1- भीड़ से खारिज आदमी
भीड़ से खारिज आदमी भले ही हारा हुआ लगता है
कभी हारा हुआ नहीं होता
वह अकेला या बेसहारा हुआ लगता है
पर कभी अकेला या बेसहारा नहीं होता
भीड़ से खारिज आदमी का
सिर्फ और सिर्फ भूगोल ही होता है
कोई इतिहास नहीं होता
उसके पास नहीं होती कोई दूसरी संज्ञा
या एक भी विशेषण
अपने नाम के शुरु – आखिर में लगाने के लिए
कोई शीर्ष- पूंछ नहीं होते
क्योंकि शीर्ष – पूंछ मिलते हैं
सिर्फ इतिहास के संरक्षित अभयारण्य में
और वहाँ नाबाद हिलते हैं
किसी विजेता के फरमानी इशारों पर
भीड़ से खारिज आदमी पहले ही
खारिज कर चुका होता है ऐसे इशारों को
समय रहते इन्कार कर चुका होता है
शीर्ष और पूंछ के बीच हकलाती जिंदगी को
भीड़ से ख़ारिज आदमी
स्वीकार कर चुका होता है
शीर्ष- पूंछ विहीन अस्तित्व के अपने भूगोल को
वह पहचान चुका होता है
भीड़ में खड़े व्यवस्था के मदारी को
जान चुका होता है कि आज के दौर में
मदारी दरअसल एक संपेरा है
बजाता है नित नये सुरों में बीन दिन भर
बीन सांप के लिए है या भीड़ के लिए
यह एक बड़ा रहस्य है
और इस रहस्य को जिज्ञासा की खुजलाती धूप से बचाने के लिए
बीच बीच में वह नए-नए अंदाज़ में दिखाता है
सांपों का खतरनाक खेल
पैदा करता है डर का ऐसा मायावी बाजार
जहाँ सांप आभासी रूप में और बड़े दिखते हैं
और डर वास्तविक रूप में उनसे भी इतना बड़ा कि
शाम तक जिज्ञासा से ज्यादा जरूरी हो जाते हैं वे जंतर
जिन्हें बेचना हो जाता है तब बहुत आसान
और खरीदना भी बहुत ज़रूरी
भीड़ से खारिज आदमी जानता है
जंतर की असलियत
यह भी कि सांप दंतहीन है दरअसल
और डर एक झूठ है
सच यही है कि
भीड़ से जो बिल्कुल खारिज या अपदस्थ है
अपनी सोच में वही साफ है, वही स्वस्थ है
2- बारिश के दिनों में
बारिश के दिनों में
बारिश के दिन याद नहीं करता
बारिश की रातें याद करता हूँ मैं
उन्हीं रातों के भींगते अंधेरे में उगतीं थीं
मां की आंखें
अंधेरा चीरने की कोशिश में
कभी गुम हो जाती थीं
घर के अंदर उसी अंधेरे में
कभी बरसती नहीं थीं,
बस पसीजती थीं कभी-कभी
घर की कच्ची दीवार की तरह
घर दुबका रहता था
अंधेरे की भींगी -भारी चादर में
हम भाई – बहनें दुबके रहते थे
एक रस्सी खाट पर मां की सूती साड़ी में
और पिता उसपर डाल देते थे
अपनी एक पुरानी खद्दर धोती
कि हम बच्चों की देह में बची – बनी रहे गरमी
लेकिन हम बच्चे तब यह कहाँ समझते थे
कि धोती – साड़ी का सम्मिलित संघर्ष जरूरी है
दुनिया में गरमी बचाने के लिए
भींगते अंधेरे में
माँ जब बुझी हुई ढिबरी दुबारा बालती थी
हम बच्चे नहीं जानते थे कि
यह ढिबरी दरअसल वह
अपनी ही आंखों से निकालती थी
और पिता उसकी थरथराती रोशनी में
शिनाख्त करते थे – छप्पर कहाँ – कहाँ चूता था
और माँ को बताते थे कि
चूते हुए छप्पर के नीचे घर में
कौन-सा कोना सुरक्षित है ढिबरी के लिए
ताकि रोशनी में कम होती रहे रात की लंबाई
पिता ही बताते थे माँ को
कि कहाँ -कहाँ करने थे तैनात
घर के सारे खाली बरतन
घर की जमीन गीली होने से बचाने के लिए
घर के ठीक बीचोंबीच खड़ा
वह बूढ़ा खंभा क्यों चिढ़ता था
बरतन – बूँद की टन् – टन् जुगलबंदी पर
और वह क्यों सहमा रहता था
दीवार पर अपनी ही मोटी छाया हिलती देख
हम बच्चे यह कहां समझते थे तब ?
सिरहाने में बैठी मां,पैताने में बैठे पिता
उनके चेहरे से चूती हुई चिंता फिलहाल
ढिबरी में खत्म होते मिट्टी तेल को लेकर थी या
उस डूबते धान को लेकर जिसके सीस पर
टिके होते थे कल के सुख और सपने
हमें तब यह सब समझ में कहां आता था !
और जैसे – जैसे असुरक्षित होते जाते थे
घर में बाकी कोने एक – एक कर
ढिबरी और हम बच्चे सहित खाट की जगह
रात – भर बदलते ही रहते थे मां – पिता
ताकि ढिबरी बलती रहे
और वे हमें भींगते अंधेरे से बचा सकें
बचा सकें वे अपनी जिंदगी की कुल कमाई
आगे बारिश के दिनों में खरचने के लिए
अभी यहाँ
उन रातों को याद किए बिना मुश्किल है अभी की बारिश को कोई अर्थ देना
और बारिश को समझे बिना मुश्किल है
जिंदगी की जड़ें ढूँढना
इसलिए
बारिश की रातें याद करता हूँ मैं
बारिश के दिन याद नहीं करता
बारिश के दिनों में
3- पानी और पत्थर
मुझे नफरत को
पानी नहीं पत्थर बनाना है
और प्रेम को बनाना है पानी
रोकना है हर हाल में प्रेम को
पत्थर बनने से
घृणा के पत्थर चुनने हैं
आबाद इलाके से और उन्हें बनाकर पहाड़
मनुष्यता के नितांत परित्यक्त क्षेत्र में कहीं
कैद कर देना है
पहाड़ी जड़ता के अभेद्य घेरे में
अगर रखना है दूर उन्हें
हवा में पत्थर उछालनेवाले घृणास्पद हाथों से
असंख्य माथे को फूटने से बचाना है अगर
बचाना है मनुष्यता को पत्थर से
इसलिए पानी बनाना है प्रेम को
बहाना है उसे दसों दिशाओं में मुझे
पानी में बहाना है
मुर्दा शांति से बुना सफेद बर्फ का मोटा कफन
पानी से तोड़ना है वह पहाड़
अन्यथा वह
धरती की छाती पर खड़ा रहेगा
गड़ा रहेगा
शूल बनकर सदियों- सहस्राब्दियों तक
मनुष्यता के परित्यक्त क्षेत्र में
इसलिए प्रेम को पानी बनाना
समय की जरुरत है
फिलहाल पानी का मतलब तबीयत है