Wednesday, September 18, 2024
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सवालों के घेरे में है – ‘नेहा की लव स्टोरी’!

अरसे बाद ऐसा हुआ कि किसी उपन्यास को एकबार में पूरा पढ़ गई हूं। यह उपन्यास है सोनाली मिश्रा का –  ‘नेहा की लव स्टोरी’। उपन्यास की शुरुआत सामूहिक बलात्कार के बाद जिंदगी बचाने की जद्दोजहद करती लहुलुहान एक औरत से होती है। बाद में पता चलता है कि वह एक हिंदु लड़की है जिसने एक मुस्लिम लड़के से प्यार किया था। उसकी ये हालत किसने कर दी? क्यों कर दी? क्या यह धर्मान्तरण की कहानी है? क्या यह लव जेहाद है?
उपन्यास की नैरेटर – ‘नेहा’, एक बड़े चैनल की मशहूर एंकर है, तथाकथित ‘फैमिनिस्ट’ विचारों से लैस। वह ‘लव’ और ‘जेहाद’ को अलग-अलग कर के देखती है। उसे हिंदु धर्म में बंधन और रूढ़िवादिता दिखाई पड़ती है जबकि इस्लाम में आजादी। वह खुद हिंदु है और एक मुस्लिम लड़के से बेइंतहा मुहब्बत करती है।  
‘सोनाली मिश्रा’ से मेरी मुलाकात साहित्य अकादमी में पढ़ी गई उनकी एक कहानी के जरिए हुई थी और दादी के मनोभावों का अनुवाद करते हुए उन्होंने मेरे मन को भी छू लिया। यह उपन्यास भी अपने किरदारों के माध्यम से बहुत-सी मानसिकता का अनुवाद करता है। ‘विश्वास’ नाम के पात्र से हिंदु धर्म को व्याख्यायित किया गया है तो ‘सुल्तान भाई’ के जरिए इस्लाम को। दोनों ही पक्ष एक-दूसरे के रूबरू खड़े हैं और अपना-अपना नैरेटिव रखते हैं। यह नैरेटिव पाठकों को कितना कुबूल है, यह तो हर पाठक पर अपनी तरह से निर्भर करता है किंतु इतना तय है कि उपन्यास के हर किरदार का चरित्र बहुत खुलकर आया है। पात्र के अनुरूप भाषा और विचारधारा संवादों में ढल जाती है।
एक घटना से कथानक को उठाकर उसे दो सौ से अधिक पन्नों तक इस रफ्तार से लिए जाना कि पाठक उसकी गिरफ्त से निकल न पाए और ‘वन-गो’ में पूरी किताब पढ़ जाए, यह लेखिका की काबिलियत को रेखांकित करता है। उपन्यास की नैरेटर ‘नेहा’ अपने चैनल की ओर से इस केस को कवर करने आती है और लगातार इन सवालों से टकराती है जो लव को जेहाद में बदल देते हैं। नेहा के तर्क पाठकों के तर्क से मेल खाएं, ऐसी कोई शर्त लेखिका नहीं रखती हैं। बल्कि नेहा तो खुद बहुत असमंजस में है कि वह किस पक्ष को स्वीकारे। फिर भी, इस माध्यम से वह दोनों पक्षों को बखूबी पेश करती है।
बुरी तरह से रौंदी गई इस लड़की का बचना बहुत जरूरी है जिसका बयान कई सवालों के जवाब दे सकता है। मगर छः माह की गर्भवती स्त्री के साथ किया गया यह जघन्य बलात्कार क्या उसे इस लायक छोड़ता है कि वह जिंदा बचे और इन सवालों का जवाब दे सके? क्या इस घटना को पिछली अन्य कई घटनाओं से जोड़कर देखना लाजमी है? क्या इन घटनाओं में कोई पैटर्न मिलता है, या कोई पैटर्न खोजा जा सकता है? क्या सामूहिक बलात्कार की इन घटनाओं को ‘जेनोसाइड’ यानी ‘सामूहिक नरसंहार’ का नाम दिया जा सकता है?
ऐसे अनेक सवालों का सामना करता है यह उपन्यास!
अपने पहले ही उपन्यास में बेबाकी से आवाज बुलंद करती लेखिका, सोनाली मिश्रा का यह उपन्यास गंभीर चर्चा की मांग करता है।

समीक्षक – अलका सिन्हा 
वरिष्ठ साहित्यकार
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