Friday, October 11, 2024
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ऋतुराज वसंत पर डॉ. सुमन शर्मा की तीन कविताएँ

1
बसंत की बयार बन आना,
यादों की फुहार बन जाना।
फलक पर नज़ारे हों तेरे,
मंदिर की दयार बन जाना।
आयें सर्द हवाओं के झोंके,
शबनमी मोती लुटाना।
ठूंठ बने तरू के आँचल में,
कोंपल बन हरषाना।
कोयल की मधुर कूक सुन,
आम्रमंजरी बन खिलखिलाना।
जीवन के मौसम की,
बहार बन मुस्कुराना।
गीतों के अल्फ़ाज़ बन
दिलों में मुहब्बत जगाना,
प्रकृति का अनुपम शृंगार बन,
ऋतुराज वसंत तुम आना ।
2
सात सुरों के तार छिड़े हैं,
संग पवन चहुँओर उड़े हैं।
सरगम की तानों को सुनकर,
मनपांखी उस ओर मुड़े हैं।
वासंती बयारों संग महके,
जीवन में नवगीत जुड़े हैं।
कलियों ने मुस्काना सीखा,
तितलियों ने कई ख़्वाब बुनें हैं।
शबनम बूँदों ने मोती लुटाये,
अंबर ने नवरंग चुने हैं ।
सूरज किरणें झिलमिल आयीं,
अवनी के श्रृंगार सजे हैं ।
3
पतझड़ ने ली अंगड़ाई,
आया वसंत बहारें आयीं।
फूल फूल पात पर छायीं
वासंती बयारों में झूलीं,
कलियाँ खिलीं मुसकुरायीं।
फूल फूल पर भँवरे डोले,
रंग बिरंगी तितलियाँ आईं,
कूक कूककर कोयल बोली,
आम्रमंजरी नवलतिका सी डोली,
पीली सरसों झूमी हरषायी,
वसंत की बहारें आयीं।
फ़िज़ाओं ने रंग बिखेरे,
भावनाओं ने रंगोली सजायी,
जन मन उर में कामनाएँ जगायीं,
बहारें नव उल्लास ले आयीं,
आया वसंत बहारें आयीं।
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