इस पूरे प्रकरण में पंजाब के मुख्यमन्त्री केप्टन अमरिन्दर सिंह ने एक मैच्योर वक्तव्य दिया है। उनका कहना है कि 26 जनवरी को दिल्ली में हिंसा और लाल किले पर निशान साहिब को फहराए जाने की घटना निंदनीय है। अमरिन्दर सिंह ने कहा कि हिंसा के बाद किसान आंदोलन ने साख खो दी है। उन्होंने आगे कहा कि लालकिला मुग़ल शासन और अंग्रेज़ी शासन में तो भारत का प्रतीक था ही; स्वतन्त्रता के बाद तो लालकिला और तिरंगा भारतीय लोकतन्त्र का प्रतीक बन गये हैं। तिरंगे का अपमान नहीं सहा जा सकता।
26 जनवरी 2021 को किसान आन्दोलन के पैरोकारों ने जब ट्रैक्टर रैली निकाली और वो रैली पूरी तरह से बेक़ाबू हो गयी तो किसान आन्दोलन पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गये। मगर यह भी सच है कि हर राजनीतिक दल ने अपने अपने फ़ायदे के अनुसार लाल क़िले पर हुए तिरंगे के अपमान पर अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी।
भारत सरकार इस मामले में हर फ़्रन्ट पर असफल रही। सबसे पहले तो किसानों को 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च के लिये अनुमति देना जबकि उस दिन दिल्ली की पूरी पुलिस फ़ोर्स वी.वी.आई.पी. सुरक्षा में व्यस्त होती है। फिर उनकी बात पर विश्वास करना कि उनकी ट्रेक्टर मार्च शांतिपूर्ण रहेगी और यह कि वे अपने वादे को निभाएंगे। और उसके बाद उन्हें लाल किले तक पहुंचने देना और वहां तिरंगे का अपमान करने देना। और तो और सरकार तो हर तरह से इस हिंसा को काबू करने में पूरी तरह असफल रही। अपने आप को सरदार पटेल का अवतार मानने वाले गृहमन्त्री अमित शाह की कूटनीति पूरी तरह से विफल रही।
किसानों द्वारा की गयी हिंसा पर हर राजनीतिक दल ने अपनी अपनी राजनीति के तहत बयान दिये। कष्ट यह देख कर हुआ कि किसी को भी देश की कोई चिन्ता नहीं है। किसान नेता सीधे सीधे केन्द्र सरकार पर आरोप लगा रहे थे कि हिंसा भाजपा ने भड़काई और फैलाई है।
सरकार की दोनों तरह से हार थी। यदि सरकार हिंसा के जवाब में गोली चलवा देती तो विपक्ष उनका जीना मुहाल कर देता। और जब सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया तो भी कहा जा रहा है कि पुलिस ने किसानों को लाल किले में जाने क्यों दिया।
राजदीप सरदेसाई ने तो सच में कमाल कर दिखाया। मौक़ा-ए-वारदात से फ़ेक-न्यूज़ देने का साहस कर दिखाया। जो किसान ट्रेक्टर के उलट जाने के कारण मारा गया उसके बारे में लाइव समाचार दिया कि वह पुलिस की गोली से मारा गया। यही नहीं अपने चैनल इंडिया टुडे पर भी अपनी झूठी ख़बर सुनाते रहे। उनके चैनल ने उन्हें 15 दिन के लिये ऑफ़ दि एअर कर दिया है यानि कि राजदीप दो सप्ताह तक टीवी पर समाचार नहीं पढ़ पाएंगे। साथी ही उन पर एक महीने की पगार ना देने का दण्ड भी दिया गया है।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गान्धी के भड़काऊ बयानों पर जवाब देते हुए कहा कि देश को हिंसा की आग में झोंकने की साजिश रच रहे हैं कांग्रेस और राहुल गांधी।
कांग्रेस नेता शशि थरूर, योगेन्द्र यादव एवं पत्रकार राजदीप सरदेसाई, मृणाल पाण्डेय, विनोद जोस, ज़फ़र आग़ा, परेश नाथ और अनंत नाथ आदि के विरुद्ध एफ़.आई.आर. दर्ज करवा दी गयी है। वहीं एडिटर्स गिल्ड ने इन पत्रकारों के विरुद्ध एफ़.आई.आर. की निन्दा की है। और वापिस लेने की मांग की है।
एक समस्या यह है कि राजनीतिक दलों के नेताओं के मन में नरेन्द्र मोदी के प्रति इतनी नफ़रत है कि वे मोदी को नुक़्सान पहुंचाने के चक्कर में कब देश को नुक़्सान पहुंचाने लगते हैं, उन्हें महसूस ही नहीं होता।
इस पूरे प्रकरण में पंजाब के मुख्यमन्त्री केप्टन अमरिन्दर सिंह ने एक मैच्योर वक्तव्य दिया है। उनका कहना है कि 26 जनवरी को दिल्ली में हिंसा और लाल किले पर निशान साहिब को फहराए जाने की घटना निंदनीय है। उन्होंने आगे कहा कि हिंसा के बाद किसान आंदोलन ने साख खो दी है।
कैप्टन अमरिन्द्र सिंह ने आगे कहा कि लालकिला मुग़ल शासन और अंग्रेज़ी शासन में तो भारत का प्रतीक था ही; स्वतन्त्रता के बाद तो लालकिला और तिरंगा भारतीय लोकतन्त्र का प्रतीक बन गये हैं। तिरंगे का अपमान नहीं सहा जा सकता।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि कृषि कानूनों को 18 महीने तक स्थगित करने के प्रस्ताव पर उनकी सरकार अभी भी क़ायम है। पी. एम. मोदी ने सर्वदलीय बैठक में कहा कि सरकार खुले मन से किसानों से जुड़े मुद्दों पर वार्ता कर रही है। सरकार की पेशकश क़ायम है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने भी ट्वीट कर नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा किसानों को दिए प्रस्ताव पर कहा कि कृषि मंत्री वार्ता से बस एक फोन कॉल दूर हैं।
यह सही मायने में एक परिपक्व घोषणा है। किसान नेताओं को इस प्रस्ताव को मान लेना चाहिये। उन्हें ग़ैरज़िम्मेदार बयान देने से बचना चाहिये। सरकार ने नहीं कहा है कि 18 महीने बाद कानून लागू कर दिये जाएंगे। इस प्रस्ताव को मान लेने से दोनों पक्षों की इज्ज़त भी बनी रहेगी और देश इस कठिन दौर से निकल भी पाएगा।
बहुत बढ़िया संपादकीय लिखा है आपने। कब लोग अराजक तत्वों के मोहरे बन देश की गरिमा को नुकसान पहुंचाने लग जाते हैं उनको पता ही नही चलता। मुझे लगता है विवेकी इंसान को सुना जा सकता है मगर भीड़ को समझ पाना तब और भी बहुत मुश्किल है जब अराजक तत्व उसमें अपना उल्लू सीधा करने को प्रविष्ठ हो गए हो।
भारत के वर्तमान हालातों पर समग्र विश्लेषण सम्पादकीय में
किया गया है ।आज के दौर में युवाओं को एक बार महात्मा गांधी
को पढ़ना चाहिए, वे किसान हों या किसी दल के नेता ।
देश हित में क्या है ,इसे सोचने को कोई तैयार नहीं, आपका संकेत भी यही है ।
साधुवाद
प्रभा
अच्छा और संतुलित सम्पादकीय तेजेन्द्र जी ! किसानों द्वारा अपने हितों की बात करना उनकी बहुसंख्यक चिन्ता को दर्शाता है, वहीं कानूनी की वापसी की ज़िद पर अड़े रहना और देश को अराजक माहौल में पहुॅंचाने में निमित्त बन जाना उनके किसी परोक्ष राजनीतिक एजेंडे को दर्शाता है। यह ज़िद ही वह कारक है जो आन्दोलन को किसी सार्थक और कानून सम्मत अंजाम तक नहीं पहुॅंचने दे रही है। सारे विपक्षी दल और एजेन्डे वाले बुद्धिजीवी भी यही चाहते हैं, वे मोदी को हराने के इस स्वर्णिम अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहते-भले ही इसके लिए देश को कोई कीमत क्यों न चुकानी पड़े?
बहुत बढ़िया संपादकीय लिखा है आपने। कब लोग अराजक तत्वों के मोहरे बन देश की गरिमा को नुकसान पहुंचाने लग जाते हैं उनको पता ही नही चलता। मुझे लगता है विवेकी इंसान को सुना जा सकता है मगर भीड़ को समझ पाना तब और भी बहुत मुश्किल है जब अराजक तत्व उसमें अपना उल्लू सीधा करने को प्रविष्ठ हो गए हो।
भारत के वर्तमान हालातों पर समग्र विश्लेषण सम्पादकीय में
किया गया है ।आज के दौर में युवाओं को एक बार महात्मा गांधी
को पढ़ना चाहिए, वे किसान हों या किसी दल के नेता ।
देश हित में क्या है ,इसे सोचने को कोई तैयार नहीं, आपका संकेत भी यही है ।
साधुवाद
प्रभा
अच्छा और संतुलित सम्पादकीय तेजेन्द्र जी ! किसानों द्वारा अपने हितों की बात करना उनकी बहुसंख्यक चिन्ता को दर्शाता है, वहीं कानूनी की वापसी की ज़िद पर अड़े रहना और देश को अराजक माहौल में पहुॅंचाने में निमित्त बन जाना उनके किसी परोक्ष राजनीतिक एजेंडे को दर्शाता है। यह ज़िद ही वह कारक है जो आन्दोलन को किसी सार्थक और कानून सम्मत अंजाम तक नहीं पहुॅंचने दे रही है। सारे विपक्षी दल और एजेन्डे वाले बुद्धिजीवी भी यही चाहते हैं, वे मोदी को हराने के इस स्वर्णिम अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहते-भले ही इसके लिए देश को कोई कीमत क्यों न चुकानी पड़े?