सत्य का समर्थक हूं मैं, मिथ्या – सक्त नहीं हूं
हां कदापि मैं किसी सियासतदार का भक्त नहीं हूं
मातृ – वंदना लिख कर के मैं हृदयानंद पाता हूं
शपथ भारती के क़दमों की राष्ट्र-गीत गाता हूँ
मातृभूमि का लहू जिस्म में मैं अपरक्त नहीं हूं
सत्य का समर्थक हूं मैं मिथ्या-सक्त नहीं हूं
हिन्द हमारे हृदय में बसता भारती मां का प्रहरी हूं
मैं किसान मैं नौजवान हूं गांव से बिछड़ा शहरी हूं
मैं गुलाब सा प्रेम-पुष्प कांटो सा सख़्त नहीं हूं
सत्य का समर्थक हूं मैं मिथ्या – सक्त नहीं हूं
मेरे गांव की धूल उड़े जब चम -चम करती रेंतो में
मैं मुस्काऊंगा बनकर के पुष्प तुम्हारे खेतों में
प्रियतम तेरे रग-रग में हूं मैं तुझसे विरक्त नहीं हूं
सत्य का समर्थक हूं मैं मिथ्या – सक्त नहीं हूं
मिट जाऊं मैं चमन के खातिर ख़ाक बनूं मैदानों में
माई मत रोना कर जाऊंगा नाम अमर बलिदानों में
कफन तिरंगा ओढ़ चला हूं मैं संतप्त नहीं हूं
सत्य का समर्थक हूं मैं मिथ्या-सक्त नहीं हूं