होम कविता डॉ रेनू सिरोया “कुमुदिनी” की कविता – मैं गंगा की धार बनूँ कविता डॉ रेनू सिरोया “कुमुदिनी” की कविता – मैं गंगा की धार बनूँ द्वारा डॉ रेनू सिरोया "कुमुदिनी" - July 12, 2020 190 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet तू अम्बर की ऊंचाई मैं धरती का आकार बनूँ तू क्षितिज की सीमा रेखा मैं तेरा विस्तार बनूँ तू सागर की गहराई तो मैं मोती बन जाऊंगी तू दीपक की बाती है तो मैं ज्योति बन जाऊंगी मेरी दुनिया तू बन जाना मैं तेरा संसार बनूँ मैं बदली हूँ नीर भरी तो तू शीतल जलधारा है तू धरती की हरियाली मेरे जीवन का सहारा है तू महका मधुबन है मेरा मैं फूलों का हार बनूँ तू पूनम का पूर्ण चंद्र है मैं हूँ तेरी चकोर प्रिये तू मुरलीधर मैं राधिका बंधी नेह की डोर प्रिये धड़कन का तू गीत मधुर मैं वीणा की झनकार बनूँ तू शब्दों में गीत प्रीत का सुरमयी मैं रागिनी हूँ इंद्रधनुष तू नील गगन का मैं तेरी ही कुमुदिनी हूँ तू हिमगिरि की पावनता और मैं गंगा की धार बनूँ संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं मनवीन कौर की कविता – मेरे पापा हरदीप सबरवाल की चार कविताएँ अनीता रवि की कविता – मैं पांचाली नहीं Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.