अपने पति के स्थानांतरण के फलस्वरूप  वह पहली बार साथ आई थी।
स्टेशन के निकट ही हाउसिंग कॉलोनी में एक फ्लैट लिया था।
महानगर आकर बड़ा अच्छा लगा था प्रीतो को, वाह कितनी चमक-दमक और रौनक बसी है इस शहर में।
एक हमारा छोटा सा शहर, अस्त-व्यस्त जैसा। हमेशा कोई न कोई टोक ही देता है।
इस बार नवरात्र की पूजा यहीं कर रही थी। नया घर, नया माहौल, पूरे मन से पूजा कर रही थी।
नवमी की पूजा के लिए कन्याऐं चाहिए थीं, पर बड़ी मुश्किल हो रही थी। उसकी तो एक ही बेटी थी, और कन्याएं कहाँ से लाए.?
पास -पड़ोस में भी एक-दो बालिकाएं, वो भी कहीं गई हुई थीं।
प्रीतो आज बहुत दुखी हो अपने शहर को याद करती है, इतनी किल्लत बेटियों की…यहाँ, हमारे यहाँ भीड़ लग जाती थी।
प्रीतो को परेशान देखकर पति सोमेश ने एक निर्णय किया, पास के ही स्लम बस्तियों से कन्याओं को ले प्रीतो के सामने खड़ा था।
लो कर लो कन्या पूजन..अब खुश !
प्रीतो ने पूरे श्रद्धा से सभी कन्याओं का आदर सत्कार कर बिदाई दी।
प्रीतो माँ दुर्गा के सामने खड़ी मौन अधर से सवाल कर रही थी..?
आज अगर ये गरीब की बस्ती न होती तो  पूजा कैसे होती..?
बेटियों से गरीब क्यूँ नही डरते, ये डर और कमी सभ्य समाज में ही क्यूँ है?

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