1- भगवान एक अन्तहीन कहानी
ये ईश्वर, परमेश्वर
अंतहीन कहानी है
इस कहानी में प्रेम, श्रद्धा, आस्था
भय और सभी संज्ञाएं,
ज्ञानेंद्रियाँ समावेशित हैं
बकौल संत तुलसीदास,
सकल पदारथ यही जग माही
कर्महीन नर पावत नाही
चमत्कारी शक्तियों की अजब-ग़जब अनुभूतियाँ
बडे़ पहुँचे हुए महात्मा और कितने ही प्रवचनकार
चमत्कारों की करते हैं बातें
मंचों पर भक्तों के सम्मुख वैचारिक
प्रवाह
सुनते रहिए, भावुक और भक्तिमय
होते रहिए
प्रभु को प्रणाम कीजिए
भगवान बहुत बडी़ ताकत है
यह भी सुनने को मिलता है
खगोलीय घटनाओं पर विश्वास होता है
सूरज, चाँद, सितारे
आकाशीय बिजलियों की गर्जनाएं
मूसलाधार वर्षा
जल-चक्र के चलते बारिश
इस सबके इतर छोटे-बडे़ पहाड़, समुद्र,
नदी, झरना, तालाब
धरती से सम्बद्ध खान और भी प्राकृतिक वस्तुएँ
मानव उपयोगी
भरोसा होता है मनुष्य को इन पर
बहुत
ऐसी शक्तियों का अनुभव करते हैं
धरती और आकाश की शक्तियों की
अनदेखी की नहीं जा सकती
मेरा मन भी इन शक्तियों को मानता है
आलौकिक शक्तियों के बारे में भी सुनता हूँ
ये सभी शक्तियां अपनी जगह सही
कमजोर, भयभीत और आशावादी
नतमस्तक होते हैं, इन शक्तियों के आगे
जो भी हो जैसा भी हो
भगवान् मेरे लिए है अन्तहीन कहानी की तरह
जिन्होंने बहुत वषों तक पूजा-पाठ करने
पर भी श्री राम, श्री कृष्ण और
भोलेनाथ को साक्षात नहीं देखा
उन पर ठहाके लगाके हँसता हूँ मैं
2 – खुलकर हंसें तो सही
हँसने वाले हँसते ही हैं
रोने वाले रोते ही हैं
कहा जाता है ऐसा
मगर सोचा विचारा नहीं जाता
ये भी कुछ ऐसे कि चोर को पकड़ पुलिसिए
जेल का रास्ता दिखा देते हैं
चोरी की वजह पूछी ही नहीं जाती
हँसने, रोने वालों की भी वजह
पूछने वाले नहीं होते
मासूम बच्चे रोते हैं
कोई बिस्कुट, दूध देकर रोना
रोक नहीं सकते
ऐसे संवेदनशील लोग अब
मिलते ही कहाँ हैं
रोते हुओं को हँसाना
रूठे हुए दोस्तों, भाइयों को मनाना
निर्ममों के बस की बात नहीं
आँसू, आहें और दर्द महसूस करने
सही सही अन्दाजा लगाने वाले हैं
कितने
बस उँगलियों पर गिनने लायक
कामेडियन का काम हमें इसलिए
बहुत अच्छा लगता है
राजकपूर का मेरा नाम जोकर अच्छा
लगता है
हँसने, हँसाने वालों की भीतरी पीड़ा
दूसरे न देखते और न महसूस करते हैं
कामेडियन जैसी ही थोड़ी एक्टिंग
क्यों नहीं कर ली जाए
लोग कम से कम खुलकर हँसें तो सही
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प्रमोद झा
वरिष्ठ पत्रकार/ लेखक
सम्पर्क :: बी 392 काशी राम नगर
मुरादाबाद, यूपी
मोबाइल, 9897167686
अच्छी सच्ची और सहज कविताएं हैं।
आपकी दोनों ही कविताएँ बहुत अच्छी और बहुत ही सच्ची लगीं प्रमोद जी!
निश्चित ही भगवान अंतहीन कहानी हैं। दरअसल भगवान को पाना बहुत सरल नहीं तो बहुत कठिन भी नहीं। पर पहले उस प्रबल भाव की जरूरत है जो उसमें पूर्ण आस्था और विश्वास रख सके। ईश्वर को महसूस करने की आवश्यकता है। देखने की ताकत तो किसी में भी नहीं वरना महाभारत के युद्ध में कृष्ण को अर्जुन और संजय को विशेष शक्ति ना देनी पड़ती कृष्ण के विश्व स्वरूप के दर्शन करने के लिए ।लेकिन मन की आँखों से देखना कठिन भी नहीं। ईश्वर तो हमें हर जगह नजर आता है- हर इंसान के हौसले में, ताकत में ,संघर्षों से लड़ने में ,खुशी में ,दुख में, आंसुओं में, हर वक्त विश्वास रहता है ईश्वर है वह हमारी रक्षा करेगा। हर जगह ईश्वर है बस हम महसूस कर पाएँ। वह एक ऊर्जा की तरह हममें स्वयं व्याप्त है।
*दूसरी कविता*
*”खुलकर हंसे तो सही”*
यह कविता सबसे अधिक सार्थक है। सबको खुलकर हँसना चाहिए। आपकी एक बात से हम पूरी तरह सहमत हैं। कार्य- कारण सिद्धांत को मानना चाहिये। बल्कि समझना भी जरूरी है कि चोरी क्यों की गई ।दंड देने के लिए चोरी करना ही पर्याप्त नहीं। चोरी के पीछे के कारण को समझना बहुत ज्यादा जरूरी है। अचानक कुछ बहुत पुराना पढ़ा याद आ गया।
बीमार माँ के बच्चे की चोरी, जिस पर फैसला सुनाकर जज भी रो पड़े थे।मजबूरीअपनी जगह है पर उससे भी बड़ी मुसीबत होती है पेट की भूख।एक कहानी अमेरिका के फ्लोरिडा के एक किशोर की है और दूसरी भारत के बिहार की। दोनों में जो कॉमन है वो है भूख, गरीबी, बीमार माँ और उनके दर्द की संवेदनशीलता को समझने वाले जज।
इसके लिए उन्होंने सबको जिम्मेदार माना था ,स्वयं को भी और पढ़ा 10-10 डॉलर का जुर्माना लगाया कोर्ट में उपस्थिति हर व्यक्ति पर, जिसे सबसे पहले उन्होंने खुद ने भी दिया।
इस पर फैसला सुनाते हुए जज भी रो पड़े थे।
जोकर भले ही सबको हंँसाता है किंतु उसकी मजबूरी वही समझता है। मेरा नाम जोकर पिक्चर देखकर इस बात को हम बेहतर समझ पाए थे।
अच्छी कविताएँ हैं आपकी! बल्कि हमें लगता है कि ये दोनों विमर्श की कविताएँ हैं।
वर्तमान में अगर सबसे अधिक नुकसान किसी का हुआ है तो वह हास्य का ही हुआ है। लोगों की हँसी खो गई है ।जीवन की विषमताओं से जूझते हुए लोग हँसना भूल गए हैं ,उसे एक व्यायाम की तरह नकली हँसी के माध्यम से पूरा करना पड़ रहा है।
यहाँ हम संतुष्ट हैं क्योंकि आज भी मौका मिलने पर हम दिल खोल कर हँसते हैं। जिसको जो भी कहना हो कहता रहे।
आपकी कविताओं ने बहुत प्रभावित किया, बहुत कुछ सोचने पर मजबूर भी किया, बहुत कुछ याद भी आया, आपको बहुत-बहुत बधाइयाँ इतना अच्छा लिखने के लिये।
प्रस्तुति के लिए तेजेंद्र जी का शुक्रिया।
पुरवाई का आभार जरूरी है।
*भगवान् मेरे लिए है अन्तहीन कहानी की तरह*
*जिन्होंने बहुत वषों तक पूजा-पाठ करने*
*पर भी श्री राम, श्री कृष्ण और*
*भोलेनाथ को साक्षात नहीं देखा*
*उन पर ठहाके लगाके हँसता हूँ मैं*
आपकी पहली कविता का यह अंतिम पर बहुत अधिक अर्थपूर्ण है।
ठहाके लगाइए,खुल कर लगाइए क्यूँ कि स्वस्थ रहने के लिए हंसना जरूरी है।दिल में दर्द हो मेरा नाम जोकर के राजकपूर की तरह तो भी हँसिये हँसाइये।ताकि लोग कुछ पल ख़ुश हो सकें।जरूरी तो नहीं कि सभी भगवान को देख क्या महसूस भी कर सकें।जीवनदायी हवा को देखा किसने।लेकिन साँसे उसी से चलती हैं।
बधाई आपको विचारोत्तेजक कविता लिखने के लिए।