तोषी अमृता ब्रिटेन की श्रृंगार रस की वरिष्ठ कवयित्री हैं। करीब एक दशक पहले उन्हें स्ट्रोक हुआ और उन्होंने बहुत बहादुरी से उसका मुक़ाबला किया। पिछले वर्ष उनके पति श्री अशोक त्रेहन जी का निधन हो गया। पुरवाई के संपादक तेजेन्द्र शर्मा के आग्रह पर उन्होंने अशोक जी की याद में दो कविताएं लिखीं। लीजिये हम अपने पाठकों के साथ साझा कर रहे हैं। प्रभु से प्रार्थना है कि तोषी जी को हिम्मत प्रदान करें।
1 – तुम नहीं तो….
(अशोक जी की याद में…)
तुम बिन ख़ाली नीरस जीवन जीना मुश्किल लगता है बातें करना हँसना रोना, सब कुछ मुश्किल लगता है।
धुआँ धुआँ दिखती है डगर, बिना हमसफ़र कैसा सफ़र डरती हूँ अपने साये से, हर चेहरा कातिल लगता है।
अनकहा अभी बाक़ी है बहुत, किसे सुनाऊं कौन सुनेगा? मन का दर्द छुपा कर हँसना मुश्किल लगता है।
साथ धड़कते थे दिल दोनों, साँसें घुल मिल जाती थीं अब केवल अपनी ही साँसों का स्पन्दन मुश्किल लगता है।
जीवन हुआ अधूरा और तुम दूर कहीं हो जा बैठे बिछुड़न के नाज़ुक लम्हों को, सहलाना मुश्किल लगता है।
आँखें गीली हो जातीं, जब याद तुम्हारी आती है क़तरा क़तरा जीने की कोशिश में मरना मुश्किल लगता है
2 – उजड़ा मकान….
बिन तुम्हारे ये घर, घर नहीं उजड़ा हुआ मकान लगता है गली कूचा ही नहीं सिर्फ़, शहर सारा सूना वीरान लगता है।
स्याह अंधेरा ही अंधेरा है हर सू, जहां देखूं जिधर जाऊं थरथरा रहीं है ज़मीं, धुआं धुआं सा आसमान लगता है।
रास्ता ना रहगुज़र न दूर कहीं मंज़िल का निशाँ उम्र भर टूट टूट कर चाहा जिसने, पल में गया कहाँ
मौत दिलकश ही रही होगी, जो संग वो हो लिया पाँव न उठ सके, वहीं खड़ी रही जहाँ वो छोड़ कर गया
तोषी जी की कविताएँ पढ़कर मन भर आया। उन्होंने अपने मन की वेदना को शब्दों में ज्यों का त्यों उतार दिया है।