जब कभी मैं अपने पास नहीं होता
ऐसा लगता है,इस दिल के
और भी कई ठिकाने हैं।
लगता है, चिनार के पैड़ तले
कोई दिन,पूरा का पूरा आबाद किया है।

आज फिर क्या वही दिन,
ख़यालों में ख़ुशबू फैलाने आया है?

कितनी दिलकश है ये दुनियाँ,
बन्धनों से मुक्त प्यार के एहसास में
कितनी मज़ेदार लगती है ?

अपनी ही साँसों का परायापन
कितना सुखद है;
लगता है, जब जब यह होता है
कोई इन्हें अपने आप में सुनता है।

किसीका क्यूँ यह कहना कि,
”बस बैठे रहो सामने,ज़ुबा से नहीं,
तो आँखों से ही करते रहो बात”,
मुझे अनुभूत करने की देता है ये सौग़ात।
“चुप क्यूँ होगए,आँखों से मुझे करने दो तुम्हें आत्मसात।”

ये कैसी आवाज़ उठती है सीनेसे,ये कैसी चाह जगती है मन में,
क्या ईश्वर के दो रूप,
एक होना चाहते हैं, तन-मन के माध्यम से?

कहीं भी चला जाऊँ मैं,
कहीं भी रहो तुम,
इक इन्द्रधनुष हम दोनो के बीच
रहेगा हरदम;
जिस पर चढ़ कर कभी रंग बिरंगे तुम
तो कभी रंग बिरंगा मैं,आजाएँगे पास,
कुछपल तुम मेरे बाहुपाश में,
तो कुछपल मैं तुम्हारे अंक में,करलेंगे “दो बात”,
जीवन भर का नहीं तो
कुछ ही पलों का करेंगे वादा साथ।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.