रजत एक बहुमंजिला इमारत में बनी सर्व सुविधा युक्त ऑफिस में बैठा लैपटॉप पर कुछ ऑफिशियल वर्क कर रहा था ।घंटों काम में डूबे रहने पर, उसने कुछ देर के लिए काम से ब्रेक लिया और चाय की चुस्की लेते हुए खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया।
बाहर रिमझिम बारिश हो रही थी और सड़क पर कुछ बच्चे बारिश में भीगते हुए मस्ती कर रहे थे ।बच्चों को देखकर सहसा उसे अपना बीता हुआ बचपन याद आ गया। वह भी अपने गांव में बारिश मे दोस्तों के साथ ऐसे ही मस्ती करता था। गांव का तालाब और नहर उसके लिए किसी बड़े स्विमिंग पूल से कम नहीं थे जिनमे वह तैरता था ।
गेहूं और सरसों के खेतों पर बनी पगडंडियों पर तितलियों का पीछा करता था।कभी आम के पेड़ पर चढ जाता तो कभी कटीली झरबेरी के झांड से बेर तोड़ने लगता इस प्रयास में कभी कभार उसको कांटा भी चुभ जाता पर इससे उसके उत्साह में कोई फर्क नहीं पड़ता था।
दोस्तों के साथ कंचे और गिल्ली डंडा खेलना, पड़ोस के रामदीन चाचा के अमरूद के बगीचों से अमरूद चुराकर खाना ,दोस्तों के साथ शरारते करना और देर शाम बिखरे बालों और धूल से सना चेहरा लिए घर पहुंचना फिर मां की मीठी डांट के साथ सूखी रोटी और चटनी खाना ।
अहा वो भी क्या दिन थे । उस सूखी रोटी मे भी कितना स्वाद था। आज हजारों लजीज पकवान है मगर भूख नहीं है । मां के हाथ का खाना खाए तो जैसे बरसों बीत गए। धीरे-धीरे पढ़ाई और कैरियर के सिलसिले में मां-बाप और गाँव सभी पीछे छुटते चले गए और वह कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ता चला गया ।
आज उसे लाखों का पैकेज मिल रहा है मगर वह गांव और मां का आंचल जैसे सुकून नहीं मिला कही ।बाहर बारिश थम चुकी थी मगर उसकी आंखों से बारिश शुरू हो गई थी। ।सड़क पर एक फेरीवाला ऊंची आवाज में ‘छोड़ आए वे गलियां ‘ गाता हुआ चला जा रहा था जो उसकी दुखती रग के दर्द को और बढ़ा रहा था।
अच्छी लघु कथा है कमल जी ! पैसों की चमक और शाही जीवन की चाह ने परिवार से दूर कर दिया है लोगों को।
अनायास ही एक गाना याद आ गया-
आया है मुझे फिर याद वो जालिम
गुजरा जमाना बचपन का।
हाए रे अकेले छोड़ के जाना
और ना आना बचपन का ।
वो खेल वो साथी वो झूले ,
वो दौड़ के कहना आ छू ले ,
हम आज तलक भी ना भूले ,
वो ख्वाब सुहाना बचपन का।
वाकई बचपन से अच्छे कोई दिन नहीं होते।
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
गया ले गया जीवन की तू सबसे मस्त खुशी मेरी।
आपकी लघु कथा बचपन में ले गई और सच कहें तो उस गाने को लिखते हुए हमारे आँखों में आँसू थे।
चाहे जैसा भी हो पर बचपन जीवन का स्वर्ण काल होता है।
अच्छी लघुकथा के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई।
लाजवाब लघुकथा, वो बचपन चाहे जहाँ का हो, हमेशा याद आता है। पीछे लाकर खड़ा कर दिया आपने लेकिन ये तो नियति है ठहरा हुआ जीवन आगे तो बढ़ेगा ही।