्यकता होती है । कुछ खुद के और कुछ दूसरों के अनुभवों का साक्षी बन , कल्पनाओं की सहायता से यह यह कथा लिखी गई है ।
सवाल – आज के समय में लेखकों की जिम्मेदारी इस रूप में दोहरी हो गयी है कि उन्हें किताब लिखने के बाद उसे बेचने के लिए भी जतन करने पड़ रहे। यह स्थिति आपके समक्ष भी आई ही होगी। एक नए लेखक के रूप में यह आपके लिए कितना चुनौतीपूर्ण रहा और इसे कैसे देखते हैं आप?
आशीष – इस मामले में मुझे भाग्यशाली कह सकते हैं । पहली पुस्तक के प्रकाशन पर जितना उत्साहित मैं हूँ उससे कहीं ज्यादा उत्साह फेसबुक पर जुड़े मेरे पाठक मित्रों ने दिखाया । पतरकी मैंने लिखी भले ही , किन्तु आज अगर यह सफल हो रही है तो कथा के साथ – साथ  इसका बहुत बड़ा श्रेय  मेरे  मित्रों को भी जाता है । न सिर्फ उन्होंने पतरकी की बुकिंग में उत्साह दिखाया अपितु इस पर अपनी समीक्षा , प्रतिक्रिया इत्यादि के माध्यम से इसकी पहुँच को और ज्यादा बढ़ाया । यह अकेले मेरे वश की बात नहीं थी । 1 जून 2019 से पतरकी लोगों के हाथ में पहुँचनी शुरू हुई है । वो दिन है और आज का दिन है , इस बीच एक दिन भी ऐसा नहीं बीता जिस दिन किसी न किसी पाठक की पतरकी पर प्रतिक्रिया न आई हो ।
सवाल – हिंदी साहित्य की भाषा को लेकर इन दिनों बड़ा विमर्श चल रहा। अंग्रेजी के शब्दों के प्रयोग पर समर्थन-विरोध के खेमे बने पड़े हैं। इस विषय में आपकी क्या राय है?
आशीष – यद्यपि इस विमर्श मैं स्वयं को कोई राय देने के काबिल नहीं समझता , तथापि एक पाठक के तौर पर अवश्य कहूँगा कि किसी कथा में यदि अंग्रेजी शब्द डालना अनिवार्य लगे तो वहाँ लेखक को ऐसा करने में गुरेज नहीं करना चाहिए । किसी कथा में कोई ब्रिटिश लड़की  गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर उतरती है और गोरखनाथ मंदिर के लिए ऑटो करना चाहती है तो उसके प्रश्न यदि लेखक अंग्रेजी में और ऑटो वाले का उत्तर टूटी – फूटी अंग्रेजी और हिन्दी की खिचड़ी के रूप में लिखता है तो मुझे यह कथा ज्यादा सटीक और प्रभावी लगेगी । बाकी मैं अपनी हिन्दी की कहानियों में  बेवजह अपना अंग्रेजी भाषा ज्ञान नहीं घुसाना चाहूँगा ।
सवाल –  कामकाज और लेखन के बीच पढ़ने के लिए कितना समय निकाल पाते हैं? नए-पुराने प्रिय लेखक-लेखिका जिनसे आप प्रभावित हुए हों?
आशीष – मुख्य रूप से मेरा काम खेती – बाड़ी  है , जो मेरा शौक भी है और आजीविका का साधन भी । इसमें रोज व्यस्त रहने जैसा कुछ नहीं है । गाँव में ही मेरा एक छोटा सा कॉमन सर्विस सेंटर भी है जिस पर इक्का – दुक्का ग्रामीण अपने कार्यों हेतु आ जाते हैं , इसमें रोज औसतन घण्टे भर भी नहीं लगते । इसके बाद मेरे पास समय ही समय होता है जिसका ज्यादातर उपयोग पढ़ने में ही करता हूँ , हालाँकि लेखन के लिए मुझे रात्रि का समय ज्यादा अनुकूल लगता है । मेरी रुचि उपन्यासों में ही अधिक है , पुराने लेखकों में करोड़ों साहित्यप्रेमियों की तरह प्रेमचन्द मेरे भी सबसे पसंदीदा रचनाकार हैं , उनके साथ – साथ शरतचन्द्र और  फणीश्वरनाथ रेणु , नरेंद्र कोहली भी । नए रचनाकारों में से जिनकी हाल में मैंने पुस्तकें पढ़ीं उनमें श्री केवल कृष्ण जी की बघवा और श्री राजीव रंजन प्रसाद जी की लाल अंधेरा ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया।
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest