होम ग़ज़ल एवं गीत आफ़ताब ‘आस’ की पांच ग़ज़लें ग़ज़ल एवं गीत आफ़ताब ‘आस’ की पांच ग़ज़लें द्वारा आफ़ताब आस - May 16, 2021 56 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet ग़ज़ल – 1 हमारी बात ये समझो है बेहतरी के लिए कोई किसी के लिए है, कोई किसी के लिए ज़रा सा ख़म करो ख़ुद को तमाशा फिर देखो ज़माना पंजों पर आयेगा सरवरी के लिए मैं अपनी हस्ब ए ज़रूरत ही खुल के हँसता हूँ कभी-कभी के लिए, बस किसी-किसी के लिए मैं सारा प्यार शुरू में नहीं लुटाऊँगा बचा के रक्खूँगा कुछ वक़्त ए आख़िरी के लिए तमाम “फ़ीगर ऑफ़ स्पीच” का हो इक्स्ट्रैक्शन इक ऐसा शे’र लिखूँगा मैं उस परी के लिए पहुँच के भी मैं वहाँ पर पहुँच नहीं पाया ज़रा सी देर से पहुँचा जो हाज़िरी के लिए इसी गुमान ने मुझको बिगाड़ रक्खा था वो मेरे साथ हमेशा है पैरवी के लिए वहाँ किसी को भी इंसाफ़ मिल नहीं सकता जहाँ अदालतें होती हों मुल्तवी के लिए! तुम्हारी जीत का हल्ला महज़ दग़ा से “आस” हमारी हार के चर्चे, बहादुरी के लिए ग़ज़ल – 2 अफ़सोस! लड़ते रहते हैं हम बात-बात पर कैसे चलेंगे?सोचो ज़रा,पुल सिरात पर!! उसने कहा कि हाथ तुम्हारा न छोड़ूंगी मैंने कहा कि खाओ क़सम मेरे हाथ पर सब तोहमतों को रोक कर के एक हाथ से फेंकूँगा दूजे हाथ से फिर क़ायनात पर मेरी बसी है जान किसी और शख़्स में मुझको उसी से ख़तरा है अपनी हयात पर उसने गले के ज़ख़्म को ढाँपा था हार से इज़्ज़त टिकी थी उसकी महज़ ज़ेवरात पर झगड़े का हल “तलाक़” की अर्ज़ी जमा हुई दोनों लड़ेंगे अब भी मगर काग़ज़ात पर मेरी तमाम मुश्किलें आसान हो गयीं जबसे मैं काम करने लगा मुश्किलात पर जिनके हँसी- मज़ाक का ज़रिया रहा हूँ मैं वे लोग खूब रोयेंगे मेरी वफ़ात पर ख़ुशियों को अपनी दिन के हवाले किया है “आस” ग़म को उठा के डाल दिया स्याह रात पर ग़ज़ल – 3 झूठ को झूठ कह रहा हूँ मैं कह भी सकता हूँ,बेहया हूँ मैं आप मजबूर हो कर आये यहाँ आख़िरी एक रास्ता हूँ मैं एक अच्छाई मेरी ये भी है मैं बुरा हूँ, बहुत बुरा हूँ मैं अब तो वो भी बदल गया होगा! पिछले ही साल का मिला हूँ मैं इसलिए सख़्त जाँ हूँ बाहर से क्योंकि अंदर से खोखला हूँ मैं गर मैं चाहूँ तो खोल कर रख दूँ तुम हो खिड़की और इक हवा हूँ मैं अपने माँ-बाप की मैं दुनिया हूँ आप जो पूछते हैं क्या हूँ मैं! ग़ज़ल – 4 वो अ़दू की ही ज़ात होते हैं जो महज़ नाम साथ होते हैं पहले से उनका वाक़िया तयशुद जितने भी वाक़ियात होते हैं बुग्ज़,कीना,कपट,हसद मत पाल ये सभी वाहियात होते हैं कोई अच्छा-बुरा नहीं होता ये तो बस वसवसात होते हैं इश्क़ भी एक हादसा है और यक- ब- यक हादसात होते हैं ये सुखनवर मरा नहीं करते शे’र सब ता हयात होते हैं ग़ज़ल – 5 सच को दबा के,झूठ को ऊपर रखा गया और एक बार ही नहीं अक्सर रखा गया ऐबों को अपने ऐसे छिपा कर रखा गया हीरे की शक़्ल में कोई पत्थर रखा गया सबको हुदूद उनके बताये गए मगर मुझको तो मेरी हद से भी अंदर रखा गया दर्जे मेरे बुलंद हुए मुझको जैसे ही मीज़ाँ में उनके साथ बराबर रखा गया मतलब जो ख़त्म हो गया पगड़ी उछाल दी मतलब था जब तलक उसे सिर पर रखा गया सरकार की ग़ुलामी को रक्खा गया हमें हमको गुमान ये हमें अफ़सर रखा गया हमको हमारे काम की तारीफ़ मिल गयी बाद उसके काम पर कोई बेहतर रखा गया संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ. दिलावर हुसैन टोंकवाला की ग़ज़लें अनिला सिंह चरक की ग़ज़लें विज्ञान व्रत की पाँच ग़ज़लें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.