• बालसंत शिवानंद तिवारी
मैं कल यहाँ Birmingham/UK के एक थिएटर में सत्य आधारित चलचित्र The Kashmir Files देखने गया था। पूरे चलचित्र के दौरान दर्शकों के मध्य एक सन्नाटा सा छाया रहा। बीच में एक नौजवान थोड़ा भावुक हो चीखा जरूर था, पर सब को सन्न देख वह भी फिर चुप ही रहा।
मेरे मन में भावनाओं का उथल-पुथल सा चल रहा था, पर मुख्यतः मन दो बातों पर केंद्रित हो रहा था:
  1. ये जानकर आत्यंतिक कष्ट का अनुभव हो रहा था कि स्वतंत्र भारत में स्वतंत्रता के दशकों बाद इतना भीषण नरसंहार चल रहा था और अपना काश्मीर ऐसे धू-धू कर जल रहा था…। क्या हम घोर कायरता, तुच्छ व्यक्तिगत स्वार्थ और तमस में इतने रोगग्रस्त हो गये थे? जैसे मानो हम एकसाथ गूँगे-अंधे-बहरे से हो गये थे! कटु सत्य है पर सत्य है! और सच्चे हृदय से देखो तो हमारी अभी की वर्तमान स्थिति भी एक संतोषजनक न्यूनतम से बहुत बहुत दूर है।
  2. निश्चित रूप से अपने स्वजनों के उस भीषण संहार की उपेक्षा कर व बाद में भी उनके लिये यथेष्ट न करके जो हमने भयंकर पाप किये हैं, उसका प्रायश्चित तो हमें करना ही होगा! ऐसे पापों की उपेक्षा करना पूरे भारतीय जनमानस के लिये घातक तो है ही, साथ ही एक असह्य कलंक भी!
इसी तरह के विचारों में डूबता उतरता मैं उस सूत्र को जिसको हमारे महापुरुषों ने बार-बार कह कर और करके दिखलाया है, मैंने अपने अंतस में उच्चरित किया:
हमें अपने को व्यक्तिगत तल पर, सामाजिक तल पर… प्रत्येक धरातल पर शक्तिशाली सिद्ध होना होगा… संगठित होना होगा… होना ही होगा… अन्यथा कोई विकल्प नहीं!
इसी बीच चलचित्र समाप्त हुआ, एक-एक कर सब लोग उठकर चले गये, परंतु…दो वयोवृद्ध दंपति थियेटर की सबसे पिछली सीट पर स्तब्ध बैठे दारुण शोक वश धीमी आँसू बहा रहे थे… जिसे बाहर की आँख और कान की बजाय अंदर से अधिक देखा व सुना जा सकता था…वे काश्मीरी पंडित थे!
हम हिम्मत कर उनके पास गये, परिचय कर उनसे Very Sorry कहा… उन्होंने बहुत ही निर्दोषता पूर्वक यह पूछा:
“Did you know before watching this movie”?
मानो उनका मन आज 32 साल बाद भी यह मानने को तैयार नहीं था की उनके साथ हुई ये अमानवीय घटनाएँ, उनके बंधु जनों के पास अब भी ठीक से पहुँची है! जो कि सत्य भी है!
इसलिए आप से करबद्ध निवेदन है कि जो अभी तक नहीं देखे हैं वो Kashmir Files को कृपया थियेटर में जाकर अवश्य देखें… व इसे अपना सहयोग दें… संभवतः ये हमारी ओर से उस भयंकर पाप के कुछ एक अंश का प्रायश्चित भी होगा…।
  • बालसंत शिवानंद तिवारी

1 टिप्पणी

  1. काश्मीर में हिंदुओं के नाम पर ब्रम्हाण मात्र ही क्यों थे? बाकी वर्ण क्षत्रिय, वैश्य आदि क्यों नहीं थे?

    कारण था काश्मीर में ब्राम्हणों द्वारा फैलाया गया भयंकर जातिवाद। उस ब्राम्हणवाद के चलते किसी अन्य जाति का हिन्दू काश्मीर में ब्यापार नहीं कर सकता था। चाहे सेब के बागान हों या केसर के खेत, ट्रॉसपोर्ट हो या फोटोग्राफी हर व्यापार पर उनका ही कब्जा था, अन्य हिन्दुओं को तो वह जूते की नोक पर नौकरी देकर रखा करते थे।

    धीरे धीरे अन्य सभी हिन्दू जातियां इनकी प्रताड़ना के चलते इस्लाम में कनवर्ट हो गईं और उन्हीं नये नये मुल्लों ने इनका यह हाल किया है।

    1990 से पूर्व काश्मीरी पंडित धारा 370 के मुसलमानों से भी ज्यादा हिमायती थे। हमलोगों को यह लोग इंडियन व खुद को कश्मीरी कहते थे।

    सर, जिस धारा 370 को हटाने की खिलाफत ये लोग पुरजोर ढंग से करते थे। उसी धारा 370 के बल पर मुसलमानों ने उन्हें खदेड़ा और भारत सरकार धारा 370 से बंधी होने के कारण कुछ कर न सकी।

    एक और बात

    कारगिल युद्ध 1999 में काश्मीर में ही हुआ था, जिसमें 527 सैनिक व अधिकारी शहीद हुए थे, उस युद्ध में क्या कोई एक काश्मीरी पंडित भी शहीद हुआ था?

    उत्तर है : नहीं, एक भी नहीं!

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