1 – गीत : राम आए हैं
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं,
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं।
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं,
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं।
तम घोर था निराशा का
दीप बुझा था आशा का
अब देखो चहुँ ओर सब
दिव्य-दीप जगमगाए हैं
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं,
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं।
थी सबकी बस एक चाह
निकले कहीं से कोई राह
राम की कृपा से देखो
राम खुद ही राह दिखाए हैं
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं,
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं।
काल-ग्रह सब भारी थे
दिवस सभी अंधकारी थे
अशुभ जो था बीत गया
शुभ दिन सब फिर पाए हैं
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं,
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं।
तप रही थी भूमि सारी
सूखी पड़ी थी हर इक क्यारी
प्यास बुझाने को मिट्टी की
अब मेघ घिर-घिर छाए हैं
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं,
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं।
मन में छाई थी उदासी
अँखियाँ थीं दर्शन की प्यासी
राम भक्तों के प्रयासों से
रामलला फिर घर आए हैं
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं,
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं।
दुष्टों का पलड़ा था भारी
सत्ता भी थी अत्याचारी
दुष्ट-दमन करके प्रभु राम
भक्तन को हर्षाए हैं
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं,
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं।
दुष्टों ने गोली चलवाई
मंदिर की राह में टांग अड़ाई
राम विरोधी थे जो सब
अब दर्शन को अयोध्या आए हैं
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं,
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं।
अयोध्या के भाग जागे
तेजी से बढ़ रही है आगे
राम अपने साथ देखो
विकास-लहर ले लाए हैं
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं,
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं।
संतोष अब सबको मिला
चेहरा भक्तों का खिला-खिला
दिन दुख के सब बीत गए
सुख-शांति अब सब पाए हैं
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं,
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं।
2 – हम सनातन
हम सनातन, हम सनातन,
युगों-युगों से इस धरा पर,
बस बचे हैं हम यहाँ पर,
हम अधुनातन हम पुरातन।
सृष्टि का आगाज हम हैं,
कल भी थे और आज हम हैं,
सहस्त्रों वर्षों की कहानी,
दुनिया भर में है निशानी।
विश्व भर से ये कहेंगे,
हम रहे हैं,  हम रहेंगे
अपनी जिद पर हम अड़े हैं।
हिमालय जैसे हम खड़े हैं,
वेद हम पुराण हम हैं,
सृष्टि का प्रमाण हम हैं,
मंत्र व ऋचाएं हम हैं
ग्रंथ व गाथाएं हम हैं।
इस धरा पर सब हैं अपने,
इतना ही हम जानते हैं,
पूरा जग परिवार इक है,
बस यही हम मानते हैं।
विश्व बंधुत्व की गाथाएं,
हम सदा से गाते आए,
सत्य और न्याय हेतु,
हाथों में ध्वजा उठाएं।
साहस शांति सद्गुण का,
सर्वत्र फैला प्रकाश हम हैं,
सर्व हितकारी भाव लिए
अनंत असीम आकाश हम हैं।
देव लोक हो कहीं भी,
उसे भू पर उतार लाएं।
मानवता के त्राण हेतु,
इस धरा को स्वर्ग बनाएं।
विश्व के कल्याण हेतु
भले हमारे प्राण जाएं।
अस्थि-दान देने वाले
दधीचि इस धरा ने पाए।
इस जगत का सार ये है,
मिथ्या सब संसार ये है,
दृष्टि जहाँ भी रही है,
माय है जो दिख रही है।
जीवन दर्शन के प्रणेता
विभिन्न विषयों के अध्येता
विश्व ने माना हमेशा
ज्ञान के हम रहे हैं नेता
प्रार्थनाओं में हमने,
विश्व का कल्याण मांगा,
यश व धन नहीं हमने,
मुक्ति और निर्वाण मांगा।
3 – हम मालिक अपनी मर्जी के
न मैडम के, न सर जी के
हम मालिक अपनी मर्जी के।
ज्यादा की कोई चाह नहीं
इसलिए कोई परवाह नहीं
जो बोया वो ही पाया है
जो है वो खुद कमाया है
सत्ता के किसी  दरबार में
नहीं प्रार्थी हम किसी अर्जी के
हम मालिक अपनी मर्जी के…
कबीर तुलसी के वंशज हम
मन की कहने का रखते दम
सच कहते सच ही सुनते हैं
नहीं झूठी बातें बुनते हैं
जो कहते वो ही करते हैं
नहीं करते वादे फर्जी के
हम मालिक अपनी मर्जी के …
सम्मान सभी का करते हम
पर नहीं किसी से डरते हम
न किसी के तलवे चाटें
न किसी की जड़ हम काटें
जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है
नहीं कायल हम खुदगर्जी के
हम मालिक अपनी मर्जी के ..
न मैडम के, न सर जी के
हम मालिक अपनी मर्जी के।
4 – महाठगबंधन
कभी गरियाते हैं,
तो कभी गले लगाते हैं
निज लाभ लोभ में
एक-दूजे को सहलाते हैं
एक पूरब एक पश्चिम,
एक उत्तर एक दक्षिण
देखो सब मिलकर अब
क्या-क्या गुल खिलाते हैं।
जनता को सदा छलते रहे
हक उनका ये निगलते रहे
विचारधारा मिले या न मिले
ये तेल में पानी मिलाते हैं।
करके वादा दिए के साथ का
हवा के साथ हो जाते हैं
अपने हित को नारों में
सदा जनहित ये बताते हैं।
एक-दूसरे को हमेशा ही
मौका मिलते ही नोचते रहे
देख शेर सामने अपने
गीदड़-गीदड़ मिल जाते हैं।
न कोई किसी की बहन
न  कोई किसी का भैया
सबको बचानी है कैसे भी
अपनी-अपनी डूबती नैया
नकली वादे, नकली दावे
नकली इनके सब नारे हैं
लोकतंत्र का मजाक उड़ाते
ये लोकतंत्र के हत्यारे हैं।

डॉ. शैलेश शुक्ला,
मझगवाँ, पन्ना, मध्य प्रदेश

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