Friday, October 11, 2024
होमकविताडॉ. माया दुबे की तीन कविताएँ

डॉ. माया दुबे की तीन कविताएँ

1 – अहो ! भावों का पुनरावर्तन
अहो ! भावों का पुनरावर्तन |
जग में पुनः पुनः वही नर्तन |
जन्म, युवा, वृद्धा निराशा |
फिर भी जगती नूतन अभिलाषा |
एक यात्रा का अंत नहीं,
बार-बार चलने की तैयारी |
अहो ! जग एक गूढ़ आवर्तन |
वश होता जीव- परिवर्तन |
क्षण-क्षण बदलता जीवन चक्र,
चक्र सा चलता जीवन क्रम,
नीचे-ऊपर, ऊपर-नीचे,
अनवरत चलता जीवन क्रम |
अहो ! जीवन का शाश्वत क्रम,
टूटे जैसे माला से मोती,
वैसे बिखरे जीवन के क्षण,
अहो ! जीवन- मृत्यु का शाश्वत नर्तन |
यही जगत का शाश्वत सत्य |
2 – जीवन: एक झरना 
जीवन है एक बहता झरना…
झर… झर… झर झरता पानी|
पूरब से पुरवाई आई,
झूम-झूम कर नाचे डाली|
डाली-डाली झूम उठी,
फुनगी पर बैठ के गाये
कोयल काली|
झरने का खोता यदि सूख जाये,
बहता झरना तब रुक जाये,
वैसे जीवन के आशा के स्रोत,
जब हो जायें बंद,
जीवन झरना सूखता जाता,
कल-कल, झल-झल,
मृदुल संगीत हो जाता बंद,
छा जाता एक मौन सन्नाटा,
झरने का अस्तित्व भी हो जाता ख़त्म|
स्रोतों को मत सूखने दो,
आशा को मत टूटने दो |
जीवन झरना बहता जाये,
छा जाये एक मृदुल तरंग |
3 – उत्साह और निराशा 
उत्साह बोला हुलसकर,
अरे निराशा क्यों बैठी है दुबककर|
तू क्यों नहीं अपना
साम्राज्य फैलाती|
तब धीरे से बोली निराशा|
तेरे साथ है मेरी बहन आशा|
बड़ी ही जीवट है आशा,
उम्मीद की टिमटिमाती लौ,
जहाँ है वो, न होती क्षीण आस की|
जब कम होती है आशा,
वहीं मेरा होता है उदय,
अपने साथ लाती हूँ हताशा|
तब संसार में बनता है तमाशा|
हटती है आशा, घटता है उत्साह|
तब धीरे-धीरे बैठती है निराशा|
आशा का जलाओ दीप
निराशा आ नहीं सकती|
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest