1 – नजदीकियां दूर जा रहीं
ग़म-ज़दा हालात में खुश रहना सिखा रही
ये कैसी उदासी है जो कहकहे लगा रही
सबके साथ रहकर भी वो गुमशुदा सा रहे
फितरतन शायद उसे तन्हाइयां रास आ रही
वो कुछ हैरान भी है और ज़रा परेशान भी
लड़कपन से उसकी नजदीकियां दूर जा रही
बेशक उल्फ़त ही वजह है इस कुर्बत की
ऐसे ही नहीं यहां सरगोशियां चिल्ला रही
इन कानों को आदत है शोरोगुल सहने की
क्या जगह है यहां खामोशियां गुनगुना रही
2 – रिश्ते!
जब देने को कुछ नहीं था,
तो सब कुछ चाहिए था उसे..
आज जब कमाने लगा भाई,
तो उसकी खुशी से ही खुश हो जाती है..
देखते ही देखते,
बहनें भी माँ जैसी हो जाती हैं..
जब छोटा था उम्र में,
छोटी छोटी बातों पर झगड़ता था..
आज मेरा एक छोटा सा दुख देख,
दुनिया भर से भिड़ जाता है..
देखते ही देखते,
भाई भी दोस्त जैसे हो जाते हैं..
जब हम नासमझ बच्चे थे,
तब हमें डाँट डपट कर समझाते थे..
जैसे जैसे उम्र ढलती है,
इनकी ज़िद्द बढ़ती जाती है..
देखते ही देखते,
माँ बाप भी बच्चों जैसे हो जाते हैं..
कभी साथ रहकर भी दूर होना,
कभी दूर से ही ख़बर रखना..
रिश्तों की समझ सबको,
आते आते ही समझ आती है..
देखते ही देखते,
रिश्ते रिश्ते न होकर,
खूबसूरत एहसास जैसे हो जाते हैं..
जन्म दिल्ली में, बचपन राजस्थान के पीलीबंगा नामक छोटे कस्बे में बीता। स्कूलिंग दिल्ली में हुई। ग्रेजुएशन इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और पोस्ट ग्रेजुएशन कंप्यूटर्स में करके आईटी में काम किया और फिलहाल कंटेंट राइटिंग। लेखन पहला प्यार, शायरी, ग़ज़ल और कविताएं लिखने का शौक। वेबसाइट/ब्लॉग - gauravsinhawrites.in सोशल मीडिया प्रोफाइल्स - https://linktr.ee/GauravSinha

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