अहो ! भावों का पुनरावर्तन | जग में पुनः पुनः वही नर्तन | जन्म, युवा, वृद्धा निराशा | फिर भी जगती नूतन अभिलाषा |
एक यात्रा का अंत नहीं, बार-बार चलने की तैयारी | अहो ! जग एक गूढ़ आवर्तन | वश होता जीव- परिवर्तन |
क्षण-क्षण बदलता जीवन चक्र, चक्र सा चलता जीवन क्रम, नीचे-ऊपर, ऊपर-नीचे, अनवरत चलता जीवन क्रम |
अहो ! जीवन का शाश्वत क्रम, टूटे जैसे माला से मोती, वैसे बिखरे जीवन के क्षण,
अहो ! जीवन- मृत्यु का शाश्वत नर्तन | यही जगत का शाश्वत सत्य |
2 – जीवन: एक झरना
जीवन है एक बहता झरना… झर… झर… झर झरता पानी| पूरब से पुरवाई आई, झूम-झूम कर नाचे डाली|
डाली-डाली झूम उठी, फुनगी पर बैठ के गाये कोयल काली|
झरने का खोता यदि सूख जाये, बहता झरना तब रुक जाये, वैसे जीवन के आशा के स्रोत, जब हो जायें बंद, जीवन झरना सूखता जाता, कल-कल, झल-झल, मृदुल संगीत हो जाता बंद, छा जाता एक मौन सन्नाटा, झरने का अस्तित्व भी हो जाता ख़त्म|
स्रोतों को मत सूखने दो, आशा को मत टूटने दो | जीवन झरना बहता जाये, छा जाये एक मृदुल तरंग |
3 – उत्साह और निराशा
उत्साह बोला हुलसकर, अरे निराशा क्यों बैठी है दुबककर| तू क्यों नहीं अपना साम्राज्य फैलाती|
तब धीरे से बोली निराशा| तेरे साथ है मेरी बहन आशा| बड़ी ही जीवट है आशा, उम्मीद की टिमटिमाती लौ, जहाँ है वो, न होती क्षीण आस की|
जब कम होती है आशा, वहीं मेरा होता है उदय, अपने साथ लाती हूँ हताशा| तब संसार में बनता है तमाशा|
हटती है आशा, घटता है उत्साह| तब धीरे-धीरे बैठती है निराशा| आशा का जलाओ दीप निराशा आ नहीं सकती|