होम ग़ज़ल एवं गीत मनीष श्रीवास्तव बादल की तीन ग़ज़लें ग़ज़ल एवं गीत मनीष श्रीवास्तव बादल की तीन ग़ज़लें द्वारा मनीष श्रीवास्तव बादल - August 9, 2020 118 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet मनीष श्रीवास्तव बादल ग़ज़ल 1 नफ़रतों को काटती है उल्फ़तों की धार बस प्यार करिये प्यार करिये प्यार करिये प्यार बस ये कहाँ की मुंसिफ़ी है ये कहाँ की रीत है गुल उन्हें जो बेवफ़ा हैं बावफ़ा को ख़ार बस क्यों नहीं कहते हो खुल के क्यों ये लब ख़ामोश हैं क्यों फ़क़त हो खींचते पन्नों में कुछ अशआर बस मुझको फ़ुर्सत है नहीं जो प्यार की पोथी पढूं मुझको करते हैं प्रभावित पोथियों के सार बस उनके जीवन मे फ़क़त इतना दख़ल मेरा रहे उनकी नैया ग़र डिगे तो मैं बनूँ पतवार बस अब समझ आयीं उसे ग़ज़लों की सब बारीकियां अब वो ग़ज़लें कम लिखे है, साल में दो-चार बस हुस्न की पेचीदगी “बादल” नहीं समझा कभी इश्क़ के सँग हुस्न करता ही रहा व्यापार बस ग़ज़ल – 2 जिस्मों में जुम्बिश होती, साँसों की आवाजाही है मतलब ज़िन्दा होने की ये पुख़्ता एक गवाही है पत्थर चाहे मूरत बनकर मंदिर में पूजा जाए पत्थर पर चाकू की धारें, कब पत्थर ने चाही है धनवानों को देख ग़रीबी बेबस हो रब से पूछे मेरा हिस्सा लिखने वाले क्यूँ ये लापरवाही है बात क़लम की लंबी – लंबी, तलवारों पर हंसती है ठंडी – ठंडी सांसें लेकर बस मुस्काती स्याही है सारे बर्तन झगड़ा करते शोर बहुत करते, लेकिन- झगड़े को जो ठंडा करती वो तो एक सुराही है उम्र हुई तो पैर थिरकना कम हो जाता है अक्सर उनकी गलियों में जाता मन, फिर भी बनकर राही है उसने कब ‘डॉलर’ को अपने सपने में देखा “बादल” दौर पुराना ‘चार आने’ का, जो कहता है ‘शाही’ है ग़ज़ल 3 आज के माहौल में भी हिचकिचाता है बहुत खुल के कहता है नहीं वो बुदबुदाता है बहुत कोशिशें नाकाम थीं तो मंदिरों का रुख़ किया प्रार्थना करता नहीं अब गिड़गिड़ाता है बहुत पर कटे पंछी का यारों हौसला तो देखिए उड़ नहीं पाता है लेकिन फड़फड़ाता है बहुत सत्य की पगडंडियों पे लोभ के झटके भी हैं वो नहीं गिरता है लेकिन डगमगाता है बहुत चाहता चहरे पे सबके वो ख़ुशी, बस इसलिए अश्क़ आंखों में छिपा के गुदगुदाता है बहुत सत्य की रक्षा भला कैसे करे वो झूठ से साज़िशों में वो जकड़ कर कसमसाता है बहुत बारहा जज़्बात का है क़त्ल होता, इसलिए प्यार की बातों पे “बादल” मुस्कुराता है बहुत संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं दीपावली पर विशेष : वशिष्ठ अनूप का गीत कमलेश कुमार दीवान का दीपावली पर एक गीत – आओ अंतर्मन के दीप डॉ. रूबी भूषण की दो ग़ज़लें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.