मुग्धा ने बच्चे के जन्मदिन पर सत्यनारायण की पूजा रखवाई थी। जान-पहचान और पड़ोसियों को भी कह देने के ख्याल से उसने रमेश से कहा..
“देखो!..ये मैने कुछ नाम लिख दिए हैं, सबको कॉल करके समय पर आने के लिए बोल दो। मुझे तैयारियाँ करनी हैं।”
मुग्धा की अपने बगल वाले पड़ोसी से थोड़ी सी अनबन हो गई थी, हालांकि गलती उसी की थी। उसने बाद में अपने किये के लिए माफी भी माँगी थी। बच्चे का जन्मदिन है और वह मुग्धा के बच्चों को प्यार भी करती है।उसने सोचा! खुद ही चलकर बोल दूँ आने को।
घर में कुछ रिश्तेदार भी आ गये थे। अभी निकलने को ही थी कि पीछे से बच्चे की बुआ ने टोका..
“कहाँ जा रही हो मुग्धा ! कितना काम है देखो तो।”
“आई दीदी! बस जरा इस बगल में बोल आती हूँ खुद से, उसे अच्छा लगेगा। बच्चों को खूब प्यार भी करती है।आज बाजार से आते वक्त पूछ रही थी छोटे से, “आज क्या है! बहुत लोग की आवाज आ रही है? छोटे ने कह दिया है कि उसका जन्मदिन है और पूजा होने वाला है।”
“कोई जरुरत नहीं है चलो वापस आओ! मूर्ख लोगों से दोस्ती करने और रखने की जरुरत क्या है? रमेश ने भी कहा है मुझसे कि यह बहुत लड़ाई करती है। ऐसे लोग हमारी दोस्ती के लायक नहीं।”
बड़ी ननद की धाक के आगे उसकी एक न चली, साथ में रमेश को भी हाँ में हाँ मिलाते देख भीतर तक आहत हो गई थी वह।
इतना भी क्या गाँठ बाँध कर रखना,एक मामुली सा बाताबाती याद है पर उसकी अच्छाई याद नहीं।
मन ही मन रमेश को शिकायती लहजे में कहती रही..
ये तुमने अच्छा नहीं किया रमेश!.तुम्हारी बहन आज आई है चली जाएगी,पर तुम ये क्यूँ नहीं सोंचते कि पड़ोसी जैसा भी होता है भाग्य से मिलता है। वह कभी बदला नहीं जा सकता, अच्छाई और बुराई सब के साथ अपनाना पड़ता है।
वो मूर्ख तुम्हारी नजर में होगी, मेरी नजर में नहीं। अपने पढ़े-लिखे होने का इतना अभिमान भी ठीक नहीं।