कोलकाता 12 मार्च 2004 काशीपुर केंद्रीय विद्यालय कमरा नंबर 303
बाहरवीं बोर्ड की परीक्षा, वो निरीक्षक थी और उसके साथ गणित की एक अन्य अध्यापिका। परीक्षा आरंभ होने में पांच मिनट, कमरे में कुल 19 बच्चे| शांत कमरे में चार पंखों की घर्र-घर्र| पेपर बांटने के बाद बच्चों के रोल नंबर चेक करने के बाद गणित की अध्यापिका चली कर गई। और 19 बच्चों में वो अकेली! बच्चे अपने उज्ज्वल भविष्य के स्वप्न को उत्तर पुस्तिका पर उकेरने लगे।और वो…वो सोच रही थी मैं! मेरा भविष्य! क्या यही सोचा था मैंने? मैं यहां क्यों हूं?कैसे हूं?क्या यह कोई सपना है?क्या यही स्वपन देखा था मैंने! हाँ! टीचर तो मुझे बनना ही था लेकिन इस तरह इन परिस्थितियों में … नहीं सोचा था! सोचा हुआ पूरा होता कब है? लेकिन …लेकिन घर परिवार सब को छोड़कर वो अपने घर का नया सपना पूरा करने को “अपना‘ घर” उसके चेहरे पर हँसी की बारीक रेखा उभर आई,बचपन से सुनती आ रही थी मायका तो लड़कियों के लिए तो सदा पराया ही होता है और मायका माँ का भी कब अपना होता है? इसे भी तो खूब अनुभव किया… सब छोड़कर चली आई यहाँ कोलकाता में, ऐसे भी कोई लड़की विदा होती है क्या?
परीक्षा कक्ष में उसका विचलित मन अपने ही सवालों से जूझ रहा था ऐसा लगता ही नहीं, कि 6 महीने से कोलकाता में हूं और कभी-कभी लगता है जन्मों से यहां हूं। दिल्ली से कोई नाता नहीं उफ़!! इस कमरे में कितनी घुटन हो रही है! मन करता है, खिड़की से जो पेड़ दिख रहा है वहां बैठ जाऊं वहां जहां वो कौवा बैठा है और इन विद्यार्थियों को भी देखती रहूंगी । शून्य में ठहरी हुई उसकी आंखें…अचानक डाल पर बैठे एक अन्य कौवे पर जा पड़ी वह कौवा जो उसे अपना-सा क्यों लगा क्या इसके पास बतियाने आया है पर ये क्या? इसे जाने क्यों वो मारकर भगा रहा है,क्या रोटी के लिए झगड़ रहे हैं तभी तीसरा कौवा आया उसकी चोंच में लोहे का तार था दूसरा कौवा उड़ गया ओहह… तो यह किस्सा है| कुछ-कुछ उसकी समझ में आया ये कौवा दम्पति है,घोंसला बना रहे हैं मगर वह तीसराकौवा? क्या वह भी उसी डाल पर घोंसला बनाना चाहता है? शायद नहीं।दोनों कौवों में नर कौन है मादा कौन उसके लिए पहचानना मुश्किल था अभी कौवे सभ्य नहीं हुए ना! शायद इसलिए।
लगातार उनका निरीक्षण करते-करते उसने अंदाजा लगाया कि नर बार-बार जाता है चोंच में तार, तिनके आदि लाता है जिसे मादा डाल में अटकाने का प्रयास करती| नर का दूसरा महत्वपूर्ण काम था दुश्मन से परिवार को बचाना| तीसरा कौवा उनकी उस डाल पर कब्जा ना कर ले ,जैसे ही वह आता है अपने डैने फैला कर उस पर झपटता है। और कौवा भाग जाता| नर बाहरी ताकतों से संघर्ष कर रहा है मादा घोंसला बनाने में |ये उसकी कोरी कल्पना मात्र न थी बचपन से देखती आ रही थी कि घर और बाहर के मोर्चे बंटे हुए हैं| दूसरा कौवा अकेला था,घोंसला अकेले नहीं बनाया जा सकता, उसके साथ कोई मादा न थी इसलिए हार गया,वो दोबारा नहीं आया भी नहीं । और वो घर(?) बनाने की अपनी कल्पना पर क्षुब्ध-सी हो गई पापा दो साल से उसके नाम पर डीडीए का फार्म जो भरते जा रहे हैं इस दलील पर कि अपना घर होगा तो कम से कम अधिकार से रहेगी तो| फिर जाने क्यों उसके चेहरे पर बिना किसी आवाज़ के हँसी आ गई,हँसी बच्चों ने देखी, वे हैरान हुए, पर फिर अपने पर्चे लिखने लग गए, लेकिन अचानक कांव-कांव की तेज़ ध्वनि ने शायद उन्हें उत्तर दे दिया। हालांकि प्रश्नपत्र के उनके उत्तर शायद कठिन थे।
3 घंटे के पेपर में वो आधा घंटा संभवत: उससे भी कम समय कक्षा में थी और बाकी समय पेड़ पर दो ‘जन‘ को घोंसला बनाते हुए देख रही थीवैसे पिछले दस-बारह सालों से अपनी कज़नस को घर बसाते देख रही थी|अब तो शादी में जाने को मन भी न करता मगर..मगर इन्हें घोसला बनाते देख जाने क्यों भा रहा था | उन न दो घंटों में नर करीब 15-20 बार या संभवतः उससे भी ज्यादा बार नए ढंग के कभी गोल तार कभी लंबी टहनी कभी झाड़ी लाता मगर मादा उसे उस डाल पर टिकाने में असफल रही जैसे ही टहनी नीचे गिरती दोनों खुली चोंच से चमकीली आँखों से आश्चर्यचकित गर्दन को घुमा-घुमा कर देखते, उनकी निराशा से वो बैचैन हो उठती,पर कर क्या सकती थी? न उनके लिए, न अपने लिए, न ही बड़ी बहन के लिए, जिसके विवाह की तैयारी बी.ए. में दाखिले के साथ शुरू हो गई थी और एम.ए. के दाखिले के बाद लगने लगा था साड़ियों का डिजाइन पुराना पड़ रहा है| प्रिंसिपल मैम राउंड पर आई ,तो उसे कमरे में वापस लौटना पड़ा वे एक मिनट रही जब वो आई तो लगा जैसे उसकी कोई चोरी से पकड़ी गई,जबकि वो तो कोई इम्तहान भी नहीं दे रही थी पर क्या सचमुच? जिस परिवार में लडकियों को पढ़ाना उन्हें बिगाड़ने की तरह था आज वो यहाँ पढ़ाने के लिए आई हुई थी अकेली| और इस परीक्षा कक्ष में परीक्षा निरीक्षक नहीं घोसला निर्माण निरीक्षक बनी हुई थी,पक्षियों की गतिविधियों को नोट कर रही थी प्रिंसिपल के जाने के बाद उसने बस यूं ही बेचैनी से 4-5 चक्कर लगाए और सोचने लगी कि शायद मैं देख रही हूं इसलिए वे सफल नहीं हो रहे|मगर वो जानना भी चाहती थी कि वे पक्षी सफल हुए या नहीं कुछ मिनट बाद उसकी नजरें फिर पेड़ पर अटक गई मगर ये क्या? अभी भी एक तिनका न लगा पाए थे, सच! घोंसला बनाना क्या इतना कठिन काम है! एक-एक तिनका सलीके से जोड़ना पड़ता है, धैर्य,लगन, मेहनत… और फिर दूसरे कौवों पर भी नज़र रखना पड़ती है| घोंसला बने तो अंडे दिए जा सकेंगें,नन्हें बच्चों की सुरक्षा हो सके| घर बसाना आसान थोड़े ही है…मतलब घोंसला बनाना कितना कठिन है|
कौवा दंपति को देखते हुए आज जान पा रही थी,घोंसला बनाना कितना कठिन काम है!जो अकेले बन ही नहीं सकता शायद उसका औचित्य भी नहीं…! पहले जाने कितने अनुभव के बाद दोनों ने इस डाल को चुना होगा और अब उसमें तिनके से घोंसला बनाने का प्रयास कर रहे हैं जब-जब नर कोई तिनका,तार लाता तो मादा की सतर्क आंखें उसका निरीक्षण-सा करती फिर एक सिरा पंजे से पकड़ कर दूसरे सिरे को चोंच से पकड़ कर उसे डाल में फंसाने का प्रयास करती, मगर…मगर वह नीचे गिर जाती, दोनों कुछ पल एक दूसरे को निराशा के भाव से देखते मगर नर फिर नई आशा के साथ उड़ जाता और कभी 2 मिनट में कभी 3 मिनट में चोंच में एक नया तिनका या तार ले आता,मादा सतर्क उस डाल पर अपने अधिकार को बनाए रखती कि कहीं दुबारा दुश्मन आये तो मुकाबले के लिए तत्पर रहे |
पेपर खत्म होने में 10 मिनट बचे थे, मगर घोंसलें का एक तिनका भी न लग पाया। पर अब उसे ऊब हो रही थी मगर उन दोनों को मानो कोई जदबाजी न थी| आखिर ‘घर‘ का सवाल था। ज़रा-सी चूक और सब बिखर सकता था,खैर उनका घोसला बनाना निश्चित था,‘कोमल तिनकों से मजबूत घोंसला‘| खैर! उसे याद आया दिल्ली वाले घर में मनी प्लांट के दो पत्तियों को जोड़कर टेलर बर्ड ने घोंसला बनाया था और उसमें रुई आदि फंसा रखे थे और जब तक अंडों से बच्चे निकल कर उड़ नहीं गए, पत्ते हरे थे उनके जाने के बाद पत्ते पीले पड़ गए। घर से प्राणी चले जाएं तो खंडहर बनते देर नहीं लगती| मकान को घर बनाने के लिए, उसकी देखभाल करने के लिए सभी का साझा सहयोग…उसे याद आया की घर में एक पेंटिग थी जिस पर लिखा था ‘A house is built by hands, but a home is built by heart’ घंटी बज गई। पेपर खत्म। मगर घोंसला? घोंसला ,वो तो अभी भी बनने की प्रक्रिया में ही है कुछ उदास उसने मन ही मन दोहराया …आरंभ भी नहीं कर पाए… उसका मन हुआ कि रुक जाएँ शायद कुछ प्रगति हो जाए, मगर संभव ही नहीं था| हमारे हाथ में कुछ नहीं होता| बस में भी वह उनके बारे में सोच रही थी पूरा दिन वो कौवे इसी काम में लगे रहेंगे कल फिर से नई शुरुआत करेंगे क्योंकि अब तो सांझ हो रही है वे ऐसे ही डाल पर सो जायेंगे, और एक नई आशा, प्रेम, स्नेह , धैर्य और मेहनत और सबसे बढ़कर घर बनाने के प्रति लगाव के कारण| सदियों से जो घोंसला बनाने की परंपरा चली आ रही है, आती रहेगी प्रकृति का यही नियम है| घर का होना जीवन का सबसे सुखद पहलू है जहां घर की अवधारणा टूटी कुछ ना बच सकेगा|उसके चेहरे पर जाने कैसा संकल्प का सा भाव आया मनो वो सब जानती है कि ये कल फिर शुरुआत करेंगे सिर्फ तिनके भर जोड़कर घोंसला बनाने पर इनका काम पूरा नहीं होगा बाद में ये अंडे भी देंगे मादा उनकी देखभाल करेगी नर दाने लाएगा बच्चों को उड़ाना सिखाएगा फिर बच्चे बड़े होकर अपना नया घोंसला बनाएंगे।