काली घटायें  घिर आयीं थीं, दस वर्षीय नन्ही अपनी माँ की उंगली थामे अपने घर के बागीचे में ठंडी फुहारों का आनंद लेती हुई रंग-बिरंगी तितलियों को पकड़ने की कोशिश में दौड़-भाग करने लगी थी |
“माँ देखो न ये तितलियाँ कैसे झप्प से अपने रंगीन परों को खोलती-बंद करती हैं, कितने आकर्षक हैं इनके रंग, काश मैं तितली होती माँ, इस फूल से उस फूल मंडराती, उनका रस ले कर दूर गगन में उड़ जाती और इन सलेटी बदलियों को पार कर इन्द्रधनुष पर जा कर बैठ जाती, इन्द्रधनुष के रंग चुरा कर अपने परों में भर लेती”
कितना सुन्दर लगता है न जब बारिश के मौसम में चटख धूप में अचानक से आसमान में न जाने कहाँ से इन्द्रधनुष निकल आता है |  
नन्ही की माँ अपनी लाडली की अठखेलियाँ देख फूली न समाती | 
युवा होती नन्ही को नियोन रंग के कपड़े एवं जूलरी  बहुत भाते, उसकी चाल-ढाल में नृत्य एवं संगीत बसा था, खिलखिला कर जब हँसती तो ऐसा लगता जैसे न जाने कितने सितार एक साथ सुर में सुर मिला कर बज उठे | अब उसे निहारिका नाम से पुकारा जाने लगा था |  
एक दिन रिश्ते की एक चाची के घर गयी तो उसका फ़ौजी भाई उसे देखते ही उस पर रीझ गया | चंद दिनों में उसने अपना हाल-ऐ-दिल निहारिका व अपनी बहिन को सुना दिया | 
फिर क्या चट-मंगनी और पट ब्याह | कुछ महीने बीते अविनाश की पोस्टिंग कश्मीर हो गयी | 
जल बिन मीन सी हालत थी मायके में भी निहारिका की, वह अविनाश के मैसेज व फोन की राह देखती रहती | कभी जब फोन पर अविनाश  से बात होती तो तितली के परों की तरह झप्प से पलकों को झपका अपनी रुलाई को रोक लेती |  
आज वह अनायास ही चहक कर अपनी माँ के गले लग गयी |
क्यों इतनी प्रसन्न नज़र आ रही हो नन्ही क्या अविनाश आ रहा है ? माँ ने उसके थिरकते कदमों को देख कर पूछा | 
नहीं माँ मैं अपने परों को उड़ान दे अपने इन्द्रधनुष के पास जा रही हूँ, मैं कश्मीर जा रही हूँ माँ, अविनाश ने वहाँ मेरे रहने की अनुमति लेकर व्यवस्था भी कर ली है | उस ने अपना सूटकेस तैयार किया और कुछ ही दिनों में विमान पर सवार हो बदलियों संग उड़ान भरने लगी  | विमान में बैठी हुई भी वह सोच रही थी कि चटख धूप आये  और  इन्द्रधनुष के दर्शन हो सकें और वह उसे जा कर छू ले |  
कश्मीर पहुँच अपने अविनाश का सानिध्य पा कर वह किसी चंचल हिरणी सी कुलाचें भरने लगी थी | हरी-भरी वादियों में लदे फूलों की रंगत उसके कोमल गालों पर उभर आयी थी | सर्दी में बर्फ देख वह फिर से नन्ही बन जाती, रुई के सफ़ेद फाहों सी बर्फ को आसमान से गिरते देखती तो हथेलियों में भर लेने की चाह में खुले आसमाँ तले वह गिलहरी सी फुदक-फुदक कर यहाँ से वहाँ लुकती-छुपती रहती | 
ठण्ड लग जायेगी तुम्हें, ज्यादा देर खुले में न रहो, अविनाश ने खिड़की खोल कर बाहर झाँकते हुए उसे पुकारा | 
“फ़ौजी की पत्नी हूँ किसी से नहीं डरती, ठण्ड मुझे क्या लगेगी, मैं ठण्ड को लग जाऊँगी, मुझे यह स्नो फॉल बहुत पसंद है, जी चाहता है सदा के लिए यहीं रह जाऊँ” निहारिका खिलखिला पड़ी | 
एक वर्ष कब बीत गया कुछ मालूम ही न हुआ और निहारिका ने एक बेटे को जन्म दिया |
अविनाश ने उसे गोद में लिया और बोला “फ़ौजी नंबर वन बनेगा ये” |
“सुनो निहारिका कल को मैं रहूँ न रहूँ इसे तुम देश सेवा के लिए फ़ौजी ही बनाओगी वादा करो” अविनाश ने निहारिका की आँखों में झाकते हुए वादा लिया |   
कितना समय हुआ मायके नहीं गयी, वहाँ सभी हमारे छोटे  फ़ौजी को देखने को लालायित हैं |  फोन पर माँ-पापा पूछते ही रहते हैं कब झलक दिखायेगी हमें नाती की  ?
पूरे एक वर्ष का होने को आया अब हमारा बेटा अविनाश | 
“मैं एक महीने के लिए मायके हो आती हूँ”  एक दिन निहारिका ने अविनाश से मनुहार करते हुए कहा |
हाँ -हाँ क्यूँ नहीं ? 
एक महीने बाद यहाँ लौट कर आऊँगी और हम इसके जन्मदिवस पर पार्टी देंगे |
यहाँ क्यूँ ?
मैं भी थोड़े दिनों बाद छुट्टी ले कर आ जाऊँगा, वहीं पूरे परिवार के साथ हम इसका जन्मदिन मनाएंगे | मेरे माता-पिता से भी मिल लूँगा | अब उनकी भी तो उम्र हो चली है | 
“जैसा तुम उचित समझो अविनाश”  निहारिका ने उसके काँधे पर अपना सर टिका दिया था | 
मायके में एक महीना कैसे बीता पता ही नहीं चला |  अविनाश फ्लाईट से अपने घर जयपुर पहुँचने वाला था |
घर में सब उलटी गिनती गिन रहे थे कि खबर आयी “कश्मीर में लैंड माइंस से ब्लास्ट हुआ और उसके बाद आतंकियों एवं सेना के अफसरों में मुठभेड़ हुई” | अपनी आदतानुसार  निहारिका के पिताजी खबरों को चैनल बदल-बदल कर देख रहे थे | जब कभी ऐसी खबरें आतीं उनका दिल दहल जाता | आखिर उनके दामाद को भी तो जान का खतरा हो सकता है | 
“क्यों फ़िक्र करते हो निहारिका के पापा सब ठीक होगा, ईश्वर का भरोसा रखो”  निहारिका की माँ ने आज फिर उन्हें हिम्मत बँधायी थी | 
वे रात भर करवटें बदलते रहे और सुबह जब  चाय पीते वक़्त टी.वी. चालू  किया उनके हाथ थरथराने लगे  और कप हाथ से छूट गया |
कप के टूटने की आवाज़ सुन कर निहारिका की माँ रसोई से दौड़ी हुई आई, देखा निहारिका के पिताजी कुर्सी पर एक तरफ लटके पड़े थे, पूरा बदन पसीने-पसीने हुआ था | 
“निहारिका बेटी डॉक्टर को फोन तो कर शायद तेरे पिताजी को कुछ होश नहीं, कुर्सी पर लटके से पड़े हैं”  अपने पति की ऐसी हालत देख निहारिका की माँ को स्वयं बेहोशी सी आने लगी थी |
निहारिका ने माँ को पानी पिलाया और कहा “माँ आप अपने आप को तो संभालो”
थोड़ी ही देर में माँ-बेटी  पिताजी के पास अस्पताल में बैठी थीं |
तभी निहारिका के मोबाईल पर फोन आया और मालूम हुआ अविनाश आतंकवादियों से हुई एक मुठभेड़ में शहीद हो गया | उसकी नज़र अस्पताल के कमरे में लगे टी. वी पर पड़ी | उसके पति के शहीद होने की खबर टी. वी. पर ब्रेकिंग न्यूज़ में थी |
उफ्फ्फ ! सुबह से यह खबर दिखाई जा रही है, शायद पापा इसीलिए …..ओह ये क्या किया तूने ईश्वर, वह फफक कर रो पड़ी |
पापा को भी डॉक्टर बचा न सके | 
निहारिका कौन से दुःख में रोये और किस के साथ रोये अब तो कोई सहारा ही नहीं रह गया था ज़िंदगी में | 
दो बुरी खबरें देख-सुन कर माँ तो स्वयं ही निढाल सी हो गयी थी |
पिता के  अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी कि अविनाश की तिरंगे में लिपटी पार्थिव देह भी उनके घर पूरे सैनिक सम्मान के साथ पहुँच गयी | 
कैसे सहन करे, क्या करे ? माँ को संभाले या स्वयं को ? 
पर संभालना तो होगा, पहले स्वयं को फिर माँ को भी | आखिर इकलौती बेटी है परिवार की | निहारिका ने अपने ह्रदय को कड़ा कर स्वयं को चट्टान सा मजबूत कर  लिया था | 
   इस से दुखद और हिम्मत वाला कार्य  और क्या होगा कि उसने अपने एक वर्षीय पुत्र को गोदी में लेकर दो अर्थियों को कंधा दिया था | अपने पति को पूरे फ़ौजी सम्मान के साथ विदा कर वह स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रही थी | वहीं  पिता को अंतिम विदा कर बेटे का फर्ज अदा कर रही थी |
सास-ससुर से इज़ाज़त माँगी “क्या मैं कुछ दिन अपनी माँ के संग रह लूँ? उस बेचारी का मेरे सिवा दुनिया में कोई नहीं”
वे भी क्या कहते उन पर क्या कम दुःख का पहाड़ टूटा था ? फिर भी निहारिका की माँ की स्थिति से भी वाकिफ थे |
जैसा तुम उचित समझो बेटी, अब अविनाश तो रहा नहीं | फिर भी हम दोनों पति-पत्नी तो एक दूसरे को संभाल लेंगे तुम्हारी माँ को शायद तुम्हारी ज्यादा ज़रुरत है |  
रोज रात को तकिये का गिलाफ नम हो जाता पर निहारिका माँ को भनक भी न होने देती और अगली सुबह नहा-धो कर पूरा शृंगारकरती |  माँ के हाथ में चाय का प्याला थमा कर स्वयं भी वहीं बैठ अपने बेटे के साथ खेलती, हँसती, खिलखिलाती, मुस्कुराती |
लेकिन उसकी ये खिलखिलाहट उसका शृंगार आस-पास के लोगों के मन में खटकने लगा था | उसकी माँ उसे समझाती “नहीं बेटी दुनिया को यह सब अच्छा नहीं लगता कि पति के न रहने पर तुम ये शृंगारकरो, उसका शोक व्यक्त करने की बजाय पहले की तरह ज़िंदगी जिओ | 
बेटी थोड़ा संयत व्यवहार करो, दुनिया के सामने दिखावा भी जरूरी है | समाज नहीं स्वीकारता कि एक विधवा शृंगार करे, हँसे, खिलखिलाए | अभी तो दो माह ही हुए हैं हमारे पतियों को गए |
माँ मैं तो स्वयं ही तुम्हें कहने वाली थी कि पिताजी के जाते ही तुमने चूड़ियाँ क्यों उतार दीं ? पिताजी को तो तुम्हारी चूड़ियों से भरी  गोल-गोल कलाइयाँ खूब सुन्दर लगती थीं | 
बेटी हम जहाँ रहते हैं वहाँ के रीति-रिवाज़ और रस्में भी निभाने पड़ते हैं हमें |
पर क्यों माँ ? हमारे जीवन पर हक़ तो हमारा है न |
नहीं बेटी ऐसा नहीं होता, कल ही मोहल्ले की औरतों को कहते सुना कि निहारिका में पति के जाने के बाद कोई बदलाव नहीं आया | कल को यह बात तुम्हारे ससुराल तक पहुँची तो अनर्थ हो जाएगा | 
मुझे किसी की फ़िक्र नहीं माँ, मैं एक फ़ौजी की पत्नी हूँ, हर डर, हर खौफ का सामना करना जानती हूँ | यदि मेरे ससुराल वालों ने कुछ कहा तो मैं उनसे भी बात करूँगी | 
अभी कुछ दिन बीते थे कि सास ने अपने पोते से मिलने आने की मंशा जता दी |  आखिर अविनाश के बाद वही तो उसकी आख़िरी निशानी है | उसमें अपने बेटे की छवि देख -देख कर जीवन काट लेना चाहते है वे भी | 
पूरे मान-सम्मान संग निहारिका एयर-पोर्ट से सास-ससुर को घर लाई | 
बेटी निहारिका अविनाश को पदक से सम्मानित किया जाएगा | वैसे तो हम तुम्हें नहीं टोकते, तुम हमारी बेटी जैसी ही हो किन्तु लोक-लाज तो हमें भी निभानी ही पड़ती है |
बहिन जी आप समझाइये न निहारिका को निहारिका की सास ने उसकी माँ की तरफ आस भरी नज़रों से देखा |
मैं आप दोनों  माँ से कह देती हूँ मैं अपने सुहाग चिन्ह नहीं उतारूँगी | मेरा पति  आतंकियों से मुठभेड़ में मारा गया है | वह डर कर वहाँ से भागा नहीं, उसने आतंकियों के सामने समर्पण भी नहीं किया बल्कि चार को मार कर शहीद हुआ है | 
मैं अपने बेटे से उसके पिता के शहीद होने का गर्व और गुमान नहीं छीन सकती | मैं एक वीरांगना हूँ और  अविनाश अमर है |
उसकी माँ व सास दोनों ने जैसे मौन धारण कर लिया था क्या करतीं दोनों माएँ | एक अपने बेटे को जीवित रखना चाहती थी तो दूसरी अपने दामाद को |  पर दुनिया कहाँ समझती है किसी के मन के भाव और परिस्थिति ? उसे तो अपने नियम-कायदों पर चलने वाले ही पसंद आते हैं | 
आखिरकार वह दिन आ ही गया |  आज अविनाश को पदक मिलने वाला है, निहारिका सुबह मुँह-अँधेरे ही जाग गयी, शृंगार किया, माथे पर लाल टीका, हाथों में लाख की चूड़ियाँ पहन स्टेज पर पहुँच गयी |  
कार्यक्रम स्थल पर जिस किसी की भी नज़र उस पर पड़ती, उनकी निगाहों में आश्चर्य उतर आता | 
कुछ लोग निहारिका को घूर-घूर कर देखते हुए कुछ  खुसर-फुसर भी कर रहे थे, माँ की नज़रें उन लोगों पर टिकी थीं, मन में भय था कि सोच रहे होंगे क्या आज पति के मरने का जश्न है जो इतनी सज-धज कर आयी है | घबराहट में उसने बोतल से पानी पीया और कुछ ठन्डे छींटे अपने मुँह पर मारे |
तभी अविनाश का नाम पदक के लिए पुकारा गया | निहारिका स्टेज पर गयी उसके नाम का पदक लेकर उसे चूमते हुए  बोली यह चमचमाता हुआ  पदक मेरे माथे का टीका है, यह जिस लाल रिबन में बँधा है वह मेरा मंगलसूत्र है | ये हर समय मुझे याद दिलाते रहेंगे कि मेरा अविनाश अमर है और जैसा कि वे स्वयं चाहते थे जो कार्य वे अधूरा छोड़ गए उनका इकलौता पुत्र उसे पूरा करेगा | मुझे एक फ़ौजी की वीरंगना होने पर गर्व है | 
उसकी माँ जमीन में गड़े जा रही थी, क्या ऊल-जलूल  बोल रही है लड़की, कम से कम आज तो दिखावा कर लेती कि तू अपने पति की याद में तड़पती-कलपती है |
किन्तु निहारिका के ससुर का सीना गर्व से फूल गया था | 
बोले “अविनाश की माँ अविनाश ने अपने ही जैसी निर्भीक और निडर लडकी पसंद की, ब्याह होते ही उसी के साथ कश्मीर चली गयी थी ये | मुझे तो अपनी बहु का स्वाभाव आज  ही समझ आया, इसकी चूड़ियों के रंगों में इन्द्रधनुष के सातों रंग खिल उठेंगे, इसके माथे के टीके में सितारे टिमटिमायेंगे |  जिसमें हम अपने अविनाश को मुस्कुराते हुए देखेंगे और फिर अपने देश के लिए मर-मिटने वाला एक नया फ़ौजी तैयार करेंगे”  
कविताएँ, आलेख, कहानी, दोहे, बाल कविताएँ एवं कहानियाँ देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित | 'जो रंग दे वो रंगरेज' कहानी-संग्रह प्रकाशित | चार साझा कहानी-संग्रहों में भी कहानियाँ शामिल | गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा एवं विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान, दिल्ली द्वारा “काका कालेलकर सम्मान वर्ष २०१६ सहित अनेक सम्मान प्राप्त । सम्प्रति - डाइरेक्टर सुपर गॅन ट्रेडर अकॅडमी प्राइवेट लिमिटेड | संपर्क - sgtarochika@gmail.com

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