1- नाम नहीं छोटू

उज्जवल बने भविष्य तुम्हारा ,

बनो देश के तुम रखवाले,

 जब बच्चा पैदा होता है ,

यही सोचते हैं घर वाले |

मगर गरीबी के हाथों का ,

ख़ंजर उन्हें डराता है ,

नहीं तुम्हारी खातिर बचपन,

वक़्त उन्हें धमकाता है |

छोटू टेबल साफ़ करो ,

और बाबू जी को चाय पिलाओ,

लड्डू बर्फी इन्हें परोसो,

 ख़ुद चाहे भूखे सो जाओ,

लिए पेट में भूख अँधेरी,

छोटू भूखा सो जाता है,

नहीं तुम्हारी खातिर बचपन,

वक़्त इन्हें धमकाता है |

ये छोटू किसने नाम दिया है?

इस नाम को क्या अंजाम दिया है??

झूठे बर्तन की झूठन में,

असली नाम कहाँ खो जाता है,

नहीं तुम्हारी खातिर बचपन,

वक़्त इन्हें धमकाता है |

आओ वक़्त की मार को बदलें,

वक़्त की ख़ूनी धार को बदलें,

डूबते बचपन की नैया को,

मिलकर पार उतारें,

“सबसे पहले उस बच्चे का,

असली नाम पुकारें”,

फिर देखें कि कौनसा डर,

हरदम उन्हें डराता है,

कि नहीं तुम्हारी खातिर बचपन,

“क्यों वक़्त उन्हें धमकाता है |

ऐसा करने से छोटू,

नाम कहीं खो जाएगा,

फिर………………,

नहीं तुम्हारी खातिर बचपन,

नहीं वक़्त उन्हें धमकाएगा |

अपने से कमज़ोर को नाम से पुकारें,

असली नाम से उसकी पहचान को उबारें,

फिर देखना नाम का दायरा घट जाएगा ,

उसके नाम में से ‘छोटू’ शब्द  हट जाएगा,

इस शब्द के हटते ही उसका जीवन बदलेगा,

उसके भीतर से फिर एक ऐसा इंसान निकलेगा,

जो खुद को ही नहीं ज़माने को भी बदलेगा।

2- पंच तत्व

पंच तत्वों से बना शरीर

शिथिल होता जा रहा है

शरीर,जिसको स्वयं

मानव खा रहा है,

श्वास का भी ह्रास

होता जा रहा है

जहां दौड़ने की होड़

चल नहीं पा रहा है

जल को इसने,इतना

दूषित कर डाला है

स्वच्छ समझता जिसको

ज़हर का इक प्याला है,

        शीतल पवन भी

कर डाली है इसने झूठी

भीतर से जल जलकर

अब तो हवा भी रूठी

चारों ओर धुआं धुआं

बन कर है फैली

हरी भरी कहलाती

धरती हो गई मैली

क्षिति(धरती) की क्षति का

मानव को आभास नहीं है

धरती को अब कूड़ा कर्कट

रास नहीं है

दूषित जल,जो ज़हर हुआ

सब ख़ुद में समोती

धरती माता आंचल में

मुंह ढक कर रोती

हवन कुंड की शुद्ध हवा

सहमी सहमी सी

प्रदूषण के दोष को

अपने सिर ढोती है,

आकाश में बादल

मचल जो झूमते थे

बन के बरखा जो

धरा को चूमते थे

अब धुएं की क़ैद में

बर्बाद हैं

जो कभी कहते थे

हम आज़ाद हैं।

पंच तत्व,जिसने

मानव को श्वास दिया है

वाह रे मानव! तुम ही ने

इसका नाश किया है।

ये विनाश का बोझ

तुम्हारे कांधों पर है,

इसको ज्यादा दिन अब

तुम नहीं ढो पाओगे,

संभल जाओ…और

प्रकृति का तुम साथ निभाओ

वरना… धरती से तुम,मानव

खो जाओगे! खो जाओगे!!

वरना…….

धरती से

तुम, मानव

खो जाओगे!

खो जाओगे!!

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