‘नया रास्ता’ हरे प्रकाश उपाध्याय का बारह वर्ष बाद प्रकाशित दूसरा कविता-संग्रह है। इतने लंबे अंतराल की वजह संभवतः यह कि कविताएँ पकती रहीं कवि के मानस में, मन में। परिवर्तित होते समय को, क्षरित होते रिश्तों को, संघर्षरत आम जन को, विविध आभासी दुनिया को, बाजार की इकाई के रूप में बदलते जा रहे समाज को, समय को और मशीनों पर निर्भर होते मनुष्य को कवि बड़ी गहराई से  देखते-परखते रहे एक लबे वक्त तक। चुपचाप, स्तब्ध होकर। तब कहीं ढल पाएँ  कविता रूप में उनके सारे सरोकार… शायद।
पहली ही ‘अब यह देश’ काव्य की पंक्तियाँ किसानों की दुर्दशा को रेखांकित करती हैं। कृषकों की आत्महत्या कवि को उद्वेलित करती हैं। वे विचलित हो उठते हैं। आशंका की कुहेलिका घेर लेती है कि कहीं सारे अन्नदाता आत्महत्या के लिए तो प्रेरित नहीं होंगे –
एक ऐसा अंधा कुआँ है
जिसमें जब भी झाँकिये
किसी किसान की लाश तैरती हुई दिखती है
हमारे देश की बड़ी समस्या भूख पर हर कलमकार ने इस पर कलम चलाई है। भूख को ढोता हर मनुष्य उस दिन की प्रतीक्षा में है, जब उसे भूख से निजात मिलेगी। यह प्रश्न यक्ष प्रश्न बन गया है, जिसका जवाब युधिष्ठिर के पास भी नहीं। हरिया, बुधनी, रमुआ पूछता फिर रहा है –
हर हाथ कमाएगा
हर मुँह पेट भर खाएगा
दिन वह कब आएगा
जब नहीं बुधिया का बेटा उपास रह जाएगा
कोई भूखा नहीं रह जाएगा
इसमें काव्य तत्व की कमी है। कुछेक अन्य काव्य में भी।  लेकिन सब बड़े प्रश्न उठाती हैं।
सजग कवि समय की केवल खूबियों से ही परिचय नहीं करवाता, समय और व्यवस्था की खामियों पर भी ऊँगली रखता है। अधिकांश कविताओं में हरे जी का वह कवि नजर आता है। ब्लर्ब पर अंकित निम्न पंक्तियाँ इसकी गवाह –
अरे ये तो इधर
काला जादू चल रहा है
भयानक खंडहर व्यवस्था का
उसमें नए रंग रोगन
रंगो के भरम में
कभी भीड़ इधर भागे
कभी भीड़ उधर भागे
जीवन के अँधेरे-उजाले को समान रूप से सम्मान देनेवाले कवि किसी भी भ्रम के शिकार नहीं हैं। वे तटस्थ होकर दोनों को सामने लाने की कोशिश में हैं।
कवि, उपन्यासकार, प्रकाशक, संपादक हरे प्रकाश उपाध्याय ने खंडहर शीर्षक से सात कविताएँ लिखी हैं, जिनमें सरोकार और प्रतिरोध का स्वर बहुत मुखर है। खंडहर शीर्षक से लिखी गई इन कविताओं में कवि की चिंता मनुष्य और मनुष्यता के  प्रति है। वे कमर कसकर इनके पक्ष में खड़ी नजर आती हैं। यथार्थवादी काव्य तीखे तेवरवाले हैं और चिंतन-मनन को मजबूर करते हैं।
बौद्धिकता की चादर भर
रही हमारी दुनिया…
उसी में छुपकर देखे हमने बड़े-बड़े सपने
सिर्फ सपने सपने सपने
और सपने सपने सपने
कवि ठीक ही कहते हैं कि हम सपनों में ही सोने और जगनेवाले लोग हैं। इस विशाल भारत में अपना भारत खोजने की कवि की तलाश पूरी नहीं होती, यह विचारणीय तो है ही, चिंतनीय भी है। कोई भी साहित्यकार हर परिस्थिति में सही का साथ देना चाहता है –
एक सही भविष्य बनाने के लिए
मैं एक गलत इतिहास नहीं पैदा कर सकता…
हर स्थिति के बावजूद आशा का दामन नहीं छोड़ना एक मनुष्य की पहचान है। एक कवि की पहचान है। ।
कविता-संग्रह का शीर्षक उम्मीद की लौ जगाता है कि नये रास्ते मिलेंगे जरूर। हरे प्रकाश के अंदर के कवि का विश्वास और हौसला पाठकों को आश्वस्त करता है। सपना शीर्षक की कविता कहती है –
बच्चा नींद से पहले सपने के बारे में सोचता रहा
सपने में एक गेंद होती
या एक गुलाब ही होता तो कितना अच्छा होता
बच्चे ने सोचा
बच्चों का यह सपना बचा रहे, बस यही तो चाहत है इस पुस्तक की। और इसीलिए इसकी कविताएँ बहुत ही तीखे शब्दों में, पुरजोर तरीके से अपनी बात रखती हैं। परिवर्तन के लिए ये प्रतिकार जरूरी हो जाते हैं।
दुख का दुख देखें –
कहांँ रहते हैं दुःख
क्या घर बदलते हैं दुःख
क्यों घर बदलते हैं दुख
दुख क्या ओढ़ते-बिछाते हैं
अक्सर ये कहाँ आते-जाते हैं
एक अलग भाषा का गठन कर कवि ने अपने लिखने की जमीन तैयार की है। जानी-पहचानी स्थितियों पर सार्थक, सारगर्भित लेखन। यहाँ स्त्री की चेतना-यातना को भी स्वर मिला तो कविता को भी –
कविता क्या है
नींद में जैसे सपना
जैसे किसी अपने का विलाप
जैसे पपीहे की बोली
 ‘नया रास्ता’ सपनों की बातें बारंबार करती है, सपने जगाने के लिए भी, सपनों से जगाने के लिए भी।… और फिर-फिर सपने देखने के लिए भी। पूरे होने के ख्वाब जगाती हुई… एक नये रास्ते की तलाश में।
समय से मुठभेड़ करतीं, प्रासंगिक, सामयिक सवालों से व्यथित-उद्वेलित करतीं, कलात्मकता की कसौटी से परे यथार्थ की कसौटी पर खरी उतरतीं पचासेक ज्वलंत कविताओं के नया रास्ता से मिलना पाठकों के लिए जरूरी।
काव्य पुस्तक : नया रास्ता
कवि : हरे प्रकाश उपाध्याय
प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन, लखनऊ
प्रथम संस्करण : 2021 
मूल्य : 200

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