होमHomeडॉ. तारा सिंह 'अंशुल' की तीन नज़्में Home डॉ. तारा सिंह ‘अंशुल’ की तीन नज़्में By Editor July 23, 2019 0 177 Share FacebookTwitterPinterestWhatsApp डॉ. तारा सिंह ‘अंशुल’ 1. इस दिल के आंगन चुपके से फिर आये हैं दिल दार , वो आकर खड़े हुए मेरे सामने तो उमड़ा है फिर प्यार ! यादों का सागर लहराया फिर टूटे ये बंधे हुए तटबंध , एहसासों में स्मृतियों में फिर लौट हैं बिसरे अनुबंध ! इस मन को मिला सुकून दिल से दिल का हुआ दीदार , वो आकर खड़े हुए मेरे सामने तो उमड़ा है फिर प्यार ! निर्विकार हो गया टूटा दिल खुद में समेटे विरह वेदना , सूख गए हों जख़्म गर यूं अच्छा नहीं फिर से कुरेदना ! आजमाए को क्या आजमाना मन कहता तू कर इंकार, एहसासों में फिर ये लगा क्यों मेरी मोहब्बत का बाजार इश्क़ ए चमन कुम्हलाए हैं बेज़ार बिरह में मासूम दिल, पथिक प्यार के हम दोनों थे इक ये राह एक ही मंजिल उसूलों से बंधे हम दोनो मोहब्बत का नहीं हुआ इकरार वोआकर खड़े हुए मेरे सामने फिर उमड़ा है फिर प्यार नैन बरस गए उन्हें देखकर अदा वही नयनों की भाषा , जुल्फ घनीं बदन शीशे सा गढे मोहब्बत की परिभाषा ! हरदम हमने किया प्यारमें जीत उनकी औ’अपनी हार वो आकर खड़े हुए मेरे सामने तो उमड़ा है फिर प्यार ! !! 2. तब इक ख़त लिखना मुझे तुम.. जब उपवन में फूल खिलें औ जब खुशबू ए बहार आए या प्यार में बीता मधुर पल सब यादों में आकर शरमाए तब इक ख़त लिखना मुझे तुम महसूस नहीं कर पाते तुम मैं भी बहुत मजबूर हूं यार , तुम रहते सात समुंदर पार तेरा क्या हाल है दिलदार ! दिल टूटे और ख़्वाब बिखर कर जब जब तुम्हें सताए ! तब इक ख़त लिखना मुझे तुम अटके तेरे नैनों के कोरों में आंसू के फाहे छांट दूंगी , हर दुख दर्द ए ग़म तेरे हर कष्ट मैं खुशी से बांट लूंगी ! और जब दर्पण के सम्मुख तेरा ही चेहरा तुझे डराए ! तब इक ख़त लिखना मुझे तुम ! मोहब्बत में आशनाई में यूं किसी से मिली बेवफ़ाई में , जब भी पड़ो अकेले में जुदाई में रुसवाई में तन्हाई में ! सावन की रिमझिम फुहार में भी मेरी याद सताए ! तब इक ख़त लिखना मुझे तुम ! 3. अपना समझते वो गर मुझे तो परवाह मेरी होती जरूर विदेशों की तालीम तरक्की में यूं मिलता हमेशा गुरूर तोहफ़ा ए बेवफ़ाई मिला सितमगरसे अंजामे उल्फत में दिल तोड़ मेरा बिखराया समझके खिलौना मोहब्बत में प्यार खेल जो समझते हवस के नशे में ही रहते हैं चूर, अगर वो मुझे अपना समझते परवाह मेरी होती जरूर! पलकों में छुपाकर जिन्हें हृदय में बसाये रखा है कब से दुआ मांगते सलामती की जिनकी हमेशा अपने रब से वही आज मोहब्बत को दरकिनार कर होगये हैं मगरूर गर मुझे अपना समझते वो तो परवाह मेरी होती जरूर बेदर्द बेरहम दिल जिनका आवारा घटघट का पीते पानी , बेवफ़ा फ़रेबी बेमुरव्वत सा रहते वअजब है ज़िंदगानी दौलत के साए में शोहरत नशे का चढ़ा है रगरग सुरूर गर मुझे अपना समझते वो तो परवाह मेरी होती जरूर Share FacebookTwitterPinterestWhatsApp पिछला लेखवातायन लंदन द्वारा कहानी पाठ एवं चर्चा का आयोजन….अगला लेखडॉ. ममता मेहता की ग़ज़ल Editor RELATED ARTICLES Home ओमप्रकाश यती की कलम से – “ज्योति जगाए बैठे हैं” : हिन्दी ग़ज़ल का एक ज्योति-पुंज April 20, 2024 Home अनामिका की कविता – शीरो March 17, 2024 Home प्रियंका द्विवेदी की लघुकथा – कर्जा December 31, 2023 कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें टिप्पणी: कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! नाम:* कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें ईमेल:* आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें वेबसाइट: Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed. Most Popular कविताएँ बोधमिता की November 26, 2018 कहानीः ‘तीर-ए-नीमकश’ – (प्रितपाल कौर) August 5, 2018 ‘हयवदन’ : अस्मिता की खोज May 2, 2021 विनीता परमार की कहानी – घोषा April 12, 2020 और अधिक लोड करें Latest लालित्य ललित का व्यंग्य – पांडेय जी सम्मान मंडी में July 20, 2024 संजय अनंत की तीन कविताएँ July 20, 2024 उपासना सियाग का लेख – केमद्रुम योग July 20, 2024 नरेंद्र कौर छाबड़ा की कहानी – वापसी July 20, 2024 और अधिक लोड करें