Saturday, July 27, 2024
होमलघुकथाडॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी की चार लघुकथाएँ

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी की चार लघुकथाएँ

1 – चादर देखकर

कोरोना से पीड़ित दो आदमी एक ही निजी हस्पताल में भर्ती हुए। पूछताछ कर एक का नाम दर्ज किया गया ‘लाख’ और दूसरे का नाम ‘करोड़’।

दोनों से पूछा गया, “क्या मेडिकल बीमा करवा रखा है?” दोनों का उत्तर तो हाँ था लेकिन स्वर-शक्ति में अंतर था।
बहरहाल, दोनों से उनकी आर्थिक-शक्ति और बीमा की रकम के अनुसार फीस लेकर हस्पताल में अलग-अलग श्रेणी के कमरों में क्वारेंटाइन कर दिया गया। लाख के साथ एक मरीज़ और था, जबकि दूसरे कमरे में करोड़ अकेला था। लाख को इलाज के लिए दवाईयां दी गईं, करोड़ को दवाईयों के साथ विशेष शक्तिवर्धक टॉनिक भी। फिर भी दोनों की तबियत बिगड़ गई।
लाख को जांचने के लिए चिकित्सक दिन में अपने समय पर कुछ मिनटों के लिए आता तो करोड़ के लिए चिकित्सक का समयचक्र एक ही बिन्दू ‘शून्य घंटे शून्य मिनट’ पर ही ठहरा हुआ था। उसके बावजूद भी दोनों का स्वास्थ्य गिरता गया, दोनों को वेंटीलेटर पर ले जाया गया।
कुछ दिनों के बाद… लाख नहीं रहा… और करोड़ के कुछ लाख नहीं रहे।

2- मेरा घर छिद्रों में समा गया

माँ भारती ने बड़ी मुश्किल से अंग्रेज किरायेदारों से अपना एक कमरे का मकान खाली करवाया था। अंग्रेजों ने घर के सारे माल-असबाब तोड़ डाले थे, गुंडागर्दी मचा कर खुद तो घर के सारे सामानों का उपभोग करते, लेकिन माँ भारती के बच्चों को सोने के लिए धरती पर चटाई भी नसीब नहीं होती। खैर, अब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सब ठीक हो जायेगा।
लेकिन…
पहले ही दिन उनका बड़ा बेटा भगवा वस्त्र पहन कर आया साथ में गीता, रामायण, वेद-पुराण शीर्षक की पुस्तकें तथा भगवान राम-कृष्ण की तस्वीरें लाया।
उसी दिन दूसरा बेटा पजामा-कुरता और टोपी पहन कर आया और पुस्तक कुरान, 786 का प्रतीक, मक्का-मदीना की तस्वीरें लाया।
तीसरा बेटा भी कुछ ही समय में पगड़ी बाँध कर आया और पुस्तकें गुरु ग्रन्थ साहिब, सुखमणि साहिब के साथ गुरु नानक, गुरु गोविन्द की तस्वीरें लाया।
और चौथा बेटा भी वक्त गंवाएं बिना लम्बे चोगे में आया साथ में पुस्तक बाइबल और प्रभु ईसा मसीह की तस्वीरें लाया।
चारों केवल खुदकी किताबों और तस्वीरों को घर के सबसे अच्छे स्थान पर रख कर अपने-अपने अनुसार घर बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने आपस में लड़ना भी शुरू कर दिया।
यह देख माँ भारती ने ममता के वशीभूत हो उस एक कमरे के मकान की चारों दीवारों में कुछ ऊंचाई पर एक-एक छेद करवा दिया। जहाँ उसके बेटों ने एक-दूसरे से पीठ कर अपने-अपने प्रार्थना स्थल टाँगे और उनमें अपने द्वारा लाई हुई तस्वीरें और किताबें रख दीं।
वो बात और है कि अब वे छेद काफी मोटे हो चुके हैं और उस घर में बदलते मौसम के अनुसार बाहर से कभी ठण्ड, कभी धूल-धुआं, कभी बारिश तो कभी गर्म हवा आनी शुरू हो चुकी है… और माँ भारती?… अब वह दरवाज़े पर टंगी नेमप्लेट में रहती है।
3- कुत्ते मास्क नहीं लगाते
‘कुत्ते मास्क नहीं लगाते!’ इस शीर्षक से एक बड़े समाचार पत्र के स्थानीय संस्करण में एक लेख प्रकाशित हुआ।
सवेरे-सवेरे पूरे शहर ने पढ़ भी लिया और फिर सम्पादक का फ़ोन कुतकुताने लगा। जो फोन पहली बार कुतकुताया, वह शहर के एक बड़े राजनेता का था। वह बोला, “सम्पादक जी, आपके लेख में दम नहीं है। आपको पता ही है कि कितनी समाज सेवा करनी पड़ती है हमें। धूप-बारिश-कोरोना की तो क्या जान की परवाह किए बिना लगातार सेवा मग्न रहते हैं। इसलिए कितनी ही बार मास्क भी हट जाता है। लेख में यह बात भी होती तो दम होता।”
सम्पादक चुप रहा, उसका चेहरा गम्भीर हो गया। सामने से फोन कट गया।
और दूसरी बार फोन कुतकुताया, वह एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी का था, वह बोला, “सम्पादक जी, आपके लेख में दम नहीं है। अरे! हमें दिन-रात शहर की समस्याओं से जूझना पड़ता है, इसलिए मास्क हट जाता है। ऐसा कुछ होता तो लेख में दम होता।”
सम्पादक अब भी चुप रहा, वह होंठ भींच कर ना की मुद्रा में धीमे-धीमे गर्दन हिलाने लगा और सामने से फोन कट गया।
तीसरी बार फोन कुतकुताया, वह एक बड़े पुलिस अधिकारी का था, वह बोला, “सम्पादक जी, आपके लेख में दम नहीं है। हम दिन रात शहर की सुरक्षा के लिए खटते रहते हैं, इसलिए मास्क हटते रहते हैं। ऐसा कुछ लिखते तो लेख में दम होता।”
अब भी सम्पादक चुप ही रहा, उसके चेहरा चिंतित हो गया था। सामने से फोन कट गया।
अब फोन चौथी बार कुतकुताया, नम्बर जाना-पहचाना नहीं था, फिर भी सम्पादक के चेहरे पर भय आ गया और उसने फोन को उठा लिया। फोन एक आम-आदमी का था। फ़ोन तो क्या वह आदमी भी कुतकुताया, “सम्पादक जी, आपके लेख में दम नहीं है। यह सब बातें तो हम राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों से सुनते ही रहते हैं। कभी बिना मास्क पकड़े जाएं तो पुलिस वाले भी चालान काट कर ऐसा ही भाषण सुना देते हैं। इसमें कुछ चित्र बिना मास्क के इन बड़े लोगों के भी होते तो…”
“अबे कुत्तेsss…” सम्पादक पूरी शक्ति से चिल्लाया।
लेकिन तब तक वह अनुभवी आदमी फोन को काटे बिना जेब में डाल चुका था।
4- अपवित्र कर्म
पौ फटने में एक घंटा बचा हुआ था। उसने फांसी के तख्ते पर खड़े अंग्रेजों के मुजरिम के मुंह को काले कनटोप से ढक दिया, और कहा, “मुझे माफ कर दिया जाए। हिंदू भाईयों को राम-राम, मुसलमान भाईयों को सलाम, हम क्या कर सकते है हम तो हुकुम के गुलाम हैं।”

कनटोप के अंदर से लगभग चीखती सी आवाज़ आई, “हुकुम के गुलाम, मैं न तो हिन्दू हूँ न मुसलमान! देश की मिट्टी का एक भक्त अपनी माँ के लिये जान दे रहा है, उसे ‘भारत माता की जय’ बोल कर विदा कर…”

उसने जेल अधीक्षक की तरफ देखा, अधीक्षक ने ना की मुद्रा में गर्दन हिला दी । वह चुपचाप अपने स्थान पर गया और अधीक्षक की तरफ देखने लगा, अधीक्षक ने एक हाथ में बंधी घड़ी देखते हुए दूसरे हाथ से रुमाल हिला इशारा किया, तुरंत ही उसने लीवर खींच लिया। अंग्रेजों के मुजरिम के पैरों के नीचे से तख्ता हट गया, कुछ मिनट शरीर तड़पा और फिर शांत पड़ गया। वह देखता रहा, चिकित्सक द्वारा मृत शरीर की जाँच की गयी और फिर  सब कक्ष से बाहर निकलने लगे।

वो भी थके क़दमों से नीचे उतरा, लेकिन अधिक चल नहीं पाया। तख्ते के सामने रखी कुर्सी और मेज का सहारा लेकर खड़ा हो गया।

कुछ क्षणों बाद उसने आँखें घुमा कर कमरे के चारों तरफ देखना शुरू किया, कमरा भी फांसी के फंदे की तरह खाली हो चुका था। उसने फंदे की तरफ देखा और फफकते हुए अपने पेट पर हाथ मारकर चिल्लाया,
“भारत माता की जय… माता की जय… मर जा तू जल्लाद!”
लेकिन उस की आवाज़ फंदे तक पहुँच कर दम तोड़ रही थी।

डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी
डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी
डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी, सम्प्रति: सहायक आचार्य (कंप्यूटर विज्ञान) फ़ोन: 9928544749 ईमेल: [email protected]
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest