- स्मिता कर्नाटक
बन पाती एक टुकड़ा राधा
तो दौड़ पड़ती
सुधबुध भुलाकर
तेरी स्वरलहरियों पर
या तेरी बाँसुरी में पैठ
घुल जाती
संगीत की तरह
फूट पड़ती
किसी कदम्ब की डार पर
बहती यमुना की तरह
और अगर हो पाती एक टुकड़ा मीरा
तो तेरा नाम लेकर
पी लेती हलाहल
और घर छोड़कर
निकल पड़ती
गलियों शहरों डोलती
और प्रेम रस बनकर बरस पड़ती
धुएँ ग़ुबार और कोलाहल से भरे
धरती के सूने हृदय पर
Loved it
Nice poem.