1- तमाशा
“बन्दर! गुलाटी मार के दिखाएगा।”
पेन्ट-शर्ट-टाई पहने बंदर बेमन से गुलाटी मार गया।
“चल साईकिल चला के दिखा”
बंदर हिला नहीं तो मदारी ने छड़ी फटकारी।
बंदर साईकिल चढ गया।
“चल रस्सी पर कलाबाजी दिखा।”
मदारी ने गर्दन से बँधी रस्सी को झटका दिया। मजबूरन बंदर रस्सी पर उछलकूद करने लगा।
“सूट पहनकर दुल्हनिया लेने जाएगा?”
अब बंदर रोज रोज के इस तमाशे से उकता गया। वह उठा ही नहीं।
मदारी ने रस्सी को झटका, छड़ी फटकारी, मगर बंदर नहीं हिला।
“चल सलाम करके दिखा। अबे करतब नहीं करेगा तो खाएगा क्या? तरक्की कैसे करेगा? अच्छी नौकरी-अच्छी दुल्हन कैसे पाएगा?” मदारी ने बंदर को पटाने के साथ पब्लिक को हँसाने का प्रयास किया।
बंदर फिर भी नहीं उठा।
गुस्साये मदारी ने एक छड़ी बंदर को जमा दी।
बंदर को बड़ा गुस्सा आया। उसने सूट टाई उतार कर मदारी के आगे पटक दिये और मुँह फुला कर बैठ गया।
“रोहन! यहीं खड़े रहना है क्या? चलो कराटे क्लास के लिए देर हो रही है, फिर डांस क्लास भी है। शाम को ट्यूशन सर भी आऐंगे। क्या होता जा रहा है तुम्हे? तुम बिलकुल बिगड़ते जा रहे हो, कल शर्मा अंकल को पॉयम भी नहीं सुनाई थी। ” मम्मा की आवाज सुन रोहन चौंका, थके चेहरे की मुस्कान बुझ गई।
उसके मन में आया कि वह भी बंदर की तरह कराटे यूनिफार्म उतार कर मम्मा के सामने पटक दे और मुँह सुजाकर वहीं बंदर के पास बैठ जाए।
मम्मा ने हाथ पकड़ कर खींचा, तो रोहन पीछे पीछे घिसटता सा चल पड़ा।
मुड़कर देखा तो बंदर भी सिर पर पोटली लिए मदारी के इशारे पर चल पड़ा था।
2- अनुकम्पा
सतीश फिर रह गया था। ये तीसरी बार था, जब वह नौकरी लगने से चूक गया। अब तो उसकी हिम्मत भी टूट गई थी।
माई ने उसका रूँआसा चेहरा देखकर सीने से चिपटा लिया तो उसके आँसू फूट पड़े।
“हमसे नहीं हो पाएगा अम्मा। हम हार गए हैं।” कहते हुए उसने तीखी नज़र से पिताजी की तरफ देखा।
पिताजी उसकी नज़रों का सामना न कर सके। मगर वे करते भी क्या? सरकारी दफ्तर में कनिष्ठ बाबू ही तो थे, वो भी ईमानदार।
मुन्ना बाबू ने पाँच लाख रुपए माँगे थे, सलेक्शन करवाने के। उनके पास इतना पैसा था नहीं।
“हिम्मत रखो बचवा, अगली बार तो सलेक्शन हो ही जाएगा।” पिताजी कह तो गए, मगर बेटे से आँख नहीं मिला पाये।
बेटे का दुःख उनसे देखा नहीं जा रहा था। उन्होने तय कर लिया कि किसी भी तरह से बेटे को नौकरी पर लगवाना ही है।
आज जब अस्पताल में उनकी आँख खुली तो देखा कि बेटा चरण पकड़े रोते जा रहा है।
“ऐसा काहे किये पिताजी?”
“हमसे तुम्हारा दुःख देखा नहीं गया बचवा, हम सोचे रहे कि हमरे बाद सरकार से तुमको हमारी जगह अनुकम्पा नियुक्ति मिल जाएगी।” पिताजी रूँधे गले से बोले।
“हमको सरकारी अनुकम्पा नहीं चाहिए बाबा। ईश्वर की अनुकम्पा बनी रहे और तुम्हारा आशीर्वाद सिर पर रहे, तो कुछ न कुछ हो ही जाएगा। सरकारी नौकरी ही सब कुछ तो नहीं।” दोनो बाप-बेटा गले मिल कर रो पड़े।