1 – अहिंसावादी पार्टी
जंगल में चुनाव की सरगर्मियां तेज थीं इसलिए प्राणियों का और प्राणी नेताओं का आपसी मेल मिलाप बढ़ गया था। छुटभैये नेता अपनी-अपनी रोटी सेंकने के लिए अचानक सक्रिय होकर मैदान में ताल ठोंक रहे थे। लोगों को लुभाने के लिए हिंसक नेताओं ने भी अहिंसा का जाप शुरू कर दिया था। एकजुट होकर चुनाव लड़ने के इरादे से छोटे दल के कुछ प्राणी नेताओं ने जंगल के बाहर तालाब के किनारे गुप्त रूप से मिलने की योजना बनाई थी। सियार, भालू, लोमड़ी, बिल्ला, बगुला आदि नेता पहले से ही पहुंच गए थे। एक दूसरे का हाल समाचार लेते हुए वे अपनी-अपनी हांक रहे थे। इस सर्वदलीय पार्टी का नेता कौन होगा और जनता को अपनी ओर कैसे मोड़ा जाए इस पर बहस छिड़ी थी। अपनी-अपनी बात रखते हुए लोग नेता पद के लिए अपनी दावेदारी भी पेश कर रहे थे। भालू के बाद लोमड़ी ने अपनी बात रखी –
“मित्रों हमारी टोली ने तो शिकार करना एकदम से बंद कर दिया है। रूखी-सूखी और बासी खाना खाकर हम काम चला रहे हैं। सच पूछो तो एक दूसरे का आदर सम्मान करते हुए हम सबको भाईचारे की भावना से रहना चाहिए ताकि गरीब और असहाय लोगों पर कोई जुल्म ना हो। इस त्याग के लिए दल का नेता हमारे समाज से होना चाहिए।” सभी ने लोमड़ी समाज के त्यागवृत्ति की तारीफ की।
इतना सुनते ही बिल्ला बोला -“भाइयों मेरे साथ मेरे समाज ने भी कसम खाई है कि अब हम चूहों का शिकार नहीं करेंगे। लोक कल्याण के लिए इतना त्याग तो बनता है इसलिए नेता हमारे समाज का होना चाहिए।”
अब बगुले की बारी थी। अपने समर्थन में वह बोला, “साथियों मेरा यकीन मानिए मरी हुई मछलियां और पानी पीकर हम गुजारा कर रहे हैं इसलिए नेता पद के हम भी दावेदार हैं।”
संयुक्त दल के नेता पद को लेकर एकमत न होता देख, कॉमन मिनीमम प्रोग्राम तथा सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चा आरम्भ की गई। इस मुद्दे पर भी काफी गहमागहमी हुई पर कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। तब बगुला भगत बोला, –
“साथियों आप लोग चर्चा जारी रखें मैं तुरंत तालाब से ताजा जल पीकर आता हूँ।” और वह तालाव की ओर चल दिया। कुछ दूर जाने के बाद उसने आगे-पीछे देखा और तैरती हुई एक मछली को बड़ी फुर्ती से चोंच में लपक लिया। पेट पूजा हो जाने के बाद वह मीटिंग स्थल पर फिर हाजिर हो गया।
उसके चेहरे की रौनक देखकर लोमड़ी भी पानी के बहाने वहां से निकली। कुछ आगे जाने के बाद उसे एक मुर्गी नजर आई। आव देखा ना ताव उसने तुरंत उसे धर दबोचा। पीछे से सियार आ रहा है यह देखकर शिकार का कुछ हिस्सा उसे भी दे दिया। डकार देते हुए वे दोनों पुनः मीटिंग स्थल पहुंचे। बिल्ला भी कहां पीछे रहने वाला था। “जरा जाकर आता हूँ” कहकर जैसे ही कुछ आगे बढ़ा, खेत में उसे कुछ चूहे दिखाई दिए। बड़ी सफाई से उसने उन पर हमला किया और दो चूहों को गटक लिया।
जैसे ही वह मीटिंग स्थल पहुंचा, देखा तो तीन कौए पेड़ पर कांव – कांव करते हुए अपनी बोली भाषा में शोर मचा रहे थे, “राज की बात खोल दूँ तो…l” सभी अचरज में पड़ गए अतः मिलकर सभी नेताओं ने
उन्हें आश्वासन दिया, “भाई लोग चिंता मत करो, तुम्हारे समाज के लिए भी कुछ खास इंतजाम हो जाएगा।”
इसके बाद सर्वसम्मति से संयुक्त मोर्चा का ऐलान करते हुए पार्टी का नाम – अहिंसावादी पार्टी रखा गया। साथ ही सबको सूचित किया गया कि सर्वोच्च नेता पद का चयन, चुनाव के बाद किया जाएगा। इस घोषणा के बाद प्रेस नोट जारी कर दिया गया।
2 – हाई प्रोफाइल बहू
शाम की फ्लाइट से ही सागर को बँगलूरू लौटना था। उसकी शादी की बातचीत चल रही थी इसलिए मेहरा परिवार ने काफी दबाव डालकर उसे मुंबई बुलाया था। लड़की देखने का कार्यक्रम सम्पन्न हो गया था। मेहरा जी की अभी इस विषय पर सागर से खुलकर बात नही हुई थी इसलिए मौका देखकर उन्होंने सागर से इस बात का जिक्र छेड़ ही दिया l
सागर ने पहले घरवालों की राय जाननी चाही l सबने एक सुर में हामी भर दी- “अनन्या हम सबको पसंद है। सम्पन्न परिवार की इकलौती बेटी है और रिश्ता भी बिरादरी से है। अपनी राय बता दो तो आज ही हम उनसे बात कर लेंगे। तनेजा जी का फोन कल आया था, उन्हें रिश्ता मंजूर है और अनन्या ने भी हाँ कर दिया है।”
सागर की माँ तो लड्डू लेकर ही बैठी थी, उन्हें सिर्फ बेटे के हाँ का इंतजार था l उसकी बहन भाभी को लेकर सतरंगी सपने संजोए बैठी थी तथा मेहरा जी छड़ी को सहलाते हुए बेटे की “हाँ” सुनने के लिए आतुर हो रहे थेl सागर ने एक लंबी सांस भरी और बोला –
“आप सभी की भावनाओं का मैं सम्मान करता हूँl अनन्या वास्तव में सुंदर, करियर ओरियंटेड, माडर्न खयालों की स्मार्ट इंजीनियर है।” सागर के मुख से इतना सुनते ही उसकी मम्मी ने लड्डू बाँटना शुरू कर दिया। सागर ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा,
“एकांत में अनन्या से मेरी जो बातें हुई उससे मैं भी संतुष्ट हूँ। उसे हाई प्रोफ़ाइल करियर, आधुनिक जीवन शैली और विदेश में सेटल होने में रुचि अधिक है। मैं खुद एक मल्टीनेशनल कंपनी में ‘आई.टी.’ इंजीनियर हूँ और देश-विदेश का टूर भी करता हूँ पर अपनी मिट्टी का तिलक करता हूँ। मेरे साथ अनन्या जैसी लड़कियाँ सहकर्मी के रूप में कार्य करती हैं। ऊंची तनख्वाह, काम का तनाव, एकल जीवन शैली आदि के चलते सिगरेट, शराब, लेट नाईट पार्टी, फ्लर्टिंग आदि उनके लिए आम बात है। हम लोग यंत्रवत जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं जिसके कारण घर-परिवार और देश-दुनिया से पूरी तरह कट जाते हैं। हम कमाते तो राजा जैसे हैं पर खटते हैं गदहों की तरह और खाते हैं भिखारियों की तरह। पापा, मैं हाई प्रोफाइल पत्नी नहीं, बल्कि अपने घर-परिवार, परिवेश के अनुसार गृहलक्ष्मी जैसी बहू चाहता हूँ, जिसके पास इतना समय और संस्कार हो कि वह हम सबमें रच-बस जाए। हमारा सुख-दुख उसका और उसकी पीड़ा हमारी हो जाए। आपके पोता-पोती को आयाओं के रहमों करम पर नहीं, बल्कि दादा-दादी की छत्रछाया में पले-बढ़ें। पैसे तो मैं कमा ही रहा हूँ बस शांति भरी जिंदगी चाहता हूँl अनन्या के पास इतना समय ही कहाँ है? मैं उसकी सोच की कद्र करता हूँ। पापा, मैंने काफी चिंतन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि मैं उसके योग्य नहीं हूँ ! वह अपने विचारों से समझौता करने को तैयार है पर मैं उसके सपनों को मरने नहीं देना चाहता। आय एम सारी पापा, मैं अपनी ज़मीन से कटना नहीं चाहता ! फ्लाईट का वक्त हो रहा है, कुछ देर में मुझे निकलना होगा।” पल भर के लिए घर में सन्नाटा पसर गया।
3 – पीड़ा की गठरी
लहराते हुए बस आई और वृद्धाश्रम के सामने रूक गई। बच्चे जो अब तक पिकनिक के मुड़ में थे, अचानक शांत हो गए। चूंकि 21 अगस्त अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस के रूप में मनाया जाता है इसलिए पिकनिक स्पॉट के बाद उन्हें इस वृद्धाश्रम में स्टडी टूर के लिए लाया गया था। वृद्धाश्रम के पदाधिकारी उनका इंतजार कर रहे थे l नोटबुक और पेन संभालते हुए बच्चे बस से नीचे उतरे l आपसी परिचय, खेल-कूद और जलपान के बाद पाँच-पाँच बच्चों की टीम बनाकर उन्हें वृद्धों के कमरे में संवाद के लिए भेजा गया l
निकिता अपनी टीम के साथ जिस कमरे में गई वहां एक दादी सो रही थीं l कर्मचारी ने बताया कि ये दादी अभी कुछ दिन पहले ही आईं हैं । उनकी तबियत ठीक नहीं होने की वजह से बाहर नहीं आई l उस कमरे में प्रवेश करते ही बच्चों ने दादी को प्रणाम किया l आहट सुनकर दादी उठकर बैठ गईं l
दादी का चेहरा देखते ही निकिता सन्न रह गई l दोनों की नज़रें एक दूसरे से टकराई और उनके भीतर स्नेह का लावा फूट पड़ा l दौड़ते हुए निकिता दादी से लिपट गई और जोर-जोर से रोने लगी l दादी भी उसे चूमने लगी l सामने का नज़ारा देखकर सभी चकित हो गए l रोने की आवाज सुनकर टीचर और अन्य लोग भी वहां आ गए। अचानक ये क्या हुआ? कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था l बड़ी मुश्किल से टीचर ने दोनों को शांत किया l
पानी पीने के बाद निकिता ने बताया – “ मैडम ये मेरी दादी है l घर में मुझे बताया गया था कि दादी गांव गई हैं ! क्या ये वृद्धाश्रम दादी का गांव है टीचर जी ?”
यह सुनते ही कमरे में एक अज़ीब-सा सन्नाटा पसर गया l एक दूसरे से बिछड़ने की पीड़ा निकिता और दादी के चेहरे पर साफ झलक रही थी l
“टीचर मुझे घर नहीं जाना है l मैं यहीं दादी के साथ रहूँगी और दादी की देखभाल करूंगी l जब मैं बीमार पड़ती थी, तो दादी को दिन-रात एक करते देखा है मैंने l मम्मी-पापा तो ऑफिस चले जाते थे l टीचर जी, वो सिर्फ दादी ही नहीं मेरी सहेली भी हैं l जहां भी रहेंगे अब हम दोनों साथ रहेंगे l पता नहीं मेरे मम्मी -पापा ने मुझसे झूठ क्यों बोला?”
दबी-दबी, घुटी-घुटी सी निकिता की आवाज सन्नाटे को चीर रही थी l बालमन को लगी ठेस से सबकी पीड़ा की गठरी खुल रही थी l
समाज को चुनौती देते तीन ज्वलंत प्रश्नों पर बेहतरीन कहानियाँ. बहुत अच्छी लगीं…हार्दिक बधाई और शुभ कामनाए..पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर