हे रावण तुम आज भी ज़िंदा हो…  कविता – अनिल गान्धी

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हे रावण तुम आज भी ज़िंदा हो…

अनिल गांधी

हे रावण तुम आज भी जिंदा हो

ये अलग बात है न शर्म है तुम्हें, न शर्मिंदा हो।

रामबाण चूक गया होगा

भरम मृत्यु का हुआ होगा

अस्तित्व है जब आज तुम्हारा

कारण यही रहा होगा

क्योंकि हे रावण….

अव्वल दर्जे के हो तुम निकृष्ट

क्या विडंबना है!बने बैठे हो अति विशिष्ट

खुलने नहीं देते तुम्हारे काले चिठों का पृष्ठ

क्योंकि हे रावण…

तुम्हारे पड़ते हैं जहां भी चरण

दिवालियों का हो जाता है हरण

क्योंकि हे रावण…

काशी, प्रयागराज और श्री अयोध्या में हो तुम विद्यमान

कौन नहीं तुमसे पशेमान

होना है तुम्हें एक दिन निवर्तमान

क्योंकि हे रावण…

विभीषण की कमी खल रही है आज

श्री राम की दाव पर लगी है लाज

तुम्हारा दरबार लगा है निर्बाध

क्योंकि हे रावण…

सब्र का बांध तो टूटेगा एक दिन

लावा ज्वालामुखी से फूटेगा एक दिन

दिनों का फेर न समझ पाओगे तुम,आज के दिन

क्योंकि हे रावण…

अनिल गाँधी।

 

हे रावण तुम आज भी ज़िंदा हो...  कविता - अनिल गान्धी 3— अनिल गाँधी। ई-मेलः gandhiak58@gmail.com

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