विशेष रिपोर्ट – पुरवाई टीम द्वारा
स्वास्थ्य संसद – 2024 : रामनगरी में ऐतिहासिक आयोजन
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स्वस्थ भारत (पंजी. न्यास) ने मनाया अपना नवां स्थापना दिवस
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देश भर से जुटे स्वास्थ्य कार्यकर्ता, चिकित्सक एवं पत्रकार
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तीन दिनों तक स्वास्थ्य संसद में होती रही जन स्वास्थ्य की चर्चा
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मिलेट्स (मोटे अनाज) अपनाने पर दिया गया जोर
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मिट्टी के स्वास्थ्य को ठीक करने की है जरूरत
पूरी रिपोर्ट तो नहीं पढ़ी। इतना बारीक पढ़ना मुश्किल होता है। थोड़ी-थोड़ी ही नजर मारी।कवि सम्मेलन वाला अंश जरूर पढ़ा। उस कविता को पढ़ने की इच्छा है जिसको सुनकर पिन ड्रॉप साइलेंट छा गया था और मंच संचालक आलोक जी रो पड़े थे। भविष्य में इसका क्या लाभ होने वाला है यह तो ईश्वर ही जाने लेकिन फिलहाल तो डॉक्टर और दवाइयों की कंपनियाँ ही कमा रही हैं। इंसान चाहे जिये या मरे इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। इलाज करने के लिए आयुष्मान योजनाएं हैं पर फिर भी डॉक्टरों ने कमाने का अपना तरीका निकाल लिया है।
सारी योजनाएं सिर्फ नाम की रहती हैं ।कागज पर उतर जाती हैं। और उनपे काफी पैसा खर्च होता है लेकिन रिजल्ट कुछ नहीं रहता।
हमारी बुआ जी डॉक्टर थीं। वो भी शर्मा ही थीं। उनके पिताजी और हमारे पिताजी फ्रीडम फाइटर रहे। यही रिश्ता बहुत सगा था। पिताजी भाई थे। वह गांव था ,लेकिन जो गरीब लोग रहते थे उनसे वह पैसे न लेतीं। बल्कि दवा भी अपनी तरफ से देती थीं और वहाँ के जितने भी बड़े-बड़े रईस लोग थे उन सब से उनकी भरपाई कर लेतीं।
बल्कि गरीबों के ठहरने के लिए और उनके खाने-पीने के लिए भी उन्होंने व्यवस्था करके रखी थी।गांव में वह अकेली एक लेडी डॉक्टर थीं और फूफा जी सरकारी अस्पताल में थे। बेबी इतना ही दयालु थे दर से आने वाले रोगियों को अपने घर में ही रख लेते थे। आज दिया लेकर ढूँढने से भी कोई एकाध डॉक्टर ऐसा मिले।
जितना पढ़ा उतने से इतना ही समझ में आया।