Saturday, July 27, 2024
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पद्मा मिश्रा की लघुकथा – महानता

शिखा पूरी कक्षा के सामने हैरान परेशान सी खड़ी थी, वह समझ नहीं पा  रही थी कि आज सुधा  मैडम को हुआ क्या है ?–रोज की तरह उसकी तारीफ करने की बजाय वह इतना नाराज क्यों हो उठीं ?– कक्षा में कवि  रत्नाकर के पद सुधा मैडम पढ़ा रही थीं– यह पिछले दो दिन का गृह कार्य था, सभी छात्राओं को एक-एक करके पदों के अर्थ और प्रसंग बताने थे ,-जब शिखा  की बारी आई ,तो उसने बड़े आत्मविश्वास से बताना शुरू किया —-”प्रेम मद छाके पग परत कहाँ के कहाँ, थके अंग नैनन शिथिलता सुहाई है ,–एक कर राजे नवनीत जसुदा के दियो ,एक कर वंशी वर राधिका पठाई है ”-उद्धव गोपिकाओं से मिल कर लौट रहे हैं -उनके प्रेम में मतवाले  चरण जहाँ के  तहां डगमगाते पड़ रहे हैं, –उनके हाथों में माँ जसोदा का दिया माखन और राधा के द्वारा चुराई कृष्ण की बांसुरी है, जो कृष्ण के लिए भिजवाई है ”बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि सुधा मैडम जोर से चिल्लाई –”क्या समझा रही हो तुम ? पूरा प्रसंग ही  गलत है –यहाँ उद्धव नहीं कृष्ण हैं, जो मैया व राधा से मिल कर लौट रहे हैं ”—–
शिखा ने भी सहज ही कह दिया –”नहीं मैडम -यहाँ पर उद्धव ही हैं -मैंने पिताजी से पहले ही पढ़ लिया था -”—उसके पिता भी हिदी के प्रोफ़ेसर थे, सुधा मैडम उसे डांटती हुई नाराज होकर बाहर चली गईं शिखा रुआंसी हो उठी थी, परन्तु उलझन में भी थी कि किसे सही माने ? पिताजी को या मैडम को ?—–अगले दिन कक्षा मेंवह सहमी सी बैठी थी –अचानक सुधा मैडम ने पुकारा –”शिखा ,!- -तुम सही थी, यहाँ कृष्ण नहीं उद्धव ही थे -मुझसे गलती हो गई, मैं पूरी कक्षा के सामने, तुमसे क्षमा मांगती हूँ ”
शिखा सन्न रह गई और दुखी भी, उसने हाथ जोड़ लिए ,–”यह है एक आदर्श शिक्षक का महान व्यक्तित्व जो अहंकार-द्वेष से परे, अपनी विनम्रता से, अपने से छोटों के प्रति भी विनत भाव रख कर दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है –आज सुधा मैडम भी उसकी प्रेरणा बन गई थीं…
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